विद्यालयों में स्वास्थ्य दशायें उत्पन्न करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
विद्यालयों में स्वास्थ्य दशायें उत्पन्न करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर— विद्यालयों में स्वास्थ्य दशायें उत्पन्न करने के उपायविद्यालयों में स्वास्थ्य दशायें उत्पन्न करने के उपाय निम्नलिखित प्रकार हैं—
(1) स्कूल की स्थिति गन्दे स्थान में न हो, वातावरण गन्दा न हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय शहर से अलग हो और किसी कारखाने आदि के पास न हो। दलदल, तालाब आदि स्कूल के पास नहीं होना चाहिये क्योंकि इनके कारण बीमारी के कीटाणु विद्यालय में प्रवेश करके बालकों के स्वास्थ्य को खराब कर देते हैं। नमी के स्थान पर भी विद्यालय नहीं होना चाहिये। संक्षेप में विद्यालय की इमारत ऐसे स्थान पर हो जहाँ स्वच्छ वायु रोशनी का सुगम आगमन हो और किसी प्रकार की गन्दी वायु न जा सके।
(2) प्रत्येक स्कूल के पास खेलने-कूदने के लिये काफी बड़ा मैदान होना चाहिये। इससे प्रत्येक बालक को खेलने का मौका मिलेगा तथा उनके स्वास्थ्य की वृद्धि होगी।
(3) फल वगैरह बेचने का प्रबंध ठीक हो। फल वाले की दैनिक परीक्षा करनी चाहिये जिससे वह गन्दे व सड़े-गले फल न बेच पाये। स्कूल में प्राय: खोमचे वाले बाहर से आकर अपनी चटपटी चीजें बच्चों को खिलाकर उनकी जबान खराब कर देते हैं। अध्यापकों को चाहिये इनको विद्यालय में न आने दें।
(4) विद्यालयों में फर्नीचर प्रायः बड़ा खराब होता है। वह या तो बालकों के नाप का नहीं होता अथवा बहुत टेढ़ा-मेढ़ा तथा कम होता है। खराब फर्नीचर का बालकों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उनको अनुचित ढंग से बैठने की आदत पड़ जाती है। अतः प्रधानाध्यापक को चाहिये कि ठीक फर्नीचर रखे।
(5) विद्यालय की दीवारें काफी ऊँची होनी चाहिये । प्रत्येक कमरे में पर्याप्त रोशनी व वायु स्वच्छन्द रूप से आनी चाहिये। दीवारों पर सालाना सफेदी होनी चाहिये तथा उनमें उपयुक्त रोशनदान होने चाहिये ।
(6) बालकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियम भी बताने चाहिये। शिक्षकों को चाहिये कि बालक अपना शरीर साफ रखे, नाखून न बढ़ने दें, कपड़े साफ रखे, दाँत वगैरह रोजाना साफ करे ।
(7) समय-समय पर बालकों के स्वास्थ्य का भी डॉक्टरी परीक्षण कराएँ । यदि कोई बालक ऐसे हैं, जिनका स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है तो उनके सम्बन्ध में डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिये और बालकों के संरक्षकों (माता-पिता) को भी सूचना देनी चाहिये ।
(8) विद्यालय की समय-सारणी बालकों के अनुसार बनानी चाहिये, सन कि बालकों को समय-सारणी के अनुसार चलाये अर्थात् बालकों के स्वास्थ्य, आयु आदि का ध्यान रखकर ही समय-सारणी बनायी जाये । एक खराब समयसारणी बहुत जल्दी थका सकती है। उनके स्वास्थ्य एवं अध्ययन शक्ति पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। इसके विपरीत एक अच्छी समय-सारणी उनके स्वास्थ्य व अध्ययन शक्ति में वृद्धि कर सकती है।
(9) विद्यालय को अपनी निजी वस्तुओं को स्वच्छ रखने को कहा जाये। साथ-साथ वे जिस कमरे में रहते हों या पढ़ते हों, उसे भी स्वच्छ रखने का आदेश दिया जाये ।
(10) समस्त विद्यालयों की स्वच्छता का दायित्व एक ‘स्वच्छता समिति’ पर डाला जाये, जिसमें सभी कक्षाओं के प्रतिनिधि हों।
(11) वर्ष में दो-तीन बार स्वच्छता सप्ताह मनाया जाना चाहिये। व्यक्तिगत स्वच्छता तथा सबसे उत्तम कक्षा भवन के लिये पारितोषिक दिये जाने चाहिये। इससे बालकों की स्वच्छता के प्रति अभिरुचि होती है।
(12) स्कूल में खेल और शारीरिक व्यायाम सम्बन्धी कार्यक्रमों का समुचित आयोजन किया जाना आवश्यक है। इन कार्यक्रमों में भाग लेना सभी विद्यार्थियों के लिये आवश्यक कर दिया जाये।
(13) जन स्वास्थ्य आन्दोलन में भाग लेने हेतु विद्यार्थियों को प्रेरित करते रहना चाहिये ।
(14) उच्चतर शिक्षा स्तर के बालकों को अधिक महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को जो कि समाज से सम्बन्धित है, परिचित कराया जाये।
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