आलोचनावादी शिक्षक को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ? दिए जाने वाले पृष्ठपोषण पर भी प्रकाश डालिये।
आलोचनावादी शिक्षक को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ? दिए जाने वाले पृष्ठपोषण पर भी प्रकाश डालिये।
उत्तर- शिक्षक ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न चुनौतियों का सामना करता है—छात्रों को ज्ञान प्रदान करते समय उसके समक्ष बालकों की वैयक्तिक भिन्नता, कक्षा वातावरण, शिक्षण विधियों, प्रविधियों एवं सहायक सामग्री के चुनाव सम्बन्धी विभिन्न चुनौतियाँ होती हैं।
शिक्षक का यह प्रयास होता है कि बेहतर विकल्प का चयन कर छात्रों को अधिकतम लाभ पहुँचाया जा सके।
छात्रों के ज्ञानात्मक स्तर को बढ़ाने के लिए शिक्षक विभिन्न प्रकार का कार्य प्रदान करते हैं। इन कार्यों के कठिनाई स्तर क्रमानुसार वृद्धि करते हैं जिससे छात्र एक-एक स्तर को पूर्ण करते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। यदि छात्र शिक्षक की अपेक्षा से कम अथवा अधिक कार्य करते हैं तो उन्हें उचित सकारात्मक एवं नकारात्मक पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है। पृष्ठपोषण पाकर छात्र अपने कार्य को अधिक उत्तम तरीके से करने में सक्षम हो जाते हैं। अतः पृष्ठपोषण उन्हें प्रेरित एवं दिशा निर्देशित करती है।
आलोचनावादी शिक्षक एवं चुनौतियाँ-परम्परावादी शिक्षण के स्थान पर छात्र- शिक्षक एवं शिक्षक-छात्र के मध्य संवाद को प्रमुख स्थान देना चाहिए।
आलोचनात्मक शिक्षण भाषा शिक्षण का एक उपागम है जो शिक्षक विषय-वस्तु के स्थानान्तरण में प्रयुक्त करता है। इसके उपयोग के द्वारा शिक्षक का प्रयास रहता है कि वह छात्रों की सहायता कर उनमें प्रश्नों की पूर्ण समझ का विकास कर सकें।
इरा शोर के अनुसार, “एक छात्र में आलोचनात्मक चेतना का विकास, समझ, पठन, लेखन एवं बोलने के द्वारा होता है।”
आलोचनात्मक शिक्षण में शिक्षक के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ होती हैं-
(1) शिक्षक कम से कम वाद-विवाद की सुविधा प्रदान करने में भूमिका निभाता है। प्रत्येक छात्र को अवसर प्रदान करना शिक्षक के लिए बड़ी चुनौती होती है।
(2) छात्रों को उनकी रुचि के अनुसार दिशा-निर्देशित करना शिक्षक के लिए एक चुनौती होती है।
(3) शिक्षक आलोचनात्मक शिक्षण में समस्त सम्भावित बिन्दुओं पर चर्चा करता है तथा अन्त में मत प्रदान किए जाते हैं। मत किस पक्ष अर्थात् सकारात्मक पक्ष अथवा नकारात्मक पक्ष में जाते हैं, यह शिक्षक के लिए चुनौती होती है। ।
(4) इसमें वैयक्तिक विचारों को महत्त्व दिया जाता है परन्तु प्रत्येक छात्र के विचारों को सम्मिलित करना सरल नहीं होता है।
(5) शिक्षक छात्रों की रुचि के अनुसार छात्रों को विषय-वस्तु उपलब्ध कराता है जिसे वह प्रस्तुत करता है। इस प्रक्रिया में कक्षा की संख्या एवं वैयक्तिक विभिन्नता उसके समक्ष चुनौतियाँ होती हैं।
आलोचनात्मक शिक्षण के रूप में पृष्ठपोषण—शिक्षक शिक्षणअधिगम प्रक्रिया के समय छात्रों को बीच-बीच में पृष्ठपोषण प्रदान करता है। पृष्ठपोषण सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार के होते हैं। सकारात्मक पृष्ठपोषण के द्वारा शिक्षक छात्र के कार्यों अथवा अधिगम के प्रति उत्साहवर्धन करता है जबकि नकारात्मक पृष्ठपोषण उसकी कमियों एवं त्रुटियों के सुधार के लिए प्रदान किया जाता है। शिक्षण में आलोचना को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता होती है। इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लेना चाहिए। किसी के कार्यों का विश्लेषण कर उसकी त्रुटियों एवं सकारात्मक कार्यों के प्रति दिया गया विचार पृष्ठपोषण का कार्य करता है। पृष्ठपोषण छात्र की शिक्षण कमियों को दूर कर बेहतर शिक्षण कार्य के प्रति प्रेरित करता है।
पृष्ठपोषण को देने के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं—
(1) उपचारात्मक उद्देश्य इसके द्वारा शिक्षक छात्रों की कमियों की सुधार कर उन्हें प्रभावशाली शिक्षक बनाया जाता है।
(2) विकासात्मक उद्देश्य शिक्षकों छात्रों के शिक्षण में सुधार करके उसके गुणों का विकास किया जाता है।
(3) नवाचारात्मक उद्देश्य शिक्षण की भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए शिक्षकों छात्रों के नए-नए शिक्षण कौशलों में पारंगत करने के लिए उत्साहित करना।
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