हिन्दी भाषा में विविध विधाओं के स्वरूप से आप क्या समझते हैं ? आधुनिक हिन्दी भाषा की विभिन्न विधाओं का परिचय दीजिए |

हिन्दी भाषा में विविध विधाओं के स्वरूप से आप क्या समझते हैं ? आधुनिक हिन्दी भाषा की विभिन्न विधाओं का परिचय दीजिए | 

उत्तर— हिन्दी भाषा का साहित्य बड़ा विशाल है। यहाँ साहित्य का तात्पर्य समझ लेना आवश्यक है किसी भाषा के माध्यम से जो भाव एवं विचार अभिव्यक्त किये जाते हैं उसे साहित्य कहते हैं। साहित्य को कला और भाषा को विज्ञान कहते हैं। आधुनिक युग में भाषा सम्बन्धी सिद्धान्तों को जो वैज्ञानिक रूप दिया गया है वह “भाषा-विज्ञान के नाम से जाना जाता है जिसमें ध्वनि, रूप, शब्द, वाक्य आदि का अध्ययन किया जाता है और जो व्याकरण के नियमों में आबद्ध रहता है।”

पद्य (कविता) साहित्य–कविता छन्द और लय से आबद्ध होने के कारण रागमय हो जाती है जिसे कविता या गीत रूप में गाकर अभिव्यक्त किया जाता है । कविता हृदय को स्पर्श करती हुई रसास्वादन द्वारा सौन्दर्यानुभूति कराती है।
गद्य – साहित्य–व्याकरण के नियमों में आबद्ध होने के कारण उसकी शिक्षा में एक नियमित यांत्रिकता बनी रहती है जो नीरसता पैदा करती है। उसमें पद्य की सी रोचकता और प्रभावोत्पादक शक्ति नहीं होती है।
हिन्दी साहित्य की विधाओं के अन्तर्गत गद्य, पद्य, नाटक, कहानी, व्याकरण आदि रचना रूप आते हैं। गद्य साहित्य की विधाओं के अन्तर्गत जिन विभिन्न विधाओं का विकास हुआ है वे विधाएँ हैं— कहानी, नाटक, एकांकी, उपन्यास, जीवनी, निबन्ध, आत्मकथा, संस्मरण, रिपोर्ताज, रेखाचित्र, समालोचना आदि।
यहाँ उनका विस्तार से परिचय दिया जा रहा है—
(1) उपन्यास–उपन्यास विस्तृत गद्यात्मक प्रकथन प्रधान रचना है, जिसमें वास्तविक जीवन का अनुकरण करने वाली घटनाओं और पात्रों का एक व्यवस्थित कथावस्तु के रूप में वर्णन रहता है । हिन्दी साहित्य में आधुनिक ‘उपन्यास’ का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से माना जाता है जिनमें— सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, मनोवैज्ञानिक, आँचलिक, साम्यवादी, वैचारिक, हास्य, तिलस्मी आदि उपन्यास हैं।
(2) कहानी–भारतीय साहित्य में कथा, आख्यायिका, गल्प, कहानी, लघु कथा और नई कहानी के नाम से प्रचलित इस विधा की एक दीर्घ परम्परा विद्यमान है। आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य में— सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक आदि कथाएँ रचित हैं। कहानी जीवन या जगत् के किसी एक पक्ष का संवेदनात्मक बिम्ब है। इसकी विशेषताओं और गुणवत्ता की अनुभूति की जा सकती है उसे शब्द में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
(3) निबन्ध–निबन्ध एक छोटा-सा गद्य विधान है जिसमें निबन्धकार जीवन या जगत से सम्बन्धित किसी भी वस्तु या व्यक्ति के प्रति उत्पन्न अपनी मानसिक और बौद्धिक प्रतिक्रियाओं की इस प्रकार निर्बाध अभिव्यक्ति करता है कि वह अधिक से अधिक रोचक, संवेदनशील तथा चमत्कारपूर्ण बन सके।” आज – परिचयात्मक, वर्णनात्मक, कथात्मक, आलोचनात्मक, शोधात्मक, भावात्मक, वैयक्तिक आदि तरह के उपन्यास लिखे जा रहे हैं।
(4) नाटक–नाटक (नाट्य) शब्द की उत्पत्ति ‘नट्’ धातु से हुई है जिसके नृत्त और अभिनय दोनों अर्थ निकलते हैं। भरतमुनि ने”सम्पूर्ण संसार के भावों का अनुकीर्तन ही नाट्य माना है। एकांकी भी नाट्य साहित्य का ही अंग है। नाटक जहाँ जीवन की सम्पूर्ण घटनाओं का मंचीय चित्रण है एकांकी वहाँ जीवन की एक ही घटना विशेष का मंचन है।”
(5) आत्मकथा–आत्मकथा एक लेखक के व्यक्तिगत जीवन का वर्णन है। जिसमें लेखक का एक उद्देश्य निहित होता है जिसको ध्यान में रखकर ही जीवन की घटनाओं का चयन करता है । जैसे— महात्मा गाँधी की आत्मकथा ।
(6) जीवनी–जीवनी एक व्यक्ति विशेष के जीवन का सम्पूर्ण वृतान्त है जिसको किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा जाता है। जैसे—शेखर एक जीवनी ।
(7) संस्मरण–स्वयं व्यक्ति के अपने जीवन की घटनाओं का एक अनुभव है।
(8) रिपोर्ताज–लेखक द्वारा देखी गई घटनाओं का एक प्रत्यक्षदर्शी की तरह किया गया वर्णन है । जो अंग्रेजी शब्द ‘Report’s’ से बना है।
(9) रेखाचित्र–किसी घटना या दृश्य का लेखनी द्वारा ऐसा चित्र उपस्थित कर देना जो सजीव हो उठे, रेखाचित्र कहलाता है। लेखक अपने अनुभवों को मूर्त रूप प्रदान करता है।
(10) समालोचना–समालोचना में लेखक किसी रचना का मूल्यांकन उसके गुण-दोषों के आधार पर करता है।
अन्य–गद्य काव्य–भावावेश में की गई गद्य रचना जो सरस व काव्यात्मक हो उसे गद्य काव्य कहते हैं ।
बाल साहित्य–चित्रमय कहानियों के द्वारा जो बाल उपयोगी साहित्य लिखा जाता है वह बाल साहित्य है ।
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