आंकलन और मूल्यांकन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उचित उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
आंकलन और मूल्यांकन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उचित उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर—आंकलन और मूल्यांकन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यह कथन सर्वथा उचित है, क्योंकि किसी के बारे में निर्णय देना ही आंकलन कहलाता है। अधिकतर आकंलन तथा मूल्यांकन का प्रयोग भूलवश लोग एक-दूसरे के पर्याय के रूप में करते हैं परन्तु वास्तविकता में इन दोनों के बीच में अन्तर है।
आंकलन (Assessment) — लोगों से सूचना एकत्रित करने की प्रक्रिया है जिन्हें विभिन्न माध्यमों, जैसे— Assignment performance Test तथा नित्यप्रति परीक्षण द्वारा एकत्र किया जाता है तथा छात्रों के बिना कोई ग्रेड या अंक दिए पृष्ठपोषण देने की सुविधा भी प्रदान की जाती है। यह सब छात्रों या उनके समूह द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है।
जब इस प्राप्त पृष्ठपोषण को छात्रों के अधिगम उद्देश्यों से जोड़ा जाता है तो छात्रों में अन्तिम मूल्यांकन से पहले सुधार सम्भव है। एक प्रकार से आंकलन मूल्यांकन का छोटा रूप है जो प्रक्रिया के पूर्व रिहर्सल (पूर्वाभ्यास) के रूप में अभिव्यक्त होता है यह पूछताछ (Enquiry) की प्रक्रिया में पहला पद है।
इरविन (1991 ) के अनुसार, “आंकलन छात्रों में व्यवस्थित विकास के आधार का अनुमान है। यह किसी भी वस्तु को परिभाषित कर चयन, रचना, संग्रहण, विश्लेषण, व्याख्या और सूचनाओं का उपयुक्त प्रयोग कर छात्र विकास तथा अधिगम को बढ़ाने की प्रक्रिया है। “
हुबा एवं फीड के अनुसार, “आंकलन सूचना संग्रहण तथा उस पर विचार विमर्श की प्रक्रिया है जिन्हें हम विभिन्न माध्यमों से प्राप्त कर ये जानते हैं कि विद्यार्थी क्या जानता है, समझता है तथा अपने शैक्षिक अनुभवों द्वारा प्राप्त ज्ञान को परिणाम के रूप में व्यक्त कर सकता है। जिसके द्वारा छात्र अधिगम में वृद्धि होती है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है—
(i) आंकलन लोगों से सूचना एकत्रित करने की प्रक्रिया है।
(ii) इसके द्वारा पृष्ठपोषण भी दिया जा सकता है।
(iii) यह पूछताछ (Enquiry) प्रक्रिया का पहला पद है।
(iv) इसके द्वारा छात्र अधिगम में सुधार तथा विकास किया जा सकता है।
(v) आंकलन विचार विमर्शी प्रक्रिया है ।
आंकलन के उद्देश्य आंकलन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) बच्चों के सन्दर्भ में —
(i) बच्चे क्या जानते हैं ?
(ii) बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताएँ क्या हैं?
