पर्यावरण शिक्षा की आधुनिक अवधारणा क्या है ?

 पर्यावरण शिक्षा की आधुनिक अवधारणा क्या है ? 

                                  अथवा
पर्यावरण शिक्षा की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये ।
उत्तर— पर्यावरण शिक्षा की आधुनिक अवधारणा–पर्यावरणीय शिक्षा वस्तुतः विश्व समुदाय को पर्यावरण सम्बन्धी दी जाने वाली वह शिक्षा है जिससे समस्याओं से परिचित होकर वे उसका हल खोज सकें तथा पर्यावरणीय समस्याओं को रोकने के उपायों से परिचित हो सके।
वर्तमान में समूचा विश्व पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है । विकसित एवं विकासशील दोनों स्तरों के राष्ट्र अपनी-अपनी भौगोलिक तथा सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप पर्यावरणीय समस्याओं का अपनेअपने स्तर पर समाधान खोज रहे हैं। कहीं पर यह समस्या बढ़ती जनसंख्या के कारण है तो कहीं पर बढ़ते औद्योगीकरण के कारण।
पर्यावरण शिक्षा को एक सामान्य विषय के रूप में न लेकर जीवन विषय के रूप में लेना होगा ताकि प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण की समस्याओं के बचाव व उपचार से परिचित हो सके तथा उसे अपने सामान्य जीवन में सर्वहितार्थ उपयोग में ला सके। IUCN (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) ने  पर्यावरणीय शिक्षा को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया है— “पर्यावरण शिक्षा दायित्वों को जानने तथा विचारों के स्पष्टीकरण की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव अपनी संस्कृति एवं जैव-भौतिक परिवेश के अन्तर्गत स्वयं की संबद्धता को पहचाने और समझने के लिए आवश्यक कौशल और अभिवृत्ति को विकसित कर सके।”
पर्यावरण शिक्षा एक नया क्षेत्र तथा नया प्रत्यय है इसलिए इनका अर्थ एवं परिभाषा का प्रयास सेमिनार तथा सम्मेलनों में ही किया गया। कुछ विद्वानों ने इसकी परिभाषा भी दी है, उनका उल्लेख यहाँ पर किया गया है—
(i) यूनेस्को (1970) कार्य समिति के अनुसार, “पर्यावरण शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत मनुष्य तथा उसके पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्ध तथा निर्भरता को समझने का प्रयास किया जाता है और उसको स्पष्ट रूप करने हेतु कौशल, अभिवृत्ति एवं मूल्यों का विकास करते हैं। यह निर्णय लिया जाता है ‘क्या किया जाए ?’ जिससे वातावरण की समस्याओं का समाधान किया जा सके और पर्यावरण में गुणवत्ता लाई जा सके। “
(ii) आर. ए. शर्मा के अनुसार, “पर्यावरण शिक्षा में पर्यावरण के भौतिक, सांस्कृतिक पक्षों की जानकारी दी जाती है और जीवन की वास्तविक परिस्थिति के लिए उसकी सार्थकता का अनुभव प्रदान किया जाता है। समस्याओं तथा कठिनाइयों की पहचान की जाती है। पर्यावरण असन्तुलन में सुधार करके अपेक्षित पर्यावरण का विकास किया जाता है। “
(iii) एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एज्यूकेशनल रिसर्च के अनुसार, “पर्यावरण शिक्षा की परिभाषा देना सरल कार्य नहीं है। पर्यावरण-शिक्षा के विषय-क्षेत्र अन्य पाठ्यक्रमों की तुलना में कम परिभाषित हैं। फिर भी यह सर्वमान्य है कि पर्यावरण शिक्षा बहुविषयी होनी चाहिए, जिसमें जैविक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय संसाधनों से सामग्री प्राप्त होती हो । इस शिक्षा के लिए संप्रत्ययात्मक विधि सर्वोत्तम है।
पर्यावरणीय शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Environmental Education)– पर्यावरण शिक्षा के अर्थ एवं सांस्कृतिक परिभाषाओं की समीक्षा से निम्नलिखित विशेषताओं का बोध होता है—
(1) यह एक प्रक्रिया है जो मनुष्य तथा उसके सांस्कृतिक एवं जैविक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का बोध कराता है।
(2) पर्यावरण शिक्षा में भौतिक, जैविक, सांस्कृतिक तथा मनोवैज्ञानिक पर्यावरण का ज्ञान तथा जानकारी की जाती है और वास्तविक जीवन में उनकी सार्थकता को समझने प्रयास किया जाता है।
(3) इसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के लिए निर्णय लिया जाता है, अभ्यास किया जाता है, जिससे समस्याओं का समाधान किया जा सके।
(4) इस प्रक्रिया से मनुष्य को पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान, कौशल, समझ, अभिवृत्तियों, विश्वासों तथा मूल्यों से सजाया जाता है जो पर्यावरण में सुधार करती है।
(5) इसमें पर्यावरण के असन्तुलन की पहचान की जाती है तथा अपेक्षित विकास तथा सुधार का प्रयास किया जाता
(6) पर्यावरण शिक्षा द्वारा बालक स्वयं प्राकृतिक एवं जैविक वातावरण की समस्याओं को खोजने के समर्थ बनाया जाता है तथा उनका समाधान भी स्वयं करता है, जिससे जीवन का विकास होता है।
(7) पर्यावरण शिक्षा समस्या केन्द्रित, अन्तः अनुशासन आयाम, मूल्य तथा समुदाय का अभिविन्यास भविष्य की ओर उन्मुख, मानव विकास तथा जीवन से सम्बन्धित है। इसका सम्बन्ध भविष्य से होता है।
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