आंकलन की प्रक्रिया एवं योजना बताइए। आंकलन कैसे किया जाना चाहिए ।
आंकलन की प्रक्रिया एवं योजना बताइए। आंकलन कैसे किया जाना चाहिए ।
उत्तर—आंकलन की प्रक्रिया (Process of Assessment)—
(1) अवधारणाएँ और प्रक्रियाएँ
(2) वैज्ञानिक तार्किकता
(3) विज्ञान के प्रति सुझाव
(4) समस्या समाधान के लिए विज्ञान का ज्ञान और तकनीकों का उपयोग
(5) सम्प्रेषण ।
बच्चों का आंकलन करने के लिए उनके बौद्धिक विकास की अवस्थाओं को समझने और ध्यान में रखने की आवश्यकता है, साथ ही संदर्भयुत, अर्थपूर्ण स्थितियों में E.V.S. (विज्ञान) प्रक्रियाओं और समस्याओं पर काम करने के अवसर देने की जरूरत है। बच्चों को पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाने चाहिए, जिससे वे E.V.S. (विज्ञान) के क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से अपनी समझ विकसित कर सकें तथा केवल विद्यालयों में करवाये जाने वाले अभ्यासों तक ही सीमित न रहें।
विज्ञान अवधारणाएँ प्रायः श्रेणीबद्ध (नीचे से ऊपर के क्रम की तरफ) रूप से समझाई जाती है और किसी अवधारणा विशेष के लिए उसके पहले की जानकारी आवश्यक होती है। इस तरह की पूर्वपेक्षित जानकारियों का विश्लेषण आंकलन को सार्थकता प्रदान कर सकता है तथा पूर्व अपेक्षित जानकारियों के विश्लेषण पर आधारित आंकलन यह सुनिश्चित करने में मददगार होता है कि बच्चे भी जानते हैं, उसे आत्म विश्वास से प्रस्तुत कर सकते हैं या नहीं।
आंकलन योजना – आंकलन के लिए योजना बनाने और उसका क्रियान्वयन करने से पूर्व, यह अतिआवश्यक है कि बच्चों में उनके सीखने के बारे में समक्ष बनाई जानी चाहिए। बच्चे कैसे समझते हैं या सीखते हैं, इसी आधार पर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान बच्चों के आंकलन की योजना सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
शिक्षक वर्षभर कक्षा के सभी बच्चों का सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान लगातार अवलोकन करें और साथ-साथ सुधारात्मक प्रयास करता रहे। औपचारिक रूप से आंकलन एवं रिकार्डिग निश्चित अन्तराल पर कर सकता है ? आजकल गतिविधि आधारित तरीके से ही की जानी चाहिए। बच्चों के तरह-तरह की गतिविधियाँ करवाकर उनके शैक्षिक स्तर की जानकारी ली जा सकती है ।
आंकलन गतिविधियों, चर्चा, प्रश्न उत्तर के दौरान किया जा सकता है। छात्र की कठिनाइयों को दृष्टिगत रखते हुए उनके विकास के लिए पहले से अधिक प्रभावी योजना बनाई जाए। जैसे किस तरह की गतिविधियाँ उनके लिए उपयुक्त होंगी तथा किस तरह से उन्हें आपस में सीखते हुए प्रोत्साहन दिलाया जा सकता है। प्रत्येक छात्र का विवरण नोट करें तथा टिप्पणी स्पष्ट, सटीक और विश्लेषणात्मक हो ताकि बच्चों को सिखाने के लिए उनका उपयोग हो सके। इसी तरह प्रत्येक चरण के आंकलन के बाद लगातार सिखाने के तरीकों में और सीखने के अवसरों में सुधार करें। आंकलन द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर प्रगति प्रपत्र दें जो सकारात्मक क्रियाओं के लिए संभावनाएं जुटाए तथा छात्रों को बेहतर करने के लिए मदद करें। छात्रों की प्रगति और सीखने से सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की विधियों का प्रयोग करें तथा अगली कक्षा के शिक्षक को भी यह जानकारी उपलब्ध कराएँ ।
