भारतीय शिक्षा आयोग की पाठ्यचर्या सम्बन्धी प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिये ।

भारतीय शिक्षा आयोग की पाठ्यचर्या सम्बन्धी प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिये ।

उत्तर – भारतीय शिक्षा आयोग की पाठ्यचर्या सम्बन्धी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) भाषाओं का अध्ययन आयोग ने भाषाओं के अध्ययन हेतु उन्हें पाठ्यचर्या में निर्धारित करने के बारे में निम्नलिखित सुझाव दिए
(अ) हिन्दी का स्थान—आयोग ने कहा है कि उच्च शिक्षा में अंग्रेजी बौद्धिक आदान-प्रदान की भाषा होगी किन्तु कालान्तर में इसका स्थान हिन्दी ही लेगी क्योंकि अंग्रेजी भारतीय जनता के लिए विनिमय की भाषा नहीं बन सकती है। इसे संघ की राजभाषा एवं जनता की विनिमय की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है इसलिए इसका व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए।
(ब) अंग्रेजी का स्थान—आयोग ने विश्वविद्यालयों एवं अखिल भारतीय शिक्षा संस्थाओं में अंग्रेजी को ही शिक्षा का माध्यम रखने पर बल दिया है। उसने यह भी सुझाव दिया है कि सर्वोत्तम स्तर की स्नातकोत्तर शिक्षा तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के शोधकार्य के लिए पूरे देश में छ: वृहद विश्वविद्यालय विकसित किए जाएँगे जिनमें शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो। इनमें से एक कृषि विश्वविद्यालय तथा एक प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय होना चाहिए। इन विश्वविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से हो तथा चुने हुए शिक्षकों को नियुक्त किया जाए।
(स) विभिन्न भारतीय भाषाओं का स्थान—आयोग के विचार से विभिन्न भारतीय भाषाओं के अध्ययन में कठिनाई उनकी लिपियों के अन्तर के कारण है। अतः सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं का कुछ साहित्य देवनागरी एवं रोमन लिपि में प्रकाशित किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक समुचित भाषा नीति का होना आवश्यक है। इस सम्बन्ध में आयोग का सुझाव है कि स्कूल, कॉलेज तथा उच्च शिक्षा के स्तर पर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। प्रादेशिक भाषाएँ प्रदेशों में प्रशासनिक कार्यों का माध्यम हैं। स्कूलों एवं कॉलेजों में आधुनिक भारतीय भाषाओं को पढ़ाने की समुचित व्यवस्था हो तथा स्नातक स्तर पर एक साथ दो आधुनिक भारतीय भाषाओं को पढ़ाने की अनुमति हो । इस प्रकार सभी भारतीय भाषाओं का विकास होना चाहिए जिससे विभिन्न राज्यों में विनिमय के लिए इनका प्रयोग किया जा सके।
(द) त्रिभाषा सूत्र में संशोधन-आयोग ने विचारानुसार त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन में बहुत-सी व्यावहारिक कठिनाइयों को अनुभव किया गया है जिससे इस फार्मूले को सफलता नहीं प्राप्त हो सकी है। इससे असंतोष एवं विरोध की भावनाओं का उदय हुआ है अतः इस फार्मूले में संशोधन किया जाना अत्यावश्यक है। आयोग में विभाषा सू का संशोधित रूप इस प्रकार प्रस्तुत किया है—
(2) मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा ।
(b) सँघ की राजभाषा या सह राज्यभाषा (जब तक यह है)
(c) एक आधुनिक भारतीय या यूरोपीय भाषा जो छा द्वारा पाठ्यक्रम के अन्तर्गत ली गई हो तथा यह शिक्षा का माध्यम
आयोग के इस सुझाव से हिन्दी की अनिवार्यता समाप्त हो गई है।
(य) क्लासिकल भाषाओं का स्थान आयोग ने राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में संस्कृत के विशेषाधिकार को तो स्वीकार किया है किन्तु यह इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है कि संस्कृत या अन्य किसी भाषा को त्रिभाषा सूत्र के रूप में स्थान प्रदान किया जाए। आयोग के अनुसार त्रिभाषा सूत्र में केवल आधुनिक भारतीय भाषाओं को ही स्थान दिया जाना चाहिए। संस्कृत के अध्ययन के बारे में आयोग का सुझाव है कि मातृभाषा तथा संस्कृत का एक मिश्रित पाठ्यचयों बनाई जा सकती है लेकिन सभी राज्यों के जनमत इसके पक्ष में नहीं हैं। इसलिए क्लासिकल भाषाओं को वैकल्पिक विषय के रूप में विद्यालय पाठ्यचर्या में स्थान दिया जा सकता है जो कक्षा के या उससे आगे की कक्षाओं से लम्यू हो शास्त्रीय भाषाओं के उच्च अध्ययन के लिए विश्वविद्यालयों में व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन इसके लिए अलग से विश्वविद्यालयों की स्थापना के विचार से आयोग सहमत नहीं है।
