टिप्पणी लिखिए—खेजड़ली आन्दोलन ।
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उत्तर— खेजड़ली आन्दोलन — इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य वृक्षों को काटने से रोकना था। इस आन्दोलन का प्रारम्भ राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गाँव से हुआ था जहाँ अमृतादेवी के साथ 363 बिश्नोई स्त्री, पुरुषों एवं बच्चों ने अपना बलिदान दिया था ।
1730 AD में जोधपुर के तत्कालीन महाराजा के महल निर्माण के लिए लकड़ियों की आवश्यकता हुई तो उनके सेवक खेजड़ली गांव के खेजड़ी वृक्षा की कटाई करने लगे। गाँव की अमृता देवी ने इस कटाई का विरोध किया तथा अमृतादेवी व उनकी तीनों पुत्रियों को भी काट दिया। इस घटना को देखकर गाँव के अन्य व्यक्ति भी पेड़ों से आकर चिपकते रहे और अपना बलिदान देते रहे। इस प्रकार वृक्षों की रक्षा करते हुए 363 लोगों ने अपना बलिदान दे दिया। महाराजा को इस प्रकार के बलिदान की जानकारी होने पर तुरन्त वृक्षों की कटाई को रोक दिया गया ।
वृक्षों की कटाई के विरोध में वृक्षों से चिपकने के कारण ही इस आन्दोलन का नाम चिपको रखा गया। खेजड़ली का बलिदान आज वनों की सुरक्षा हेतु आदर्श है। खेजड़ी के वृक्ष आज भी बलिदान की याद दिलाते हैं एवं प्रेरणा प्रदान करते हैं। खेजड़ी को राजस्थान का सागवान व क्षार का कल्पवृक्ष माना जाता है।
खेजड़ली के बलिदान पश्चात् 1973 में उत्तराखण्ड में भी महिलाओं ने वृक्षों की सुरक्षा के लिए ‘चिपको आन्दोलन’ चलाया। यह आन्दोलन 8 वर्षों तक चला व बाद में सरकार ने 1981 में हरे वृक्षों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस आन्दोलन की बागडोर सुन्दरलाल बहुगुणा के हाथों में थी। इसी प्रकार का आन्दोलन कर्नाटक में भी चला जिसका नाम ‘एप्पिको’ था।
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