असमर्थ बच्चों की शिक्षा के लिए संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिये ।

असमर्थ बच्चों की शिक्षा के लिए संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिये ।

अथवा

भारत में निर्योग्यता व विशिष्ट शिक्षा को बढ़ावा देने वाले संगठनों का विवरण दीजिए |
उत्तर— असमर्थ बच्चों की शिक्षा में संगठनों की भूमिका—
(A) अली यावर जंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुम्बईअली – यावर जंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान एक स्वायत्त संस्थान है । इसकी स्थापना 1983 में हुई थी। संस्थान के अन्य क्षेत्रीय केन्द्र कोलकाता, नई दिल्ली, सिकन्दराबाद तथा भुवनेश्वर में स्थित हैं। यह संस्थान सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली के अधीन अपना कार्य करता है। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य है कि श्रवण विकलांग व्यक्तियों को सहायता प्रदान करे व इनके बारे में समाज में जागरूकता बढ़ाये | संस्थान विकास के विभिन्न पहलुओं; जैसे- शैक्षणिक कार्यक्रम, अनुसंधान, सामग्री विकास, सामुदायिक कार्यक्रम, मानवशक्ति विकास, सूचना तथा अभिलेखीकरण पर जोर देती है।
संस्थान के उद्देश्यों के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं—
(1) अनुसंधान सामग्री विकास – इस बिन्दु में खासकर श्रवण रूप से निर्योग्य या विकलांग व्यक्तियों हेतु शिक्षण विधियों के विकास पर शोध, उनके रोजगार पर शोध, शिक्षा से सम्बन्धी मुद्दों पर नवीनीकरण आदि शामिल हैं।
(2) मानव-शक्ति का विकास – किसी भी क्षेत्र में मानवसंसाधन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्रवण बाधित या बहरे व्यक्तियों के लिए कई कोर्सेज द्वारा विशिष्ट शिक्षा को बढ़ावा देकर मानव-शक्ति को और भी अधिक मजबूती प्रदान किया जाना भी उद्देश्य की पूर्ति ही है।
(3) शैक्षणिक कार्यक्रम – श्रवण बाधित व बधिरों की शिक्षा हेतु कार्यक्रमों को बनाया जाता है व इनका क्रियान्वयन किया जाने हेतु इन्हें शिक्षा देने की विधियाँ कैसी हों, इन पर शोध कार्य करना, विधियों का नवीनीकरण, पाठ्य-वस्तु को सरलता से प्रस्तुत करना आदि शैक्षणिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत आता है ।
(4) सामग्री विकास – इस क्षेत्र में सामग्री का अत्यधिक प्रयोग होता है। इसीलिए सामग्री का भी समय-समय पर नवीनीकरण होना अत्यधिक आवश्यक है। श्रवण बाधित व बधिरों द्वारा श्रवण से सम्बन्धित सामग्री रोज के कार्यों में अत्यधिक प्रयोग में लायी जाती है। इन्हीं की शिक्षा हेतु श्रव्य-दृश्य सामग्री का भी कक्षागत परिस्थितियों में अत्यधिक प्रयोग होता है। इसके साथ-साथ सामग्री को दृश्य-श्रव्य चलचित्र बनाने के काम में लाया जाता है व सामग्री का विकास किया जाता है।
(5) सूचना तथा अभिलेखीकरण – श्रवण से सम्बन्धित पक्षों पर नवीनतम प्रयास करना, इतना ही नहीं सूचना के सम्प्रेषण हेतु पक्षों पर विकास करना या किया जाना निर्धारित किये गये लक्ष्यों को जल्द ही पूरा करने में सहायता प्रदान करेगा।
(6) सामुदायिक कार्यक्रम – यह सारे कार्यक्रम जागरूकता उत्पन्न करने हेतु चलाये जाते हैं। जो वयस्क बधिर होते हैं, उनके लिए कार्यक्रमसाक्षर करने हेतु, जन-जागरण आदि के लिए चलाये जाते हैं।
(B) राष्ट्रीय मानसिक विकलांग संस्थान, सिकन्दराबाद–  एन. एम. एच.आई. एक स्वायत्त संस्था है। यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है। इसकी स्थापना सन् 1984 में हुई थी। एन. एम. एच.आई. के तीन केन्द्र हैं— नई दिल्ली, कोलकाता एवं मुम्बई । इस संस्थान का मुख्य लक्ष्य है कि जो व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ एवं विकलांग हैं उनके जीवन को एक नयी पहचान देना ।
एन.एम.एच.आई. के मुख्य उद्देश्य हैं—
