शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए इसके उद्देश्यों की विवेचना कीजिए ।

 शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए इसके उद्देश्यों की विवेचना कीजिए ।  

उत्तर— शारीरिक शिक्षा शिक्षा का ही एक अंग है जो शारीरिक गतिविधियों से शिक्षा देने का माध्यम है। गतिविधि प्रकृति की देन हैं तथा बच्चे इस देन से ही अपनी वृद्धि तथा विकास आरम्भ करते हैं। आज के युग में शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा देने के प्रयास को शारीरिक शिक्षा कहते हैं ।
अर्थ एवं परिभाषा – भिन्न-भिन्न लोगों के लिए शारीरिक शिक्षा का भिन्न-भिन्न अर्थ है । शाब्दिक दृष्टि से शारीरिक शिक्षा है ‘ शरीर की शिक्ष’, परन्तु इसका भाव शरीर तक ही सीमित नहीं है। समय-समय पर शारीरिक शिक्षा की परिभाषा विचित्र ढंगों से दी जाती रही है, कभी इसे ‘शारीरिक प्रशिक्षण ” (Physical Training) कहा गया तो कभी “शारीरिक संस्कृति” (Physical Culture)। आम व्यक्ति शारीरिक शिक्षा को “शारीरिक क्रिया” ही मानता आया है और आज भी मानता है, परन्तु शारीरिक शिक्षा को केवल शारीरिक गतिविधियों का ही एक पिण्ड समझना उसके साथ अन्याय करना है, क्योंकि जहाँ ‘शिक्षा’ शब्द का उपयोग शरीर के संदर्भ में तथा दृष्टिकोण से किया गया हो वहाँ शारीरिक शिक्षा से अभिप्राय शरीर की शिक्षा न रहकर शरीर के माध्यम द्वारा शिक्षा हो जाता है, जो एक अत्यन्त विस्तृत प्रक्रिया है । शारीरिक शिक्षा की निम्न परिभाषाओं में अधिकांश विद्वानों ने शारीरिक क्रियाओं द्वारा मानसिक विकास पर ही बल दिया है ।
(1) डैल बर्ट ओबरटूफर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का सामूहिक प्रभाव है जो शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति को प्राप्त होते हैं।”
(2) चार्ल्स बूचर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा पद्धति का एक अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य नागरिक को शारीरिक, मानसिक, संवेगिक तथा सामाजिक रूप से शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से, जो गतिविधियाँ उनके परिणामों को ध्यान में रखकर चुनी गई हों, सक्षम बनाना है। “
(3) भारतीय शारीरिक शिक्षा तथा मनोरंजन के केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के अनुसार – “शारीरिक शिक्षा वास्तव में सामान्य शिक्षा ही है। यह ऐसी शिक्षा है जो शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास को शरीर, मन तथा आत्मा की पूर्णता की सीमा तक सुनिश्चित करती है । “
अन्त में शारीरिक शिक्षा के समस्त पहलुओं पर विहंगम दृष्टिपात करने पर यह कहा जा सकता है कि—
‘शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अनिवार्य अंग है जो शरीर, मन तथा बुद्धि में समन्वय स्थापित करते हुए उन सामाजिक एवं लोकाचार के नियमों का ज्ञान कराता है जो मानव के बहुमुखी विकास के लिए जरूरी है।
शारीरिक शिक्षा के बारे में हम यह भी कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर का विकास करने वाली, उसकी दक्षता में पर्याप्त वृद्धि करने वाली, आदर्श जीवन का निर्माण करने वाली, एकता व देश भक्ति की भावना भरने वाली, शिष्टाचार के गुणों का तथा सहनशीलता और उत्साह की भावना का विकास करने वाली शिक्षा है।
ऊपर दी गई शारीरिक शिक्षा की परिभाषाओं में निम्नलिखित तीन अंश हैं—
(1) शारीरिक शिक्षा शिक्षा का अभिन्न अंग है।
(2) शिक्षा का यह क्षेत्र, गतिविधियों तथा उनसे होने वाले प्रभावों से सम्बन्ध रखता है।
(3) इसका उद्देश्य व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा सामाजिक गुणों का विकास करना है।