(iii) उनका उचित निर्धारण करने में।
(iv) बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम का चयन करने में ।
( 2 ) परिवार के सन्दर्भ में—
(i) माता-पिता को बच्चे की प्रगति एवं अधिगम के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए।
(ii) घर की गतिविधियों एवं अनुभवों से सम्बन्धित स्कूल की गतिविधियों को जानने के लिए।
( 3 ) छोटे बच्चों के कार्यक्रम निर्धारित करने हेतु —
(i) बच्चों के लिए कौन से कार्यक्रम उपयुक्त है और कौन से नहीं, इस प्रयोजन हेतु रणनीति बनाने के लिए ।
(ii) निर्धारित कार्यक्रम किस सीमा तक बच्चों के लिए लाभकारी है यह ज्ञात करने के लिए।
(4) छोटे बच्चों के अध्यापक हेतु—
(i) बच्चों के कौशल, योग्यता एवं आवश्यकताओं की पहचान करने में ।
(ii) शिक्षण सामग्री के चयन के लिए।
(iii) नई कक्षा की व्यवस्था बनाने में।
(iv) अधिगम गतिविधि को कैसे लागू किया जाए यह जानने हेतु ।
(v) बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को जानने में।
( 8 ) अन्य लोगों के सन्दर्भ में—
(i) बच्चों की उपलब्धि के बारे में सभी को सूचित करने के लिए |
(ii) छात्रों को विद्यालय से सम्बन्धित जानकारी प्रदान करने के लिए।
आकलन की विशेषताएँ—
( 1 ) विश्वसनीयता (Reliability) – किसी भी आंकलन का यह सबसे पहला एवं महत्त्वपूर्ण गुण है। आंकलन किसी भी समय या परिस्थिति में किया जाए किन्तु उसका परिणाम सदैव समान होना चाहिए, तभी वह विश्वसनीय कहलाएगा। विश्वसनीय सामग्री वही है जिसमें एक स्तर के विद्यार्थी पुन: पुन: परीक्षा में लगभग एक समान उत्तर देते हैं। शिक्षक किसी भी योग्यता का हो आंकलन प्राय: एक ही समान होना चाहिए अगर शिक्षक द्वारा एक ही आंकलन हेतु अलग-अलग अंक प्रदान किया जा रहा है तो ऐसा आंकलन विश्सनीय नहीं कहलाता है।
( 2 ) वैधता (Validity) – वैध आंकलन वही होता है जो वास्तव में उन्हीं उद्देश्यों का आंकलन करें जिस उद्देश्य के लिए उसका निर्माण किया गया है लेकिन प्राय: शिक्षक ऐसे प्रश्नों को बच्चों से पूछने लगते हैं जो प्रमाणिक नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ- यदि छात्रों के कुछ बिन्दुओं को याद करने की शक्ति को जाँचने हेतु प्रश्न बनाना है तो ऐसे प्रश्न बना दिए जाए जो उनकी तर्क शक्ति को जाँचे ।
( 3 ) व्यावहारिकता (Practicality) – आंकलन लागत, समय और सरलता की दृष्टि से वास्तविक, व्यावहारिक एवं कुशल होना चाहिए। ऐसा भी हो सकता है कि आंकलन का कोई तरीका आदर्श हो किन्तु उसे व्यवहार में न लाया जा सके ऐसे तरीकों को भी नहीं अपनाना चाहिए। उदाहरणार्थ-विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक परीक्षाओं में सभी विद्यार्थियों को एक प्रयोग के स्थान पर अलग-अलग प्रयोग देना अधिक सुविधाजनक एवं व्यावहारिक है क्योंकि सबसे एक प्रयोग करवाने हेतु एक प्रकार के अनेक यंत्र उपलब्ध करवाने होंगे, हो सकता है यह संभव न हो।
(4) उपयोगिता (Utility) – आंकलन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी भी होना चाहिए। आंकलन से प्राप्त परिणामों को छात्रों को बता देना चाहिए जिससे वें उन कमियों को सुधार सकें। आंकलन द्वारा ही इसका पता लग सकता है कि किस दिशा में सुधार करना है। यह सुधार पठन सामग्री में, अध्यापन विधि आदि में हो सकता है। इस प्रकार आंकलन विद्यार्थियों की एवं अध्यापकों की कमियों को जानने एवं उन्हें दूर करने में बहुत लाभकारी होता है।