· समुदाय से जुड़े हुए पुनर्वास को बढ़ावा देना ।
· स्वैच्छिक संगठनों को परामर्श सुविधाएँ प्रदान करना।
· देख-रेख व सुरक्षा से जुड़े नमूने तैयार करना, ऐसे कार्यक्रमों को डिजाइन करना जिनकी पहुँच दूर-दूर तक हो ।
· मानव संसाधन के विकास पर जोर देना ।
(C) स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान ( एस. वी. निरतार कटक, ओडिशा ) – एस. वी. निरतार भारत में निर्योग्य व्यक्तियों को बेहतरीन सुविधाएँ प्रदान करता है।
एस. वी. निरतार उन व्यक्तियों को पुनर्वास सेवा प्रदान करता है जो चलन सम्बन्धी निर्योग्यताओं से प्रभावित हैं।
एस. वी. निरतार के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) पुनर्वास से सम्बन्धी किसी भी पक्ष को क्रियान्वित करना ।
(2) भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम जो कि एक भारत सरकार का उपक्रम है, इसके उत्पादों के प्रयोग को बढ़ावा देना।
(3) भिन्नक्षमों के विकास में लगे या कार्य कर रहे व्यावसायिक चिकित्सकों, डॉक्टरों, प्रोस्थेटिस्ट अभियंताओं, आर्थोटिस्ट आदि जैसे मानव संसाधनों के विकास पर बल देना।
(4) भिन्नक्षमों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम, रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर देना ।
(5) अनुसंधान को सहायता प्रदान करने वाले उपकरण हेतु बढ़ावा देना ।
(6) डिजाइनीकृत उपकरणों के जो मूल नमूने हैं उनका विकास एवं भिन्नक्षमों की शिक्षा व पुनर्वास चिकित्सा पर जोर देना ।
वर्तमान में एस. वी. निरतार भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, विकलांगता विभाग के वित्तीय व प्रशासनिक नियंत्रण में अपने कार्य संपादित कर रहा है जिसको 1984 में ओलतपुर में स्थापित किया गया था।
यह संस्थान भिन्न क्षमता युक्त व्यक्तियों हेतु सुविधाएँ प्रदान करता है। यह उनके पुनर्वास एवं उनके स्वास्थ्य से सम्बन्धित होती है । इस संस्थान को विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में भारत के अन्दर एक उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा प्राप्त है और यह उत्कल विश्वविद्यालय से भी सम्बन्धित है। इसके साथ यह राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एन.बी.ई.) नई दिल्ली द्वारा भी मान्यता प्राप्त है।
(D) शारीरिक रूप से विकलांग के लिए संस्थान – पं. दीनदयाल उपाध्याय संस्थान (शारीरिक रूप से विकलांग के लिए संस्थान) शारीरिक विकलांगता के क्षेत्र में अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराता है । यह संस्थान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के वित्तीय व प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन अपना कार्य करता है।
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय संस्था के शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए उद्देश्य—
(1) विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा एवं पुनर्वास को बढ़ावा देने वाली उपयुक्त सेवाएँ प्रदान करना ।
(2) संगोष्ठी, बैठकों का आयोजन, सेमिनार आदि को नियोजित करना, जिससे कि विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा व पुनर्वास में योगदान को और अधिक बढ़ावा एवं प्रोत्साहन दिया जा सके।
(3) विकलांग बच्चों की शिक्षा एवं पुनर्वास हेतु विकसित तकनीकों के लिए शोध एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करना ।
(4) शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा प्रशिक्षण, पुनर्वास सुविधाएँ प्रदान करना।
(5) विकलांग व्यक्तियों को सेवाएँ प्रदान करने हेतु व्यावसायिक चिकित्सक, भौतिक चिकित्सक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पेशेवरों की व्यवस्था करना व प्रशिक्षण प्रदान करना।
