समानता और साम्यता को परिभाषित कीजिए। निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, अक्षमता और प्रदेश |

समानता और साम्यता को परिभाषित कीजिए। निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, अक्षमता और प्रदेश |

उत्तर – जाति आधारित समानता और साम्यता- जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के कास्ट ‘Caste’ का हिन्दी अनुवाद है। अंग्रेजी के (Caste) शब्द की व्युत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के ‘Casta’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ मत, विभेद तथा जाति से लिया जाता है। अंग्रेजी में Caste शब्द स्पैनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है वंशक्रम । संस्कृत में जाति को वर्ण कहते हैं जिसका अर्थ रंग है। विभिन्न विद्वानों ने जाति को परिभाषित करने का प्रयास किया हैं—
मजूमदार एवं मदान के अनुसार, “जाति एक बन्द वर्ग है । ” कूले के अनुसार, “जब एक वर्ग पूर्णत: आनुवांशिकता पर आधारित हो तो हम उसे जाति कहते हैं। “
जे. एच. हट्टन के अनुसार, “जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत एक समाज अनेक आत्म-केन्द्रित एवं एक दूसरे से पूर्णत: पृथक् इकाइयों (जातियों) में विभाजित रहता है । इन इकाइयों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध ऊँच-नीच के आधार पर सांस्कृतिक रूप से निर्धारित  होते हैं। “
भारतीय समाज की स्थापना जाति आधारित है। सभी लोगों को कुछ विशेष जातियों में विभाजित किया गया है जो कि सामान्यतः कर्म आधारित थी परन्तु बाद में वंशानुगत हो गई। भारत में जाति व्यवस्था बहुत संकीर्ण रही है फिर भी संविधान की दृष्टि में सभी जातियाँ समान हैं। सभी जातियों के लोगों पर संविधान समान रूप में लागू है। उन्हें समान रूप से ही मूलाधिकार प्राप्त है। ये मूलाधिकार सबको भारत में समान रूप से रहने, खाने, पीने, शिक्षा प्राप्त करने, सम्पत्ति बनाने, प्राप्त करने आदि के अधिकार प्रदान करते हैं। कोई गलती करने पर सजा के प्रावधान भी सभी के लिए समान हैं। यह समानता है।
भारत में कई जातियाँ गरीब व पिछड़ी हुई हैं जो सदियों से शोषित रही हैं। भारत की जाति व्यवस्था ही ऐसी है कि इसमें कुछ जातियाँ उच्च व कुछ निम्न रही हैं। यहाँ तक कि कहीं-कहीं तो उच्च जाति वाले नीची जाति के लोगों के हाथ का पानी भी नहीं पीते। ये जातियाँ ज्यादातर गरीब हैं। उन्हें भेदभाव के चलते आगे बढ़ने के अवसर सीमित ही मिलते हैं। संविधान ने इनकी स्थिति को देखते हुए इन्हें शिक्षा व नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया है। जब आरक्षण लागू किया गया था उस समय उसका मूल आधार यही था कि कमजोर वर्ग के लोगों को अधिक अवसर दिया जाए जिससे कि वह बाकी वर्गों के बराबर आ जाए। आरक्षण प्रारम्भ में सिर्फ दस वर्ष के लिए लागू किया गया था। इसका अर्थ यही था कि कुछ समय में पिछड़ी जातियाँ मजबूत होकर मुख्य धारा में शामिल हो जाएँगी और फिर वह अन्य के साथ चल सकेगी अर्थात् आरक्षण अस्थायी तौर पर समाज में समता लाने का एक तरीका था। यह अलग बात है कि आज आरक्षण वोट लेने का एक तरीका बन कर रह गया है। संक्षेप में कहा जाए तो सभी जातियाँ समान हैं यह समानता है परन्तु कमजोरों के लिए अवसरों की अधिकता प्रदान करना समता है।
