गुप्तकालीन बिहार का इतिहास (Guptas Period History of Bihar)
गुप्तकालीन बिहार का इतिहास (Guptas Period History of Bihar)
मौर्यों के समय मगध जो भारतीय इतिहास का केंद्र बिंदु था, मौर्यों के पतन के बाद मगध पर शुंग, कण्व जैसे कमजोर ब्राह्मण वंशों का शासन रहा। इस समय कुषाण, शक आदि ने भी मगध पर आक्रमण किया, शासन किया, लेकिन चौथी सदी के प्रारंभ में गुप्त वंश की स्थापना के साथ ही मगध ने अपनी ख्याति पुनः अर्जित कर ली। प्रारंभिक गुप्त शासकों ने पाटलिपुत्र को ही अपनी राजधानी बनाया और भारतीय इतिहास में मगध एवं पाटलिपुत्र के केंद्रीय महत्व को स्थापित किया।
गुप्त वंश (Gupta Empire)
संस्थापक – श्रीगुप्त
गुप्त वंश के संस्थापक महाराजा श्रीगुप्त थे, जिन्होंने 240 ई. में गुप्त वंश की स्थापना की। इनका पुत्र घटोत्कच था। घटोत्कच का पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम था। गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक चंद्रगुप्त को ही माना जाता है, जिसका शासन काल 319-335 ई. तक था। 319 ई. में गुप्त संवत् प्रारंभ हुआ, जिसका संबंध वल्लभी संवत् से है। चंद्रगुप्त प्रथम ने पहली बार ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि ग्रहण की।
चंद्रगुप्त प्रथम के बाद समुद्रगुप्त (335-375 ई.) शासक बना। समुद्रगुप्त की जानकारी, का प्रमुख स्रोत प्रयाग प्रशस्ति है। समुद्रगुप्त (Samudragupta) को ‘भारत का नेपोलियन (Napoleon of India)’ भी कहा जाता है। सर्वप्रथम उसने गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र के शासकों को पराजित कर अपने राज्य में मिलाया। उसने पंजाब, असम, नेपाल, बंगाल, तमिलनाडु के क्षेत्र आदि को अपने राज्य में सम्मिलित किया। उसने शक और कुषाण शासकों को पराजित कर पश्चिमी एवं पश्चिमोत्तर भारत पर अधिकार स्थापित किया।
समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी चंद्रगुप्त द्वितीय (Chandragupta II) ने सौराष्ट्र एवं मालवा को जीतकर गुप्त साम्राज्य में मिलाया। इसके शासन काल को भारत का स्वर्ण युग’ कहा जाता है। इसने 375-412 ई. तक शासन किया। चंद्रगुप्त द्वितीय के उत्तराधिकारियों को विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा। इसमें हूणों का आक्रमण सबसे महत्त्वपूर्ण था। हूण शासक मिहिरकुल ने पाटलिपुत्र पर चढ़ाई कर नरसिंहगुप्त बालादित्य को पराजित किया। छठी शताब्दी ई. के मध्य तक मगध के क्षेत्र पर परवर्ती गुप्त वंश का नियंत्रण था, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों पर मौखरी वंश की सत्ता स्थापित हो गई थी।
गुप्त काल विद्या-कला और सांस्कृतिक जीवन में उत्कृष्ट उपलब्धियों का युग माना जाता है। राजनीतिक शांति और सुदृढता, आर्थिक समृदिध और सांस्कृतिक विकास के कारण इस काल को प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। इस काल के विख्यात विद्वानों में वराहमिहिर, आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के नाम महत्वपूर्ण हैं। गणित, खगोलशास्त्र और दर्शन के क्षेत्र में इनकी देन अविस्मरणीय है। गुप्त काल में ही नालंदा महाविहार की स्थापना हुई। इसका संस्थापक कुमारगुप्त था। कालांतर में यह विद्या का प्रमुख केंद्र बना, जहाँ बड़ी संख्या में विदेशी छात्र भी आते थे। चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी यात्री फाहियान भारत आया। वह बिहार के क्षेत्र में आया और तीन सालों तक पाटलिपुत्र में रहा। कला के क्षेत्र में इस काल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में बोधगया का महाबोधि मंदिर और नालंदा महाविहार के अवशेष हैं।
Key Notes –
- गुप्त वंश के संस्थापक महाराजा श्रीगुप्त थे, जिन्होंने 240 ई. में गुप्त वंश की स्थापना की।
- गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक चंद्रगुप्त को ही माना जाता है, जिसका शासन काल 319-335 ई. तक था।
- चंद्रगुप्त प्रथम ने पहली बार ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि ग्रहण की।
- समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ भी कहा जाता है।
- चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल को भारत का स्वर्ण युग’ कहा जाता है।
- हूण शासक मिहिरकुल ने पाटलिपुत्र पर चढ़ाई कर नरसिंहगुप्त बालादित्य को पराजित किया।
- गुप्त काल को प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है।
- गुप्त काल के विख्यात विद्वानों में वराहमिहिर, आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के नाम महत्वपूर्ण हैं।
- गुप्त काल में ही नालंदा महाविहार की स्थापना हुई। इसका संस्थापक कुमारगुप्त था।
- चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी यात्री फाहियान भारत आया।
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