(6) विकलांग व्यक्तियों के विकास, शिक्षा एवं पुनर्वास हेतु काम में लाये जाने वाले उपकरणों का निर्माण व वितरण अपने हाथ में लेना ।
(E) नेशनल एसोसिएशन ऑफ द डेफ, दिल्ली– नेशनल एसोसिएशन ऑफ डेफ बहरे व्यक्तियों के लिए एक संगठन है। इसकी स्थापना सन् 2005 में हुई थी। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य है— बहरे व्यक्तियों के लिए शिक्षा एवं विकास को बढ़ावा देना, उनके अधिकारों को दिलाना। एन.ए.डी. ने वर्ष 2007 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषाशास्त्र के विभाग के साथ मिलकर एसोसिएशन ऑफ साइन लैंग्वेज इन्टरप्रेटर की शुरुआत की है।
एन. ए. डी. (नेशनल एसोसिएशन आफ डेफ) के उद्देश्य निम्नांकित हैं—
(1) सरकार और जन में बहरेपन से जुड़ी सूचना को फैलाना ।
(2) पुस्तकों व पत्रिकाओं को प्रकाशित करना जो कि बहरेपन से जुड़ी हैं।
(3) सूचना बोर्ड में प्रतिनिधित्व करना ।
(4) श्रवण बाधित व बहरे व्यक्तियों के हित में रोजगार से
सम्बन्धित अवसरों का पता लगाना व इस सूचना को उनके मध्य प्रसारित करना ।
(5) बधिरता से सम्बन्धित नियमों के क्रियान्वयन को राज्य व केन्द्र सरकारों के सन्दर्भ में देखना ।
(6) सरकारी एजेन्सीज व ऐसी एजेन्सीज जो बहरे व श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिए कार्य करती हैं, उनके बीच में सम्पर्क स्थापित करने का कार्य करना।
(7) श्रवण बाधित व बहरे व्यक्तियों के लिए एक आधिकारिक रूप से कार्य करना, ताकि किसी भी प्रकार की शिकायत सम्बन्धी मामले सुधर सकें।
(8) सरकारी संस्थाओं को श्रवण बाधित व बहरे व्यक्तियों के सम्बन्ध में परामर्श देना।
(9) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रवण बाधित एवं बहरे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करना ।
( 10 ) देश के विभिन्न भागों में युवा नेतृत्व वाले शिविरों को संचालित करना ।
(11) भिन्न निर्योग्यताओं को प्रदर्शित करने वाली एजेन्सीज के साथ जुड़ना, ताकि विचारों का आदान-प्रदान हो सके।
(12) राज्य स्तर एवं शहरी स्तर पर संघों को स्थापित करना व ‘उनकी गतिविधियों का समन्वय करना।
(13) राष्ट्रीय स्तर पर उन गतिविधियों के साथ समन्वय करना जो कि बहरेपन से सम्बन्धित हैं।
(F) राष्ट्रीय बहुविकलांग व्यक्ति अधिकारिता संस्थान, चेन्नई, तमिलनाडु – इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2005 में तमिलनाडु में हुई थी । भारत सरकार के विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन यह राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बहुविकलांग व्यक्तियों या ऐसे व्यक्ति जो दो या दो से अधिक निर्योग्यताओं या विकलांगताओं से युक्त रहे हैं, उन्हें सशक्त बनाने का कार्य करती है। इसके कार्य के अन्तर्गत दृष्टि बाधित, अंधे, शारीरिक रूप से निर्योग्य व्यक्ति, श्रवण बाधित, मानसिक रूप से मन्द व्यक्ति, ऐसे व्यक्ति जो कुष्ठ रोग के लिए उपचार करा चुके हों, स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात आदि सभी को सशक्त बनाना व सहायता प्रदान करना है।
राष्ट्रीय बहुविकलांग व्यक्ति अधिकारिता संस्थान के मुख्य उद्देश्य—
(1) बहुविकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराना ।
(2) बहुविकलांगता से जुड़े सारे पक्षों पर शोध कार्य का प्रबन्ध कराना ।
(3) बहुविकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के लिए मॉडल बनाना व उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भिन्न-भिन्न समूहों से मिलना ।
(4) बहुविकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों की शिक्षा, पुनर्वास, रोजगार एवं सामाजिक विकास से सम्बन्धित मानव संसाधन के विकास को बढ़ावा देना ।
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