गैर-तकनीकी व गैर-वैज्ञानिक दृष्टिकोण उपागम को समझाइये ।

गैर-तकनीकी व गैर-वैज्ञानिक दृष्टिकोण उपागम को समझाइये ।

उत्तर – गैर तकनीकी व गैर-वैज्ञानिक दृष्टिकोण—गैरतकनीकी गैर-वैज्ञानिक दृष्टिकोण में विषयनिष्ठ, व्यक्तिगत, सौन्दर्यात्मक, स्वत: शोध (Heuristic), कार्य सम्पादनात्मकता पर बल दिया जाता है। प्रस्तुत दृष्टिकोण के अन्तर्गत अधिगमक पर बल दिया जाता है न कि उत्पादन के निर्गत पर, विशेषकर शिक्षण एवं अधिगम में गतिविधि उन्मुख उपागम द्वारा प्रस्तुत उपागम में, वे व्यक्ति जो पाठ्यक्रम से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं, इसके नियोजन में भाग लेते हैं। शिक्षार्थी अपने आपको अन्य किसी से बेहतर जानते हैं अतः वे उन अभिगम अनुभवों की पहचान एवं चयन करने में सक्षम होते हैं जो उनके ज्ञानात्मक ( विकास एवं सामाजिक विकास को आगे बढ़ा सकें। प्रस्तुत दृष्टिकोण (व्यक्तियों के स्व-प्रत्यक्षीकरणों एवं व्यक्तिगत पसन्दों, उनके द्वारा उनकी स्व आवश्यकताओं का मापन एवं स्व-समन्वय के लिए उनके प्रयास / पर केन्द्रित होता है। प्रस्तुत दृष्टिकोण के अन्तर्गत निम्नलिखित मॉडल (आते हैं—
मुक्त कक्षा मॉडल मुक्त —कक्षा मॉडल गतिविधि पाठ्यक्रम पर आधारित है। विलियम किलपेट्रिक का मानना था कि पाठ्यक्रम की अग्रिम योजना बनाना अनुपयुक्त शैक्षिक व्यवहार है। हाल्ट (1972) ने बताया कि मुक्त कक्षा एक ऐसा वातावरण है जिसमें शिक्षार्थियों की (गतिविधियों उनकी रुचियों से उत्पन्न होती हैं। शिक्षक को पाठ्यक्रम । नियंत्रित नहीं करनी होती अपितु उसे ऐसा वातावरण तैयार करना होता है 1 जिससे छात्रों की गतिविधियाँ उनकी रुचियों से प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होती है। हाल्ट ने बताया कि पाठ्यक्रम नियोजन प्रोढ़ों द्वारा शिक्षार्थियों के कार्य में हस्तक्षेप है। हम जितना उनके कार्यों में हस्तक्षेप व रंगे, उतना । कम समय हम उन्हें उनकी वास्तविक आवश्यकताओं की पहचान एवं | सन्तुष्टि के तरीके खोजने के लिए देंगे। हम उन्हें जितना दा पढ़ायेंगे उतना ही कम वे हमें समझेंगे।
विन्स्टेन एवं फन्तिनी मॉडल—प्रस्तुत मॉडल द्वारा शिक्षक नयी विषयवस्तु एवं तकनीकों को उत्पन्न कर वर्तमान पाठ्यक्रम, विषयवस्तु |एवं तकनीकों की सार्थकता का निर्धारण कर सकते हैं। इस मॉडल द्वारा (सामाजिक मनोवैज्ञानिक कारकों को ज्ञान से जोड़ा जाता है।
सर्वप्रथम यह ज्ञात किया जाता है कि समूह रूप में शिक्षार्थी कौन है ? उनकी समान रुचियों एवं विशेषताओं का ज्ञान शिक्षण के लिए पूर्वपेक्षित हैं। इसके पश्चात् शिक्षार्थियों की रुचि की पहचान की जाती
विन्स्टेन एवं फन्तिनी ने इन परिणामों की चर्चा निम्न प्रकार की  हैं—