(5) मानकीकरण (Standardisation) – एक अच्छे आंकलन की यह भी एक विशेषता होती कि वह मानकीकृत होना चाहिए। विद्यालयों में प्रायः जो परीक्षण किए जाते हैं वे राष्ट्र एंव राज्य के लिए किए जाते हैं लेकिन मानकीकृत आंकलन वह होता है जो कक्षा स्तर को सम्मिलित करता है। आंकलन एवं मूल्यांकन किस सीमा तक प्रशासन – प्रक्रियाओं में समान है, को मानकीकरण निरूपित करता है। आंकलन का प्राप्तांक प्रत्येक विद्यार्थियों को समान होना चाहिए। मानकीकृत आंकलन में कई गुण होते हैं जो उसे अद्वितीय एवं मानक बनाते हैं। एक मानकीकृत आंकलन वही होता है जो विद्यार्थियों को एक समय सीमा, समान प्रकार के प्रश्न, समान निर्देशों की दिया जाए और जिसमें छात्र समान अंक अर्जित करें। मानकीकरण प्राप्तांक में होने वाली त्रुटियों को समाप्त कर देता है विशेषत:जब त्रुटि परीक्षक के आत्मनिष्ठता के कारण होती है।
आंकलन के क्षेत्र – आंकलन शब्द का प्रयोग विस्तृत रूप में किया जाता है। आज मानव ने जितना विकास किया है उसके विकास के किसी न किसी स्तर पर आंकलन का प्रयोग अवश्य हुआ है चाहे वह मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक अथवा तकनीकी स्तर पर विकास हो। इस प्रकार आंकलन एक विस्तृत क्षेत्र है। आंकलन के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं
(1) शैक्षिक उपलब्धियों का पता लगाने में – छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों को ज्ञात करने के लिए आंकलन का प्रयोग किया जाता है। शिक्षक छात्रों की पूर्व उपलब्धियों तथा शिक्षण के समय विभिन्न विधियों के माध्यम से उसका आंकलन कर उसके अधिगम स्तर को ज्ञात करता हैं तत्पश्चात् प्राप्त सूचनाओं के आधार पर छात्रों को अधिगम प्रदान करता है। छात्रों के अतिरिक्त आंकलन का प्रयोग शिक्षकों की उपलब्धियों को ज्ञात करने हेतु भी किया जाता है। इस प्रकार आंकलन का उद्देश्य छात्रों एवं शिक्षकों के ज्ञान एवं कौशल का पता लगाता है।
( 2 ) गुणवत्ता का निर्धारण करने में – गुणवत्ता आंकलन जैसा कि नाम से स्पष्ट है इसका अर्थ है किसी व्यावसायिक व शैक्षिक संस्थान या व्यक्ति के प्रदर्शन की गुणवत्ताओं का आंकलन करना जो सेवाएँ वह उपलब्ध करवा रहे है। आंकलन का प्रयोग किया उद्योग, विद्यालय, शिक्षक व डॉक्टर आदि किसी भी गुणवत्ता को जाँच करने हेतु किया जा सकता है।
( 3 ) स्थान निर्धारित करने में – आंकलन का प्रयोग किसी संस्था एवं छात्र का स्थान निर्धारित करने के लिए भी किया जाता है। आंकलन का प्रयोग विभिन्न संस्थाओं का जिला स्तर, राज्य एवं राष्ट्र स्तर पर स्थान निर्धारित करने के लिए किया जाता है। आंकलन के द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि संस्थान या छात्र निर्धारित मानकों या उद्देश्यों की पूर्ति कर रहे हैं अथवा नहीं उसके पश्चात् ज्ञात सूचनाओं के आधार पर उन्हें विभिन्न ग्रेड प्रदान किए जाते हैं।
(4) वैयक्तिक विभिन्नता ज्ञान करने में – एक कक्षा-कक्ष में विभिन्न वैयक्तिक भिन्नता वाले छात्र उपस्थित होते हैं। अतः शिक्षक का कर्त्तव्य होता है कि वह प्रत्येक छात्र की व्यक्तिगत भिन्नता को पहचान कर उसे उचित विधि के माध्यम से अधिगम प्रदान करें। इसके लिए शिक्षक कक्षा में अनेक क्रियाओं एवं गतिविधियों को आयोजित करके माध्यम से उसकी रुचि, क्षमता एवं योग्यता जानने का प्रयत्न करता है।
(5) अनुसंधान करने में – किसी भी वस्तु पर अनुसंधान तभी प्रारम्भ किया जा सकता है, जब उसके बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध हो । उस वस्तु के बारेमें आँकड़े एकत्रित करने के लिए भी हम आंकलन का प्रयोग कर सकते हैं। यदि हमें प्राचीन संस्कृति पर अनुसंधान कार्य, करना है तो इसके लिए हमें विभिन्न ग्रन्थों पुस्तकों, स्थानों आदि से प्राप्त जानकारियों का आंकलन करने के पश्चात् ही उस विषय पर अनुसंधान कार्य प्रारम्भ कर सकते हैं।
( 6 ) पूर्वानुमान लगाने हेतु – पूर्वानुमान लगाने के लिए भी आंकलन का प्रयोग किया जाता है। किसी भी वस्तु या परिस्थिति का आंकलन करने के पश्चात् उससे सम्बन्धी पूर्वानुमान या पूर्वाग्रह का निर्माण किया जाता है। जैसे— मौसम विभाग पूर्व तथा वर्तमान के मौसम का आंकलन करने के पश्चात् ही आगे के मौसम के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करते हैं। ठीक इसी प्रकार एक डॉक्टर अपने मरीज के बताए लक्षणों के आधार पर आंकलन करके उसकी बीमारी का पूर्वानुमान लगाकर ही उसका उपचार प्रारम्भ करता है।