(1) प्रदत्त कार्य (Assignment) – कक्षा कार्य तथा गृहकार्य के रूप में विषय वस्तु / थीम आधारित काम करवाए जाते हैं। इसके द्वारा सीखने के उद्देश्यों और विषय-वस्तु के व्यापक दायरे का आंकलन तथा विद्यालय में व विद्यालय से बाहर होने वाले अधिगम को जोड़ा जाता है तथा उसका संश्लेषण करवाया जा सकता है।
(2) पोर्ट फोलियो – पोर्ट फोलियो समय की एक निश्चित अवधि में विद्यार्थियों द्वारा किए गए कामों/कार्यों का संग्रह होता है। ये रोजमर्रा के काम भी हो सकते हैं या फिर विद्यार्थी के काम के उत्कृष्ट नमूने भी हो सकते हैं।
(3) परियोजनाएँ – इसके अन्तर्गत लक्ष्यों का निर्धारण करने के पश्चात् क्रियात्मक एवं व्यवहारात्मक ढंग से ज्ञान प्राप्त किया जाता है। परियोजना के माध्यम से आँकड़ों का संग्रह और विश्लेषण के लिए प्रेरित किया जाता है ।
(4) अवलोकन – छात्रों के बारे में जानकारी प्राकृतिक परिवेश में एकत्रित करनी चाहिए। उनके बारे में कुछ सूचनाएँ अध्यापक के पढ़ाने के दौरान किए गए अवलोकन के आधार पर प्राप्त की जा सकती है। कुछ सूचनाएँ विद्यार्थियों की पूर्व नियोजित गतिविधियों और अर्थपूर्ण अवलोकन पर भी आधारित हो सकती हैं।
(5) चैक लिस्ट- चैक लिस्ट व्यवहारों, लक्षणों, विशेषताओं, प्रतिक्रियाओं या गतिविधियों के सम्बन्ध में जानकारी देती है।
(6) स्व – आंकलन —छात्र अपने कार्यों को स्वयं आँकता अर्थात् जाँचता है या छात्र अपनी प्रगति का स्वयं आंकलन करता है।
(7) विद्यार्थियों से साक्षात्कार – छात्रों से साक्षात्कार करने पर उनकी समझ, संवेदनाओं, विचारों व चिन्तन प्रक्रियाओं के प्रति अन्तर्दृष्टि (Insight) प्राप्त होती है ।
(8) छात्र उत्पादित साधन– छात्रों द्वारा निर्मित अधिगम सामग्री, मॉडल तथा चार्ट की उन्हें सीखने के उपयुक्त और पर्याप्त अनुभव के साथ-साथ विज्ञान के लिए सकारात्मक रुझान उत्पन्न करते हैं।
(9) रेटिंग स्केल – इसका उपयोग विद्यार्थी के काम की गुणवत्ता दर्ज करने और निर्धारित मानदण्डों के आधार पर गुणवत्ता तय करने के लिए समग्र रूप से तैयार रेटिंग स्केल एक अकेले काम के एक अं पूरा आंकलन कर सकता है। रेटिंग स्केल विशेष रूप से समस्या समाधान प्रक्रियाओं के परीक्षण के लिए कौशल स्तरों, दृष्टिकोण और अभिप्रेरण का आंकलन करने में सहायक है।
(10) मौखिक परीक्षा – इसमें छात्रों की किसी विशिष्ट वस्तु या उसके किसी अंश से सम्बन्धित मौखिक अभिव्यक्ति की जाँच की जाती है।
(11) लिखित परीक्षाएँ – छात्रों की अभिव्यक्ति वैज्ञानिक संक्रियाओं का विभिन्न परिस्थितियों में उपयोग अवबोधन, लिखित अभिव्यक्ति की योग्यता का पता चलता है ।
(12) दैनिक डायरी – छात्रों की रुचियों, व्यावहारिक विशिष्टताओं तथा दृष्टिकोण को जानने हेतु दैनिक डायरी का प्रयोग किया जा सकता है।
