एक शिक्षक को शारीरिक अशक्तता सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़ियों को समाप्त करने के लिए कौन-कौनसे उपाय करने चाहिए ?
एक शिक्षक को शारीरिक अशक्तता सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़ियों को समाप्त करने के लिए कौन-कौनसे उपाय करने चाहिए ?
उत्तर— एक शिक्षक को शारीरिक अशक्तता सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़ियों को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए—
(1) सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास–शिक्षक को समाज में जो व्यक्ति अशक्तता से युक्त हैं, उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। समाज के व्यक्ति शारीरिक रूप से अशक्त व्यक्ति के प्रति सदैव नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं कि वह कुछ नहीं कर सकता। इसके बारे में भी शिक्षक को यह सिद्ध करने का प्रयास करना चाहिए कि ये भी अन्य सामान्य शक्तियों की भाँति सभी कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार शारीरिक अशक्तता के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को समाप्त करके सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करने का प्रयास करना चाहिए।
(2) मानव धर्म का ज्ञान – एक शिक्षक को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि स्वयं वह मानव धर्म के अनुसार कार्य करे तथा समाज में भी मानव धर्म का व्यापक प्रसार करे, जिससे प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक रूप से अशक्त व्यक्तियों की सहायता करने तथा उनको विकास के अवसर प्रदान करने को पुण्य का कार्य तथा धार्मिक कार्य समझे। इससे समाज में शारीरिक अशक्तता से सम्बन्धित व्यक्तियों के प्रति पूर्वाग्रह एवं रूढ़ियाँ समाप्त हो सकेंगी।
(3) अभिप्रेरणा अभिप्रेरणा का स्वरूप बहुआयामी होना चाहिए। प्रथम, शिक्षक को शारीरिक रूप से अशक्त छात्रों एवं व्यक्तियों को प्रेरित करना चाहिए कि वह सभी कार्य कर सकते हैं तथा उनको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। द्वितीय, समाज के व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करनी चाहिए कि यदि एक विकलांग या शारीरिक रूप से अशक्त छात्र आगे बढ़ता है तो उनके समाज का नाम होगा। स्वयं शिक्षक को भी प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए, जब वह विकलांगों एवं शारीरिक छात्रों को सामान्य छात्रों की भाँति कार्यों को सम्पन्न करते हुए देखता है । इस प्रकार सभी को प्रेरित करते हुए शिक्षक को समाज से शारीरिक अशक्तता सम्बन्धित पूर्वाग्रहों को समाप्त करना चाहिए ।
(4) उत्तरदायित्व का ज्ञान – एक शिक्षक को सदैव अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान रखना चाहिए तथा समाज के व्यक्तियों को भी उनके उत्तरदायित्व का ज्ञान प्रदान कराना चाहिए। शारीरिक अशक्तता से युक्त छात्रों को अधिक सहायता प्रदान करना एक शिक्षक का व्यावसायिक एवं मानवीय दायित्व है। इसी प्रकार एक सामाजिक प्राणी होने के कारण एक व्यक्ति को सदैव अपने उत्तरदायित्वों पर सर्वाधिक ध्यान शारीरिक अशक्तता से युक्त व्यक्तियों के प्रति देना चाहिए, क्योंकि समाज में जब उनको सहायता नहीं मिलेगी तो उनका विकास पूर्णतः अवरुद्ध हो जायेगा।
(5) मानवीय मूल्यों का विकास – शिक्षक को स्वयं अपने अन्दर मानवीय मूल्यों का विकास करना चाहिए, जिससे वह मानवता का दृष्टिकोण रखते हुए विद्यालय में विकलांग एवं अशक्त छात्रों के प्रति आत्मीय व्यवहार का प्रदर्शन कर सके तथा सामान्य छात्रों की तुलना में उन पर अधिक ध्यान दे सके। इसके साथ-साथ समाज के व्यक्तियों को भी शिक्षक को बताना चाहिए कि शारीरिक रूप से असशक्त व्यक्तियों का सहयोग करना एवं उनको सम्मान देना, उनका प्रमुख मानवीय कर्त्तव्य
(6) सहयोग की प्रवृत्ति का विकास – शिक्षक को सर्वप्रथम अपने मन में शारीरिक रूप से अशक्त छात्रों एवं व्यक्तियों के प्रति सहयोग की भावना विकसित करनी चाहिए। समाज के व्यक्तियों को भी ऐसे व्यक्तियों को सहयोग करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। एक छात्र अन्धे व्यक्ति को सड़क पार कराता है तथा वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करता है तो ऐसे छात्र को सम्मानित किया जाना चाहिए तथा इस कार्यक्रम में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित करना चाहिए, जिससे उनमें शारीरिक अशक्तता से युक्त व्यक्तियों के प्रति सहयोग की भावना विकसित हो सके ।
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