विद्यालय में शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य – विद्यालय में शारीरिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं—
(1) शारीरिक विकास – शारीरिक स्वस्थता अपने दैनिक कार्य ओज और सतर्कता के साथ करने की योग्यता है। शरीर के विभिन्न आंगिक संस्थानों (Organic Systems) को इस प्रकार विकसित करना कि प्रत्येक व्यक्ति उच्चतम सम्भावित स्तर तक जीवित रह सके । यदि मनुष्य के शरीर के विभिन्न तन्त्र और संस्थान ठीक कार्य करते हैं तो व्यक्ति सदा बेहतर, दिलचस्पी भरा जीवन जी सकता है और वांछनीय कार्य कर सकता है। शारीरिक स्वस्थता जीवन की परेशानियों तथा तनावों का सामना करने के लिए पर्याप्त सहनशक्ति विकसित करती है और अनुचित थकान अथवा तनावरहित जीवन के सामान्य काम करने के लिए यथेष्ट शक्ति देती है। इसलिए शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शारीरिक विकास करना है जैसा प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो ने कहा “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन वास करता है। “
(2) ज्ञानात्मक विकास – ज्ञानात्मक विकास, शरीर के बारे में ज्ञान प्राप्त करना तथा उस ज्ञान को समझना व उसकी व्याख्या करने से सम्बन्धित है। ज्ञान व्यक्ति में विज्ञान, मानवता तथा दूसरे अन्य स्रोतों से प्राप्त होता है जो व्यक्ति के स्वभाव की व्याख्या करता है, उसकी गतिविधियों का ज्ञान कराता है तथा उन गतिविधियों का व्यक्ति की वृद्धि व विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है, उसकी संस्कृति कैसे प्रभावित होती है, इन सभी बातों की जानकारी हम तभी रख पाते हैं जब हमारा यह पक्ष विकसित हो और शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में इस ज्ञान का विकास कर उसे अपने आस-पास के वातावरण में ठीक ताल-मेल करने में व अपने आप को उसमें समायोजित करने में सफल हो सके।
इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान जैसे व्यक्तिगत स्वच्छता, बीमारियों की रोकथाम, व्यायाम का महत्त्व, संतुलित आहार व उसका शरीर के लिए महत्त्व, स्वस्थ आदतें व अभिवृत्ति आदि का ज्ञान शारीरिक शिक्षा के इस उद्देश्य को एक नया अर्थ (Meaning) प्रदान करता है। जितना भी अधिक इन गतिविधियों में भाग लेने के बारे में सोचा जायेगा, उतनी ही अधिक ये शैक्षणिक होती चली जाएँगी ।
(3) प्रभावात्मक विकास – प्रभावात्मक विकास के उद्देश्य काफी विस्तृत रूप लिए हुए हैं। इन उद्देश्यों के अन्तर्गत सामाजिक, भावात्मक तथा प्रभावात्मक उद्देश्य आते हैं। सामाजिक विकास के उद्देश्य व्यक्ति
की व्यक्तिगत समायोजन सामूहिक व समूह में समायोजन व समुदाय के सदस्य के नाते समाज में समायोजन में सहायता करते हैं। शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम सबसे अच्छे ऐसे अवसर प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम इन गुणों का विकास कर सकते हैं। ये प्रोग्राम व्यक्ति में नेतृत्त्व के गुणों का भी विकास कर सकते हैं। शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम के क्षेत्र में बच्चे एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और वे परिस्थितियों के अनुरूप समायोजन करते हैं। इस तरह उनमें मित्रता, खेल भावना, संयम, सम्मान, सहयोग, सहानुभूति, धैर्य, नैतिकता आदि गुणों का विकास होता है।
दूसरे प्रभावात्मक विकास के उद्देश्य के अन्तर्गत व्यक्ति का भावात्मक विकास करना भी है। मनुष्य में द्वेष, ईर्ष्या, घृणा, आशा-निराशा, प्रसन्नता, दुख, क्रोध, कामुकता, आश्चर्य आदि अनेक भावनाएँ या संवेग होते हैं, जो कि व्यक्तित्व के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं लेकिन इनकी अधिकता हानिकारक होती है। क्योंकि इन पर यदि नियन्त्रण नहीं किया जाए तो व्यक्ति असामान्य हो जाता है। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम इन संवेगों का विकास भी करते हैं तथा इन पर नियन्त्रण करना भी सिखाते
