‘विद्यालय दर्शन’ से आपका क्या अभिप्राय है ?

‘विद्यालय दर्शन’ से आपका क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-विद्यालय दर्शन या कार्य से अभिप्राय –प्राचीन काल में विद्यालय के कार्य सरल और सीमित थे तब उसका प्रमुख कार्य केवल बालकों को शिक्षित करना होता था लेकिन वर्तमान युग में विद्यालय का समाज, राज्य व राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व बढ़ गया है। इन परिस्थितियों में विद्यालय के कार्य बहुमुखी हो गए हैं। विद्यालय को समाज तथा व्यक्ति दोनों के प्रति विविध कार्यों को सम्पन्न करना पड़ता है। इस प्रकार विद्यालय के प्रमुख कार्य / दर्शन निम्नलिखित हैं—

(1) बौद्धिक विकास–विद्यालय का प्रथम व प्रमुख कार्य बालकों का बौद्धिक विकास करना है। छात्रों की मानसिक क्रियाओं को जैसे—समझ, स्मृति, कल्पना, तर्क चिन्तन आदि का विकास विद्यालय में विभिन्न विषयों के अध्ययन के द्वारा कराया जाता है। वास्तव में विद्यालय वह स्थान है जहाँ बालक का मन, मस्तिष्क तथा कर्मेन्द्रियाँ प्रशिक्षित होती हैं ।
( 2 ) औद्योगिक एवं व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना — प्राचीन काल में परिवार के द्वारा नई पीढ़ी को पारम्परिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त हो जाती थी लेकिन आधुनिक युग में जीविकोपार्जन के लिए विशिष्ट तकनीकी ज्ञान एवं कौशल की शिक्षा आवश्यक हो गई है। वर्तमान समय में बालक को अपना व्यवसाय पारम्परिक ढंग से न चुनकर अपनी योग्यता या रुचि के अनुसार चुनने की स्वतन्त्रता है। अत: विद्यालय का एक आवश्यक कार्य बालकों को औद्योगिक और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करके जीविकोपार्जन के योग्य बनाना है।
( 3 ) शारीरिक विकास–विद्यालय बालकों के मानसिक विकास के साथ-साथ उनके शारीरिक विकास और स्वास्थ्य के लिए भी प्रशिक्षित करता है क्योंकि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। विद्यालय में बालक के शारीरिक विकास के लिए विभिन्न प्रकार के खेल-कूद, पी. टी., योगाभ्यास, पौष्टिक भोजन की व्यवस्था की जाती है। छात्रों के स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए विद्यालय में प्राथमिक चिकित्सा व दवाओं आदि की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ।
( 4 ) नागरिकता के गुणों का विकास–विद्यालय बालक को समाज व राष्ट्र के नागरिक के रूप में उसके क्या कर्त्तव्य व अधिकार हैं, इसकी शिक्षा प्रदान करता है। बालक से समय-समय पर विभिन्न सामुदायिक कार्य जैसे— सड़कें बनाना, मुहल्ले की सफाई करना, पेड़ लगाना, जन- शिक्षा प्रसार आदि कराए जाते हैं। इन कार्यों के द्वारा बालकों में नागरिकता के गुणों का विकास होता है। इस प्रकार विद्यालय का एक प्रमुख कार्य नागरिकता के गुणों को विकसित करना भी है।
(5) राष्ट्रीय कार्य-वर्तमान समय में विद्यालय सामान्यतया राज्य या केन्द्र द्वारा संचालित होते हैं। अतः विद्यालय का प्रमुख कार्य राष्ट्रीय नीतियों, कार्यक्रमों एवं योजनाओं को कार्यान्वित करने में सहायता करना होता है। भावी नागरिकों को राज्य की नीतियों एवं आकांक्षाओं के अनुरूप प्रशिक्षित करना तथा राष्ट्रीय जीवन के लिए तैयार करना विद्यालयों | का प्रमुख राष्ट्रीय दायित्व है।
(6) चारित्रिक व नैतिक विकास बालक अपने परिवार से चारित्रिक एवं नैतिक गुणों को बीज रूप में लेकर विद्यालय में प्रवेश करता है। इन गुणों के अंकुरण एवं व्यापक सन्दर्भ में विकसित करने का कार्य विद्यालय करता है, जैसे-ईमानदारी, सत्यता, सहयोग, प्रेम, सहिष्णुता, सह-अस्तित्व आदि मानवीय गुणों का विकास विद्यालय में होता है तथा इन गुणों का प्रयोग वे व्यापक सामाजिक सन्दर्भों में करते हैं।
(7) सामाजिक प्रगति विद्यालय का एक प्रमुख प्रगति में सहायता करना है। विद्यालय समाज की बुराइयों एवं कुरीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार करता है। सामाजिक सुधार के लिए शिक्षा प्रदान करता है जिसे हम सामाजिक पुनर्रचना का कार्य भी कह सकते हैं। इस प्रकार विद्यालय का प्रमुख कार्य सामाजिक प्रगति करना भी है।
(8) सांस्कृतिक विकास–विद्यालय का मुख्य कार्य समाज की सभ्यता, संस्कृति, परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों का संरक्षण तथा भावीपीढ़ी को हस्तान्तरित करने के साथ-साथ विद्यालय नवीन सामाजिक मूल्यों का विकास भी करता है। इसीलिए विद्यालय को समाज का लघु रूप कहा जाता है जिसमें उसकी सांस्कृतिक विशेषताएँ शुद्ध रूप से परिलक्षित होती हैं। विद्यालय में समाज के विभिन्न वर्गों समुदायों एवं धर्म आदि को मानने वाले छात्र व अध्यापक होते हैं लेकिन विद्यालय इन सबको मिलाकर एक विशिष्ट संस्कृति को विकसित करता है जो सभी लोगों को ग्राह्य होती है जिसकी अमिट छाप बालक के व्यक्तित्व पर
पड़ती है।
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