मूल्यांकन (Evaluation) – मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का ही आवश्यक अंग नहीं है बल्कि यह जीवन प्रक्रिया का भी महत्त्वपूर्ण अंग है। शिक्षण क्रिया द्वारा व्यक्ति के तीनों पक्षों अर्थात् ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक तीनों ही पक्षों का विकास किया जाता है। जहाँ मापन का क्षेत्र संकुचित होता है वहीं मूल्यांकन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता है इसलिए मापन की अपेक्षा मूल्यांकन को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा प्रक्रिया, विधियों, प्रविधियों, पुस्तकें, . शिक्षण उद्देश्य सभी शामिल होते हैं व सभी का मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यांकन कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिससे हम पदार्थों का संग्रह कर सकें। इसके द्वारा हम एक निर्णय पर पहुँचते हैं। शिक्षक जब अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अधिगम स्थिति का निर्माण कर लेता है तो वह परीक्षा का निर्माण कर उसे प्रशासित करता है। इस परीक्षा के आधार पर ही वह निर्णय लेता है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति कहाँ तक हुई है ? तथा मूल्यांकन के आधार पर ही शिक्षक को सकारात्मक तथा नकारात्मक पुनर्बलन (Reinforcement) प्राप्त होता है तथा आगे वह उत्तम साधनों का प्रयोग करता है जिससे उसमें उससे सम्बन्धित कौशल का विकास होता है।
मूल्यांकन को शिक्षा प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है क्योंकि वह शिक्षा प्रक्रिया के सभी स्तरों, उद्देश्यों के निर्माण, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, पाठ्यक्रम योजना, परीक्षण आदि सभी में पाया जाता है क्योंकि इसमें बालक सीखने के साथ-साथ वांछित शैक्षिक लक्ष्यों के अनुरूप अपने व्यवहार में भी परिवर्तन लाता है साथ ही साथ इसके द्वारा यह भी जानने का प्रयत्न किया जाता है कि बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास किस सीमा तक हुआ साथ ही विद्यालय में शिक्षण पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ आदि की सफलता के बारे में जानकारी प्राप्त. करने में मूल्यांकन प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है। इसके द्वारा कार्य के विभिन्न स्तरों के अलग-अलग पक्षों का मूल्य निर्धारण किया जाता है।
संक्षेप में, मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत विषयवस्तु की उपयोगिता के विषय में पता चलता है तथा इससे अच्छी तरह परिचित होने में निम्न परिभाषाएँ भी हमारी सहायता कर सकती हैं—
रेमर्स और गैज के अनुसार, “मूल्यांकन के अन्दर व्यक्ति या समाज अथवा दोनों की दृष्टि में जो उत्तम अथवा वांछनीय है उसको मानकर चला जाता है।”
कोठारी आयोग के अनुसार, “अब यह माना जाने लगा है कि मूल्यांकन एक अनवरत् प्रक्रिया है। यह सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है और यह शिक्षण लक्ष्यों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।”
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) के अनुसार, “मूल्यांकन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त किए गए हैं। कक्षा में दिए गए अधिगम अनुभव कहाँ तक प्रभावशाली सिद्ध हुए हैं और कहाँ तक शिक्षा के उद्देश्य पूर्ण किए गए हैं। “
उपरोक्त परिभाषा के विश्लेषण के आधार पर कह सकते हैं—
(i) मूल्यांकन उद्देश्यपूर्ण, व्यापक एवं क्रमबद्ध प्रक्रिया है।
(ii) मूल्यांकन द्वारा व्यक्ति के वांछनीय व्यवहार परिवर्तन का पता लगाया जाता है।
