आंकलन के नैतिक सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिये।
आंकलन के नैतिक सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर–आंकलन के नैतिक सिद्धान्त (Ethical Principles of Assessements)– किसी व्यक्ति का आंकलन विभिन्न नैतिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जाता है। आंकलन के कुछ प्रमुख नैतिक सिद्धान्त निम्नलिखित हैं—
(1) वैधता (Validity)—वैधता ही यह सुनिश्चित करती है कि आंकलन कार्य एवं सम्बद्ध मानदण्ड छात्रों के अभीष्ट अधिगम परिणामों का यथोचित स्तर पर प्रभावी ढंग से मापन हो रहा है अथवा नहीं। इसलिए आंकलन में वैधता होनी चाहिए।
(2) विश्वसनीयता (Reliable and Rational) —आंकलन का विश्वसनीय होना आवश्यक है क्योंकि यह कार्य की स्पष्ट एवं सुसंगत प्रक्रियाओं की व्यवस्था, अंकन, ग्रेडिंग एवं परिनियमन (Moderation) के लिए आवश्यक है। इसी कारण आंकलन का विश्वसनीय एवं तर्कयुक्त होना आवश्यक है।
( 3 ) समावेशी एवं न्यायसंगत (Inclusive and Equitable) – जहाँ तक सम्भव हो सके शैक्षिक मानकों से समझौता किए बिना ही आंकलन कार्यों एवं प्रक्रियाओं का निर्धारण करना चाहिए तथा साथ ही यह भी सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि उसके माध्यम से किसी व्यक्ति या समूह को कोई नुकसान या हानि न पहुँचे।
(4) प्रबन्धनीय (Manageable) – आंकलन कार्य को निर्धारित समय में अवश्य पूर्ण कर लेना चाहिए जिससे इस प्रक्रिया का अतिरिक्त दबाव कर्मचारियों (शिक्षकों) एवं छात्रों पर न पड़ने पाए। आंकलन के लिए जो भी प्रारूप निर्धारित किया जाए वह विश्वसनीय एवं वैध होना चाहिए इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
(5) स्पष्ट, सुलभ एवं पारदर्शी (Explicit, Accessible and Transparent) — आंकलन के बारे में या आंकलन के माध्यम से प्राप्त सूचनाएँ स्पष्ट, सुलभ एवं पारदर्शी होनी चाहिए। आंकलन कार्य एवं प्रक्रिया की स्पष्ट, यथार्थ (Accurate) एवं सुसंगत (Consistent) जानकारी समय पर छात्रों, कर्मचारी वर्गों (Staff) एवं अन्य बाहरी मूल्यांकनकर्ताओं या परीक्षकों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
(6) कर्मचारी विकास नीतियाँ एवं रणनीतियाँ (Staff Development Policies and Strategies) – आंकलन में कर्मचारी विकास की नीतियों एवं रणनीतियों को भी आवश्यक रूप से सम्मिलित किया जाना चाहिए। छात्रों के आंकलन में सम्मिलित सभी व्यक्ति अपनी भूमिका एवं उत्तरदायित्व के निर्वहन करने में सक्षम होना चाहिए।
(7) योजना प्रारूप का अभिन्न अंग (An Integral Part of Programme Design) — आंकलन योजना प्रारूप का अभिन्न अंग होना चाहिए साथ ही योजना के लक्ष्यों एवं अधिगम परिणामों से सीधे सम्बन्धित होना चाहिए। आंकलन कार्य सदैव मुख्य रूप से विषयों एवं अनुशासन की प्रकृति को प्रतिबिम्बित करना चाहिए लेकिन साथ ही में यह भी सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि आंकलन में छात्रों के सामान्य कौशल एवं क्षमताओं को विकसित करने के अवसर प्राप्त होते भी रहें ।
(8) रचनात्मक एवं योगात्मक आंकलन (Formative and Summative Assessment) — आंकलन के प्रत्येक कार्यक्रम में रचनात्मक एवं योगात्मक आंकलन को अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आंकलन के उद्देश्य की प्राप्ति पर्याप्त रूप से हो रही है अथवा नहीं। इनके साथ ही कई आंकलन कार्यों में नैदानिक आंकलन (Diagnositic Assessment) को भी सम्मिलित किया जाता है।
(9) पृष्ठपोषण (Feedback) — उचित समय पर दिया गया पृष्ठपोषण छात्रों में अधिगम एवं उनमें सुधार की सुविधा को बढ़ावा देता है इसलिए पृष्ठपोषण को आंकलन प्रक्रिया का अभिन्न अंग समझना चाहिए तथा समय-समय पर प्रदान करते रहना चाहिये। जहाँ आवश्यक हो वहाँ छात्रों को रचनात्मक कार्यों के लिए उन्हें उपयुक्त पृष्ठपोषण प्रदान करना चाहिए। छात्रों को प्रत्येक आंकलन कार्य के लिए प्रदान किए जाने वाले पृष्ठपोषण की प्रकृति, विस्तार एवं समय को पहले ही स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए।
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