अक्षम के लिए समानता की आवश्यकता, बाधा तथा उनको दूर करने के उपायों का विस्तार से वर्णन कीजिए ।

अक्षम के लिए समानता की आवश्यकता, बाधा तथा उनको दूर करने के उपायों का विस्तार से वर्णन कीजिए ।

उत्तर – अक्षम के लिए समानता की आवश्यकता – अक्षम लोग भी समाज का अभिन्न अंग होते हैं। इन्हें भी अन्य व्यक्तियों की भाँति भोजन, आवास, शिक्षा, प्यार, सहानुभूति और अपनी पहचान बनाने का अधिकार है। अक्षम व्यक्तियों के लिए समानता की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं
( 1 ) लोकतन्त्र की भावना की स्थापना हेतु — भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लोकतन्त्र में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। लोकतन्त्र की भावना अर्थात् सभी नागरिकों की सभागिता तब तक सच्चे अर्थ में स्थापित नहीं हो सकती जब तक अक्षम लोगों को भी समान भागीदारी न मिले।
( 2 ) अनिवार्य शिक्षा— शिक्षा का अधिकार धारा 21(A) के तहत् जो मूलाधिकार है उनके अन्तर्गत सभी बालकों का शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है। यह तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि अक्षम बालक भी पर्याप्त शिक्षा प्राप्त न कर लें।
( 3 ) आत्म-निर्भरता हेतु — अक्षम बालक यदि शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर हो जाएंगे तो फिर दूसरों पर बोझ बनकर नहीं रहेंगे। शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो उन्हें उनकी क्षमता व आवश्यकता के अनुरूप संलग्न कर सके।
( 4 ) आत्म सम्मान प्राप्ति के लिए — अक्षम यदि आत्म निर्भर हो जाएं तो वह देश की उन्नति में भाग ले सकते हैं और साथ-साथ सम्मान के साथ जीविकोपार्जन कर सकते हैं। इनसे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आत्म-सम्मान के साथ जीने की आदत पड़ेगी।
(5) अक्षम को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए— अक्षम छात्र यदि शिक्षा प्राप्त करेंगे, नौकरी कर जीविकोपार्जन करेंगे तो उनमें अलगअलग रहने की प्रवृत्ति खत्म होगी और वे मुख्यधारा में जुड़ेंगे। इससे समाज में अपराधी कम होंगे और समाज की उन्नति होगी।
बाधाएँ–अक्षम छात्रों को अन्य छात्रों के समान रखने में बहुत सी बाधाएँ होती हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित प्रकार हैं—
( 1 ) प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए बहुत धैर्य और सहानुभूति की आवश्यकता होती है। इसके लिए उचित प्रशिक्षित शिक्षक का होना बहुत आवश्यक है। उचित शिक्षा व प्रशिक्षण के अतिरिक्त शिक्षक को धैर्यवान व सहानुभूतियुक्त भी होना चाहिए परन्तु ऐसे शिक्षक कम ही होते हैं जो अक्षम छात्रों को प्यार से सही तकनीक के साथ पढ़ा सकें।
( 2 ) हीन भावना—अक्षम छात्रों में कई बार हीन भावना आ जाती है कि वह अन्य छात्रों के बराबर नहीं हैं क्योंकि समाज, मातापिता, शिक्षक आदि उन्हें कमतर समझते हैं और मुख्य धारा से अलग हो रखते हैं। इस व्यवहार को सहते-सहते अक्षम छात्र हीन भावना का शिकार होकर सबसे मिल-जुल नहीं पाते और चिड़चिड़े हो जाते हैं। यहाँ तक कि सामान्य छात्रों से जलन का शिकार हो जाते हैं।
( 3 ) सही तकनीक का अभाव— अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए सही प्रकार की शिक्षण सहायक सामग्री–विशिष्ट तकनीक आदि आवश्यक है जैसे—दृष्टान्ध छात्रों को ऐसे साधनों द्वारा पढ़ाया जाना चाहिए जिसमें उनके सुनने, स्पर्श करने आदि इन्द्रियों का अधिक से अधिक उपयोग हो। उसी प्रकार बहरे छात्रों के लिए दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है। इन तकनीकों का स्कूलों में अभाव होता है जिससे शिक्षकों को अक्षम छात्रों को पढ़ाने में परेशानी होती है। डिस्लेक्सिया तथा ऑटिज्म जैसे छात्रों को पढ़ाने के लिए अलग प्रकार की तकनीक की जरूरत होती है। शिक्षकों में जिसकी जानकारी का भी अभाव है।