शिक्षाशास्त्री परिणामों का निर्धारण करने के पश्चात् संगठित विचारोंसामान्यीकरणों विचारों, नियमों एवं संकल्पनाओं जिनके करीब विशिष्ट पाठ्यक्रम विषयवस्तु को विकसित किया जायेगा, का चयन करते हैं। संगठित विचारों के चयन के पश्चात् विषयवस्तु वाहकों का चयन करते हैं। इस प्रतिमान में विषयवस्तु परम्परागत स्रोतों, विद्यालय के बाहर के अनुभवों अथवा शिक्षार्थियों के स्वयं के अनुभवों से प्राप्त किया जा । सकता है। परम्परागत ज्ञानात्मक सामग्री के अलावा विषयवस्तु निम्न तीन भागों में संगठित की जाती है—
(1) व्यक्ति के अनुभवों से प्राप्त विषयवस्तु ।
(2) भावात्मक विषयवस्तु ।
(3) वे अनुभव जिन्हें व्यक्ति ने सामाजिक सन्दर्भ में सीखा है।
रोजर्स मॉडल–कार्ल आर. रोजर्स ने मानव व्यवहार परिवर्तन के लिए एक मॉडल दिया, जिसका उपयोग पाठ्यक्रम विकास के लिए किया जाता है। उसने विषयवस्तु अथवा अधिगम गतिविधियों के स्थान पर मानव अनुभवों पर बल दिया।
रोजर्स मॉडल का उपयोग समूह अनुभवों का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग व्यक्तिगत एवं समूह समस्याओं के समाधान के लिए भी किया जाता है। उसके अनुसार समूह अनुभवों के द्वारा व्यक्तियों को अपने आपको एवं एक-दूसरे को पूर्णतः जानने का अवसर मिलता है जो कि अन्य सामाजिक स्थितियों में जानना सम्भव नहीं है। खुलेपन एवं ईमानदारी के द्वारा विश्वास उत्पन्न होता है, जिसकी सहायता से प्रत्येक प्रतिभागी नवाचारात्मक एवं निर्माणात्मक व्यवहारों का चयन एवं परीक्षण कर सकते हैं।
रोजर्स ने बताया कि एक सप्ताह के निम्न समूह अनुभवों द्वारा विद्यालयीन प्रशासकों में पर्याप्त परिवर्तन लाया जा सकता है।
(1) वे दूसरों की बातें ज्यादा सुनते हैं एवं अपने विश्वासों का कम बचाव करते हैं।
(2) वे नवाचारात्मक विचारों से डरते नहीं हैं।
(3) व अधिक प्रजातांत्रिक एवं व्यक्ति उन्मुख होते हैं।
(4) अपने अधिकारियों एवं अधीनस्थों के साथ सम्प्रेषण के लिए अधिक इच्छुक होते हैं।
(5) वे अपने कर्मचारियों के साथ अधिक खुले होते हैं।
(6) वे प्रतिपुष्टि (टिप्पणी) प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं।
एक सप्ताह के गहन समूह अनुभवों के पश्चात् शिक्षकों में निम्न परिवर्तन होने चाहिए कि वे—
(1) शिक्षार्थियों को अधिक उत्सुक होकर सुनें।
(2) शिक्षार्थियों के नवीन विचारों को उत्सुकता से स्वीकार करें।
(3) शिक्षार्थियों के साथ सम्बन्धों की अधिक उत्सुकता से खोज करें।
(4) शिक्षार्थियों की रुचियों की प्राप्ति के लिए विषय-वस्तु एवं अधिगम गतिविधियों में परिवर्तन हेतु अधिक इच्छुक हों।
(5) शिक्षार्थियों के साथ कार्य करने एवं उनकी समस्याओं के हल में सहायता करने के इच्छुक हों।
(6) शिक्षण में अधिक प्रजातांत्रिक हो ।
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