वर्ग आधारित समता और समानता– सामाजिक वर्ग सभ्य समाज में स्तरीकरण है । जाति व्यवस्था सिर्फ भारत में ही पाई जाती है परन्तु वर्ग व्यवस्था पूरी दुनिया में व्याप्त है।
आगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “सामाजिक वर्ग एक समाज में समान सामाजिक स्तर के लोगों का समूह है।”
सभी प्रकार के समाजों में आर्थिक आधार पर वर्गीकरण है और व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर उच्च, मध्य या निम्न वर्ग में रखे जा सकते हैं पर यह वर्ग स्थायी नहीं है। व्यक्ति अपनी क्षमता या मेहनत के अनुसार एक से दूसरे वर्ग में जा सकता है। यह देखा गया है उच्च आर्थिक वर्ग के छात्र हमेशा लाभ की स्थिति में रहते हैं। उनके माता-पिता उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं, उन्हें बेहतर संसाधन दे सकते हैं, जिससे कि वह छात्र अन्य छात्रों से आगे रह पाते हैं।
दूसरी तरफ निम्न आर्थिक स्थिति वाले छात्र आर्थिक कमी होने के कारण पीछे रह जाते हैं। इस तरह विभिन्न वर्गों के छात्र प्रतिभा में समान होने पर भी समान नहीं हो पाते। प्रकृति ने प्रतिभा प्रदान करने में वर्ग का भेदभाव नहीं किया है। गरीब हो या अमीर सभी वर्गों में बुद्धि, प्रतिभा, रूप, रंग, क्षमताएँ बराबरी से पाए जाते हैं परन्तु आर्थिक रूप से सशक्त लोग बेहतर संसाधनों के कारण आगे आ सकते हैं।
ऐसी परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करने के लिए कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों को बराबर मौका मिले इसके लिए कई प्रयास किए जा सकते हैं—
(1) सभी के लिए निःशुल्क शिक्षा।
(2) प्रतिभाशाली गरीब छात्रों के लिए निःशुल्क कोचिंग ।
(3) प्रतिभावान खिलाड़ियों के लिए कोचिंग, पौष्टिक आहार आदि की व्यवस्था |
(4) आरक्षण का आधार जाति न होकर वर्ग व्यवस्था ।
(5) सरकारी नौकरियों के फार्म आदि की फीस नाम मात्र की हो।
(6) गरीब छात्रों के लिए छात्रावास, भोजन आदि की व्यवस्था हो जिससे कि पढ़ने के लिए उन्हें किसी की सहायता न लेनी पड़े। संविधान द्वारा गरीब छात्रों को यह सभी अधिकार प्राप्त हैं परन्तु भ्रष्टाचार, राजनीति और जागरूकता के अभाव के कारण सही हकदार को यह सभी सुविधाएँ मिल नहीं पाती ।
धर्म (सम्प्रदाय ) आधारित समता एवं समानता — यह बात सत्य है कि सभी मनुष्य ईश्वर की अनुपम कृति है परन्तु सभी को उसी ईश्वर को मानने के लिए व पूजने के लिए किए गए उपायों के आधार पर विभिन्न धर्म बने । ईश्वर ने सभी को एक जैसा बनाया है। सभी हर तरह से समान हैं। सभी के रक्त चार प्रकार के ही हैं चाहे वो हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई कोई भी हो । जीन्स (Genes) के अध्ययन से भी यही साबित होता है कि सभी मनुष्य एक ही प्रकार के पूर्वज से उत्पन्न हुए हैं अर्थात् यह साबित है कि सभी धर्मों के मनुष्य जैव वैज्ञानिक रूप से समान हैं फिर भी अलग-अलग विचारधाराओं को मानने के कारण उनकी संस्कृति अलग है। .
