कविता कोश

Large Radish

ढलता सूरज, घटता चाँद, बूढ़ा पेड़ : राही मासूम रज़ा

कविता कोश

Large Radish

जब भी मैं तुझको याद आऊँ  तू ये सोच के दिल मत छोटा करना  मेरे-तेरे बीच न जाने कितना ज़ुबानों के दरिया हैं  कितनी तहज़ीबों के समंदर

कविता कोश

Large Radish

धूप की झीलें  छाँव के जंगल  तू इस दूरी से मत घबरा  क़ुर्बत का मौसम तो वही है,  देख तो दिल के अंदर!  दूरी चाहे जितनी भी हो  मैं तो तुझसे दूर नहीं हूँ

कविता कोश

Large Radish

ढलता सूरज बनकर तेरे घर में आख़िर कौन आता है  घटते चाँद का भेस बदल कर  तेरी खिड़की पर मैं ही दस्तक देता हूँ  और वो बूढ़ा पेड़ भी मैं हूँ

कविता कोश

Large Radish

जिसका साया  झुक कर तेरे सर का बोसा लेता है  जब  जब भी मैं तुझको याद आऊँ  मरियम तू बस

कविता कोश

Large Radish

ढलते सूरज,  घटते चाँद की जानिब यूँ ही देख लिया कर  और उस पेड़ की मीठी छाँव से अपने आँसू पोंछ के आगे बढ़ जाया कर।