कविता
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Jaankari Rakho
Large Radish
Nasir Kazmi: -
धूप निकली दिन सुहाने हो गए,
चाँद के सब रंग फीके हो गए
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Jaankari Rakho
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चाँद के सब रंग फीके हो गए,
धूप निकली दिन सुहाने हो गए
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Jaankari Rakho
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क्या तमाशा है कि बे-अय्याम-ए-गुल टहनियों के हाथ पीले हो गए इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में आईने आँखों के धुँदले हो गए
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Jaankari Rakho
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हम भला चुप रहने वाले थे कहीं हाँ मगर हालात ऐसे हो गए अब तो ख़ुश हो जाएँ अरबाब-ए-हवस जैसे वो थे हम भी वैसे हो गए
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Jaankari Rakho
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हुस्न अब हंगामा-आरा हो तो हो इश्क़ के दावे तो झूटे हो गए ऐ सुकूत-ए-शाम-ए-ग़म ये क्या हुआ क्या वो सब बीमार अच्छे हो गए
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दिल को तेरे ग़म ने फिर आवाज़ दी कब के बिछड़े फिर इकट्ठे हो गए आओ 'नासिर' हम भी अपने घर चलें बंद इस घर के दरीचे हो गए
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