भारत का संविधान सभी को एक समान मानता है फिर भी सभी को अपने धर्म को अलग-अलग मानने की छूट है। अल्पसंख्यकों को यह अधिकार है कि वह अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकें। अपने लिए अलग से शिक्षण संस्थान खोल सकें। अपने व्यक्तिगत मामलों के लिए सभी को अपने धर्म के अनुरूप व्यवहार करने की छूट है। अतः समानता होते हुए भी सभी को अपनी इच्छानुसार धार्मिक व्यवहार करने की छूट है। यही समता है।
अक्षमता आधारित समता एवं समानता – अक्षमता व्यक्ति के विकास में बहुत बड़ी बाधा होती है। अक्षमता शारीरिक भी हो सकती है, मानसिक भी और सामाजिक भी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह अनुमान लगाया है कि किसी भी जनसंख्या का 10 प्रतिशत भाग अक्षम हो सकता है। अक्षमता कई प्रकार की होती हैं
( 1 ) शारीरिक अक्षमता- इस प्रकार के व्यक्तियों में शरीर का कोई अंग सही प्रकार से काम नहीं करता जैसे— हाथ, पैर, आँख, कान आदि। इसकी वजह से व्यक्ति लंगड़ा (Lame), अंधा (Blind), गूंगा (Dumb), बहरा (Deaf) आदि हो सकता है। यह अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है और बाद में किसी दुर्घटना के कारण भी हो सकती है।
( 2 ) मानसिक अक्षमता इस प्रकार की अक्षमता का पता बुद्धिलब्धि परीक्षण (I.Q.) के आधार पर चलता है। बुद्धिलब्धि निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती है–
जिन बच्चों की बुद्धिलब्धि का अंक 70 से कम आता है उन्हें मन्दबुद्धि की श्रेणी में रखा जाता है। इन बालकों की सीखने की गति मन्द होती है जिसकी वजह से यह शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। इनमें से कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो शिक्षा प्राप्त ही नहीं कर सकते।
( 3 ) सामाजिक अक्षमता – परिवार में कोई कमी होने, गरीबी, शारीरिक अक्षमता, किसी भी वजह से कुछ बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। वह अन्य छात्रों से मेलजोल नहीं कर पाते तथा शिक्षकों से अपनी समस्या भी नहीं पूछ पाते। बच्चा सामाजिक रूप से अपने आपको समायोजित नहीं कर पाता और असन्तोष का शिकार हो जाता है।
( 4 ) मनोवैज्ञानिक कारण – इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं जिनके कारण बच्चे पूरी तरह से सामान्य रूप से पढ़ नहीं पाते हैं, जैसे—ध्यान केन्द्रित न कर पाना, अक्षरों को न पहचान पाना, अपनी बात को सही प्रकार से सम्प्रेषित न कर पाना आदि।
क्षेत्र (प्रदेश ) आधारित समता व समानता — एक क्षेत्र में रहने वाले लोग एक सांस्कृतिक विचारधारा रखते हैं। उसी प्रकार एक राष्ट्र भी एक सोच का परिणाम है। अलग-अलग राष्ट्र व अलग-अलग सोच वाले लोगों का अलग-अलग विचारधारा रखना स्वाभाविक है परन्तु जब ये विचारधाराएँ एक-दूसरे से टकराती हैं तो संघर्ष होता है। आदर्श समाज में सभी को अपनी विचारधारा का पालन करने की स्वतन्त्रता है। राष्ट्र के आगे सभी समान हैं परन्तु व्यक्तिगत या क्षेत्रगत हित यदि राष्ट्र को नुकसान पहुँचाने लग जाएँ तो राष्ट्रहित के आगे सभी गौण हैं।
आज भी भारत के सुदूर इलाकों में रहने वाले कबीलाई, अपनी अलग संस्कृति का पालन करते हैं। संविधान उन्हें यह अधिकार देता है कि वे अपनी भिन्नता की रक्षा करें, अपनी संस्कृति का पालन करें और अपनी क्षेत्रीयता को बचा कर रखें। उन्हें भी औरों के समान शिक्षा, स्वास्थ्य, वोट देने आदि के मूलाधिकार प्राप्त हैं। यह समानता है परन्तु अपनी निजता को बचाकर रखने, अपनी अटपटी दिखने वाली परम्पराओं का पालन करने की स्वतन्त्रता है, यह समता है। सभी अपनी-अपनी अलग सोच का पालन करते हैं, अलग-अलग रहन-सहन, खाना-पीना है, अलग वेशभूषा, त्योहार हैं। यही हमारे राष्ट्र की सुन्दरता है। यही बात अलग-अलग राष्ट्रों के सम्बन्ध में है। अलग भाषा, अलग संस्कृति, अलग रहन-सहन के बाद भी आज विश्व एक वैश्विक गाँव के समान है जहाँ ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति आदि का आदान-प्रदान बहुत आसानी से हो है। अपनी निजता को बचा कर भी दूसरे के साथ मिल-जुल कर रहा जा सकता है।
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