कक्षा-कक्ष में ज्ञान निर्माण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए ।

कक्षा-कक्ष में ज्ञान निर्माण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर — कक्षा-कक्ष में ज्ञान-निर्माण का स्वरूप निम्नवत होता है –
(1) विकसित करना—छात्र विचार रखते हैं जिन्हें वे बाद में महसूस कर सकते हैं कि वे विचार वैध नहीं हैं, सही नहीं हैं, अपर्याप्त है जिनके आधार पर नवीन ज्ञान की व्याख्या नहीं की जा सकती। ये विचार ज्ञान के एकीकरण हेतु अस्थायी सोपान माने जा सकते हैं। रचनात्मक शिक्षण छात्र के वर्तमान संप्रत्ययों को आधार बनाकर ही आगे की रणनीति तैयार करती है। जब कोई छात्र नई जानकारी प्राप्त करता है तो रचनात्मक मॉडल के अनुसार वह इस ज्ञान की तुलना अपने पूर्व ज्ञान से करता है और इस सम्बन्ध में तीन बातें सामने आ सकती हैं
नवीन ज्ञान पुराने ज्ञान से अच्छी तरह से मेल खा जाता है इसलिये छात्र इसे अपने ज्ञान में सम्मिलित कर लेते हैं।
नवीन ज्ञान पुराने ज्ञान से मेल नहीं खाता। अतः छात्र को अपने पूर्व ज्ञान में परिवर्तन करना होता है ताकि इसे नवीन जा सके।
नवीन ज्ञान पूर्व ज्ञान से बिल्कुल मेल नहीं खाता। इसलिये इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
( 2 ) सहयोगी–रचनात्मक कक्षा-कक्ष छात्रों के मध्य आपसी सहयोग पर अत्यधिक निर्भर करता है। इसके अनेक कारण हैं कि सहयोग अधिगम में क्यों योगदान देता है। रचनावाद में इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि छात्र अधिगम स्वयं से ही नहीं सीखते बल्कि वह अपने संगी-साथियों से भी बहुत कुछ सीखते हैं। जब छात्र अधिगम प्रक्रिया के अन्तर्गत साथ-साथ विचार-विमर्श करते हैं तब वह एकदूसरे से अनेक प्रकार की प्रविधियों एवं विधियों को अपनाने में समर्थ होते हैं।
( 3 ) सक्रिय–छात्र वह व्यक्ति है जो नये ज्ञान की खोज स्वयं के लिये ही करता है। अध्यापक का कार्य मात्र उसका दिशा-निर्देश प्रदान करना होता है अथवा उनके विचारों में संशोधन तथा सुझाव देना । वह छात्र को प्रयोग करने, प्रश्न पूछने तथा कुछ बेकार पड़ी निर्जीव चीजों को सक्रिय बनाने के लिये उत्साहित करता है।
(4) खोज आधारित – रचनात्मक कक्षा-कक्ष में सबसे मुख्य क्रिया समस्या समाधान है। छात्र खोज-विधि का प्रयोग प्रश्न पूछने तथा प्रकरण निकालने में करते हैं तथा उनके उत्तर एवं हल खोजने में अनेक साधनों का प्रयोग करते हैं। जैसे-जैसे छात्र प्रकरण का विकास करता है वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करता है। प्रकरण के विकास के साथ-साथ निष्कर्षों की पुष्टि में भी मदद मिलती है।
(5) प्रतिबिम्बित—छात्र अपनी अधिगम प्रक्रिया को स्वयं नियन्त्रित करते हैं तथा वे अपना रास्ता स्वयं के अनुभवों के आधार पर तय करते हैं। यह प्रक्रिया उन्हें स्व-अधिगम में दक्ष बनाती है। इस सन्दर्भ में अध्यापक उनकी सहायता सही परिस्थितियों का निर्माण करके करता है जहाँ वे खुलकर विचार-विमर्श कर सकें।
(6) रचनात्मक—छात्र मात्र कोरी स्लेट नहीं है जिस पर ज्ञान उकेरा जा सके। वे अधिगम परिस्थितियों का सामना उनमें पहले से ही उपस्थित ज्ञान, समझ एवं विचारों के आधार पर करते हैं। यह पूर्व ज्ञान एक प्रकार से नये ज्ञान के सृजन में मूल-सामग्री का काम करता है।
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