कविता कोश

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता- स्नेह-निर्झर बह गया है, रेत ज्यों तन रह गया है

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रेत ज्यों तन रह गया है। स्नेह-निर्झर बह गया है।

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आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है—“अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी नहीं जिसका अर्थ— जीवन दह गया है।”

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“दिए हैं मैंने जगत् को फूल-फल, किया है अपनी प्रभा से चकित-चल; पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल— ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।''

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अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, श्याम तृण पर बैठने को, निरुपमा। बह रही है हृदय पर केवल अमा; मैं अलक्षित हूँ, यही कवि कह गया है।