( 4 ) विद्यालयों में सुविधाओं का अभाव विकलांग छात्र जी व्हीलचेयर पर चलते हैं उनके लिए अच्छे हॉस्पिटल स्कूलों में पड़ीवार रास्ता होता है परन्तु सभी स्कूलों में इस प्रकार की सुविधाएँ नहीं होती जिससे कि छात्र स्कूल आने से पहले ही हतोत्साहित हो जाते हैं।
( 5 ) राजनैतिक कारण विकलांग या अक्षम बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं है क्योंकि या तो ये चीट देने ही नहीं जाते और जाते भी हैं तो परिवारजनों के कहने पर बीट देते हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियाँ इनके लिए कुछ करने में रुचि नहीं लेतीं।
अक्षमता की समता व समानता के उपाय-अक्षमता की समता व समानता के उपाय निम्नलिखित हैं—
समावेशी विद्यालय  — अक्षम छात्रों की मुख्यधारा से जोड़ने का सबसे अच्छा उपाय है, समावेशी विद्यालय जहाँ पर विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं वाले छात्रों की सामान्य छात्रों के साथ ही शिक्षित किया जाए। यह विचारधारा भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 (National Curriculum Framework, 2005) में प्रस्तावित हुई थी। इसमें अक्षम छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालय परिवेश को ढाला जाता है, अधिगम अनुभवों ( Learning Experience) की योजना बनाई जाती है और दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है। अक्षम छात्रों को शुरू से सामान्य छात्रों के साथ रखने से समायोजन आसान हो जाता है। पहले विशेष विद्यालय की परिकल्पना थी जिससे अक्षम छात्र अलग स्कूल में पढ़ते। स्कूल में तो उन्हें सभी छात्र अपने जैसे लगते थे पर जब स्कूल से निकल कर वे सामान्य वातावरण में जाते थे तो समायोजित नहीं हो पाते थे। समावेशी विद्यालय इस समस्या को दूर करते हैं। इसके अतिरिक्त सामान्य छात्र भी इन्हें समाज का अंग समझते हैं और इनसे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार के अतिरिक्त बराबरी का व्यवहार भी रखते हैं अभी यह कम है। परन्तु समय के साथ यह बढ़ेगा।
( 2 ) अवसरों की अधिकता – अक्षम छात्रों की सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें किसी भी कार्य को करने में सामान्य छात्रों से अधिक समय लगता है। इसलिए समता के अन्तर्गत यह उचित है कि उन्हें कार्य के लिए अधिक समय दिया जाए। सामान्य बच्चों में उन्हें अवसर भी अधिक मिले जिससे कि वे अपनी गलती सुधार लें और सामान्य छात्रों की बराबरी कर सकें।
 ( 3 ) संविधान प्रदत्त आरक्षण – भारतीय संविधान के अनुसार अक्षम लोगों को शिक्षा व नौकरियों में विशेष आरक्षण प्राप्त हैं परन्तु यह आरक्षण केवल शारीरिक अक्षमता तक ही सीमित है। आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक समस्या जैसे—ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया और ए.डी.एच.डी. आदि से पीड़ित लोगों की सही पहचान कर उनके लिए भी कुछ प्रबन्ध किया जाए।
(4) जागरूकता — टी.वी., समाचार पत्र व अन्य सामाजिक मीडिया की सहायता लेकर जनता को इन समस्याओं के प्रति जागरूक किया जाए और अक्षम लोगों को मुख्य धारा में जोड़ने के उपाय बताए जाएँ।
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