(4) स्नायु-मांसपेशियों का विकास – स्नायु मांसपेशी विकास जिन शारीरिक पहलुओं से सम्बन्धित है उनमें शरीर में जागरूकता का विकास, शारीरिक गतिविधियों में प्रवीणता तथा गामक व स्नायु संस्थानों के बेहतर तालमेल को बनाना आदि है। शरीर की प्रभावी गतिविधियाँ तभी सम्भव हैं जब शरीर की मांसपेशियाँ और स्नायु संस्थान में सहज सहयोग स्थापित रहता है और वे दोनों संस्थान एक होकर कार्य करते हैं अर्थात् उनमें बेहतर तालमेल बने रहने की अवस्था में ही शरीर की गतिविधि बेहतर ढंग से थकान रहित और शारीरिक ऊर्जा को लम्बे समय बना रखी जा सकेगी। इसके अतिरिक्त स्नायु- मांसपेशी का सही विकास व्यक्ति में आत्म-विश्वास, पहचान (Recognition), शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का विकास तथा कई अन्य मूल्यों को भी विकसित करता है।
 (5) चरित्र निर्माण – अच्छा चरित्र मनुष्य का आभूषण होता है। अच्छे चरित्र के बल पर ही मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा तथा जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुँचता है। शारीरिक शिक्षा न केवल शरीर का विकास करती है, अपितु मनुष्य चरित्र का निर्माण भी करती है। इसके द्वारा मनुष्य प्रेम, सहयोग, अनुशासन, सदाचार, नैतिकता, समायोजन, सम्मान जैसे सद्गुणों को प्रभावित ढंग ग्रहण कर अच्छे चरित्र का निर्माण कर सकता है।
(6) सांस्कृतिक उद्देश्य – संस्कृति शब्द का अर्थ शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से मानवीय अनुभव को समृद्ध करना है। इसी अनुभव से अपने परिवेश को अच्छी तरह से समझा और सराहा जा सकता है। सांस्कृतिक उद्देश्य में निम्न बातें आती हैं—खेलों की तकनीकों, कौशलों तथा रणनीतियों को समझने तथा सराहने की योग्यता का विकास, संगीत लय तथा फुरसत के समय के लिए तैयारी तथा शरीर के गठन को ठीक कर मनोबल को सुधारना।
कोजन्स और स्टम्फ के शब्दों में, “खेल और शारीरिक गतिविधियाँ मानवता की कलाओं से सम्बन्धित हैं। उन गतिविधियों ने सभी संस्कृतियों का एक आधारभूत अंग निरूपित किया है सभी प्रजातीय समूहों तथा ऐतिहासिक युगों सहित, क्योंकि वे मानव अभिव्यक्ति का उतना ही मूलभूत रूप हैं जितना संगीत, काव्य और चित्रकारी हैं। हर काल के अपने कलाकार, अपने समर्थक और अपने शत्रु रहे हैं। मानव जाति के लम्बे इतिहास में युद्ध, शासन तंत्र, महामारियाँ (Epidemics) तथा दुर्भिक्ष आते और जाते रहे, किन्तु ये मूलभूत तत्त्व कम या अधिक मात्रा में सदा विद्यमान रहे हैं।”
अतः हमारी खेल संस्कृति का संरक्षण व स्थानान्तरण शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का एक हिस्सा है।
(7) राष्ट्रभक्ति की भावना का विकास – शारीरिक शिक्षा की मुख्य व महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्ति के अन्दर राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत करना है। शारीरिक शिक्षा से सम्बन्धित ऐसे अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जैसे राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय खेलकूद योजना, राष्ट्रीय कैडेट कोर, गर्लगाइड तथा स्काउटिंग इत्यादि । अतः उपर्युक्त उल्लेखित उद्देश्यों के सारांश के रूप में यह कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य एक चरित्रवान, स्वस्थ, कर्मठ, दृढ़संकल्पी, सदाचारी, प्रयत्नशील तथा महान् व्यक्तित्व वाले नागरिक का निर्माण करना है।
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