(iii) मूल्यांकन सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण अंग है तथा इसका शिक्षण उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
मूल्यांकन के उद्देश्य एवं कार्य—मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य एवं कार्य निम्न हैं—
(i) मूल्यांकन के द्वारा अन्तिम निर्णय दिया जाता है जिसके आधार पर परीक्षा प्रणाली में सुधार किया जाता है।
(ii) मूल्यांकन के द्वारा छात्रों को निर्देशन व परामर्श दिया जाता
(iii) अनुदेशन की प्रभावशीलता का पता लगाया जाता है।
(iv) बालक के अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों का पता लगाया जाता है।
(v) बालक की अधिगम सम्बधी नवीन प्रविधियों के निर्माण में सहायता प्रदान करना ।
(vi) छात्रों को उनकी प्रगति के सम्बन्ध में जानकारी देना ।
(vii) शिक्षण व्यूह रचना का विकास करना।
(viii) छात्रों का वर्गीकरण किया जाता है।
मूल्यांकन की विशेषताएँ—
(i) मूल्यांकन एक व्यापक प्रत्यय है ।
(ii) यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें विद्यार्थी की प्रगति के बारे में जानने हेतु अनेक तरह के प्रयास किए जाते हैं।
(iii) यह शिक्षण अधिगम परिणामों को परिमाणात्मक एवं गुणात्मक दोनों तरह से प्रस्तुत करता है।
(iv) इसकी विधियों एवं तकनीकियों का क्षेत्र कुछ परीक्षण या परम्परागत तक ही सीमित न होकर बहुआयामी साधनों के प्रयोग हेतु काफी लचीलापन एवं व्यापकता प्रदान करता है।
(v) इसके द्वारा निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के सन्दर्भ में शिक्षक, शिक्षार्थी एवं शिक्षण विधियों तथा शैक्षिक व्यवस्था की गुणवत्ता कैसी रही इसकी जाँच सम्भव है।
मूल्यांकन के क्षेत्र – मूल्यांकन के क्षेत्र के अन्तर्गत विद्यार्थी के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पक्ष प्रमुख रूप से आते हैं—
( 1 ) ज्ञान (Knowledge)–मूल्यांकन में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि विद्यार्थी ने विषय-वस्तु के सम्बन्ध में कितना ज्ञान प्राप्त किया है।
( 2 ) बोध या अवबोध (Comprehension)-बोध से तात्पर्य है कि विद्यार्थी सीखी हुई सामग्री का कितनी प्रकार से व्याख्या करने की क्षमता रखता है।
( 3 ) सूचना (Information)– विद्यार्थी ने ज्ञान के सम्बन्ध में कितनी सूचनाओं का संकलन किया है?
( 4 ) कुशलता (Efficiency)– कुशलताओं का सम्बन्ध पाठ्य विषय से सम्बन्धित कुशलताओं से है।
(5) रुचियाँ (Interests) — विद्यार्थियों की इस योग्यता का सम्बन्ध किसी वस्तु, विषय या क्रिया को पसन्द करने या न करने से है। अभिरुचि परीक्षणों का आयोजन इसी उद्देश्य से किया जाता है।
( 6 ) शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)–शारीरिक स्वास्थ्य का मापन करना मूल्यांकन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इसके लिए प्रश्नावली, स्वास्थ्य, इतिहास तथा निरीक्षण पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में शारीरिक स्वास्थ्य भी एक महत्त्वपूर्ण तत्व है जिसका मापन किए बिना कोई भी मूल्यांकन पद्धति अधूरी कही जाएगी।
( 7 ) प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ एवं मूल्य (Tendencies, Aptitude and Values ) – यह देखना कि विद्यार्थी की अपने विषय में अपने मित्रो से तथा अपने विद्यालय की क्या प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ एवं मूल्य हैं।
(8) बुद्धि (Intelligence) — यह ज्ञात करना कि कुछ विद्यार्थियों द्वारा भूल क्यों की जाती है तथा त्रुटियों की क्यों पुनरावृति करते हैं ?
( 9 ) योग्यताएँ (Abilities) –विद्यार्थियों की उपयोगिताओं को ज्ञात करना । योग्यताएँ सामान्य और विशिष्ट दोनों प्रकार की होती है।
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