विकास के अलग-अलग क्षेत्रों की प्रगति तथा अधिगम के बारे में ,जानकारी तथा प्रमाण जुटाने के लिए आंकलन की कोई भी तकनीक या उपकरण अपने आप में अपर्याप्त है। यह अध्यापक को सुनिश्चित करना है कि कौनसी तकनीक या उपकरण किसके लिए उपयुक्त है और उनका प्रयोग कब करना है कि कौनसी तकनीक या उपकरण किसके लिए उपयुक्त है और उनका प्रयोग कब करना है। इसमें अब कोई सन्देश नहीं कि आंकलन शिक्षा का महत्त्वपूर्ण घटक है। विज्ञान विषय में प्रत्येक छात्र को उसके नजरिये से आंकलन की भी आवश्यकता है तभी आंकलन व्यक्तिपरक होगा।
आंकलन कैसे किया जाए– कक्षा में सीखने सिखाने की प्रक्रिया एक बहुत बड़ी समस्या है जो विद्यालय के वातावरण और उसकी संस्कृति पर निर्भर करती है। एक सुरक्षित चिन्तामुक्त, सुविधाजनक और खुशनुमा विद्यालय परिवेश छात्रों को बेहतर तरीके से सीखने और कुछ अधिक हासिल करने में मदद करता है। छात्र कैसे सीखते हैं, इसी आधार पर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान आंकलन की प्रक्रिया सुनिश्चित की जानी चाहिए। आजकल बाल केन्द्रित शब्दावली बहुत अधिक प्रचलन में है। इससे क्या तात्पर्य है ? इसके लिए अध्यापक अध्यापक केन्द्रित कक्षा तथा बाल केन्द्रित कक्षा, दोनों की गतिविधियों की जानकारी जरूरी है।
क्र.सं. अध्यापक केन्द्रित कक्षा—
(i)अध्यापक निर्देश देते हैं और बच्चों से अपेक्षा की जाती है कि वे अनुशासन में रहें।
(ii) अध्यापक के पढ़ाने के दौरान बच्चे सुनते हैं।
(iii) अध्यापक पाठ्यपुस्तक पढ़ते हैं, श्यामपट्ट पर प्रश्न-उत्तर लिखते हैं।
(iv) पाठ्यपुस्तक में दिए गए तथ्यों या अध्यापक द्वारा बताए गए तथ्यों को याद कर लेते हैं ।
(v) कक्षा में अध्यापक का नियंत्रण रहता है। बच्चों की भागीदारी बहुत कम होती है ।
(vi) समय-सारिणी में लचीलेपन का अभाव होता है ।
(vii) सामग्री केवल प्रदर्शन के लिए होती है।
(viii) छात्रों में उकताहट और अरुचि का भाव व्याप्त रहता है।
बाल केन्द्रित कक्षा—
(i) अध्यापक सीखने के अवसर प्राप्त करते हैं सीखने की दिशा देते हैं। बच्चे तरह-तरह की गतिविधियों और कार्यकलापों में क्रियाशील रह सकते हैं।
(ii) अध्यापक ऐसी अधिगम परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है जहाँ बच्चों को अवलोकन करने, खोजबीन करने, प्रश्न करने, अनुभव लेने, विभिन्न अवधारणाओं के प्रति अपनी समझ बनाने के अवसर प्राप्त होते हैं।
(iii) बच्चे स्वयं के लिए ज्ञान का निर्माण करते हैं जो विद्यालय में या विद्यालय के बाहर प्राप्त अनुभवों पर आधारित होता है।
(iv) बच्चे व्यक्तिगत रूप से भी कार्य करते हैं समूह में भी चर्चा करते हैं। अनुभव बाँटते हैं और सहयोग करते हैं।
(v) समय-सारणी में लचीलापन होता है और बच्चे क्या करना चाहते हैं उन पर निर्भर करता है।
(vi) तरह-तरह की सामग्री, उपकरण कक्षा में उपलब्ध रहते हैं और बच्चे इनका उपयोग करते हैं।
(viii) छात्र क्रिया द्वारा शिक्षणा ग्रहण करते हैं, जो उनकी रुचि को कायम रखती है।
छात्रों के सीखने के सम्बन्ध में समझ बनाने तथा विकास के भिन्नभिन्न पहलुओं का आंकलन करने के लिए अध्यापकों को निश्चित रूप से बाल केन्द्रित कक्षा पद्धतियों को अपनाना होगा तभी वह सतत् एवं सारगर्भित आंकलन कर पाने में सक्षम हो पाएगा।
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