(2) अन्य विषयों का अध्ययन इसके अन्तर्गत आयोग ने निम्नलिखित विषयों की विशेषताएँ बताई है
(अ) सामाजिक विज्ञान सामाजिक विज्ञान की विषय सामग्री में राष्ट्रीय एकता एवं मानवीय एकता के विकास पर बल दिया गया है। माध्यमिक स्तर पर भारतीय इतिहास का अध्ययन तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर पर विभिन्न विषयों इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र, समाजशास्त्र आदि रूप में सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन करना चाहिए।
(ब) कला एवं पाठ्य सहगामी क्रियाएँ आयोग ने सुझाव दिया है कि भारत सरकार कला-शिक्षा की वर्तमान स्थिति के लिए एक विशेष समिति नियुक्त करें तथा इसके विकास के लिए सम्पूर्ण सम्भावनाओं एवं साधनों का उपयोग करें। सृजनात्मक अभिव्यक्ति के विकास के लिए रुचि कार्यों एवं विभिन्न प्रकार को पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
(स) विज्ञान एवं गणित- भारतीय शिक्षा आयोग ने विज्ञान के महत्व को स्वीकारते हुए इसे विद्यालय पाठ्यचर्या का एक आवश्यक अंग बनाने पर विशेष बल दिया है। अत: इसने विज्ञान एवं गणित को सामान्य शिक्षा का एक अंग मानते हुए सभी बालकों को अनिवार्य रूप से पढ़ाने पर बल दिया है।
शिक्षा के सभी स्तरों पर विज्ञान विषय के अन्तर्गत सम्मिलित को जाने वाली विषय-सामग्री के बारे में आयोग के सुझाव निम्न प्रकार से हैं—
कक्षा 5- -भौतिक शास्त्र, भू-गर्भशास्त्र एवं जीव विज्ञान से सम्बन्धित अन्तर्वस्तु।
कक्षा 6 -भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र एवं जीव विज्ञान से सम्बन्धित अन्तर्वस्तु ।
कक्षा 7—भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान एवं ज्योतिष शास्त्र सम्बन्धित अन्तर्वस्तु ।
माध्यमिक स्तर—भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान तथा भूमि से सम्बन्धित विज्ञानों का अध्ययन ।
उच्चतर माध्यमिक स्तर–भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, गणित, भू-गर्भ शास्त्र, जीव विज्ञान एवं वनस्पति शास्त्र में से किन्हीं तीन विषयों का चयन छात्रों द्वारा किया जाता है।
(द) शारीरिक शिक्षा शारीरिक शिक्षा में शिक्षा आयोग ने निम्नलिखित विद्यालयी पाठ्यचर्या को अपनाने पर बल दिया है—
(a) शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम बालकों की रुचियों एवं क्षमताओं को ध्यान में रखकर बनाया जाए जिससे कांछित परिणाम प्राप्त किए जा सकें ।
(b) परम्परागत खेलों एवं शारीरिक क्रियाओं को पाठ्यचर्या में स्थान दिया जाए।
(c) शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से बालकों में अपने महत्त्व को समझे एवं अपने पर गर्व करने की भावना का विकास किया जाए।
(d) , उन खेलों एवं शारीरिक क्रियाओं को पाठ्यचर्या में स्थान दिया जाए जो बालकों में उत्तरदायित्व की भावना एवं सहयोग आदि गुणों का विकास हो सकें।
( 3 ) बालकों एवं बालिकाओं के पाठ्यक्रम में विभिन्नता इसके सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं —
(i)गृह विज्ञान विषय के उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वैकल्पिक विषय के रूप में रखा जाए। यद्यपि गृह विज्ञान बालिकाओं का प्रिय विषय है फिर भी इसे अनिवार्य न माना जाए।
(ii) संगीत एवं ललित कलाएँ भी बालिकाओं में अधिक लोकप्रिय है । अत: इनके अध्ययन के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान की जाएँ।
(iii) बालिकाओं को विज्ञान एवं गणित के अध्ययन हेतु तैयार
(iv) करने का प्रयास किया जाए। विज्ञान एवं गणित विषय के अध्ययन हेतु अध्यापिकाओं को तैयार करने के लिए प्रयास किया जाए।
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