चार्वाक के अनुसार ज्ञान को स्पष्ट कीजिये ।

चार्वाक के अनुसार ज्ञान को स्पष्ट कीजिये ।

उत्तर – चार्वाक के अनुसार ज्ञान–चार्वाक केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है किन्तु वह प्रत्यक्ष का लक्षण कैसे करता है यह ज्ञात नहीं। अनुमान का आधार व्याप्ति होती है जो हेतु और साध्य, लिंग और लिंगी के बीच साहचर्य का नियम है। हम पर्वत में धूम देखकर अग्नि का अनुमान करते हैं। यह पर्वत पक्ष है जहाँ धूम की उपस्थिति पाई जाती है। पर्वत में धूम का होना पक्षधर्मता कहलाती है, पक्षधर्मता और व्याप्ति दोनों से अनुगृहीत लिंग की लिंगी अर्थात् अग्नि का अनुमापक होता है। प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानने वाले चार्वाक के मत से चार ही तत्त्व पदार्थ है अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु । वे आकाश नाम के पाँचवें भूत को नहीं मानते क्योंकि वह प्रत्यक्ष गम्य नहीं है। चार भूतों के योग से चैतन्य उत्पन्न हो जाता है। देह से भिन्न कोई आत्मा नहीं है। इसलिए पुनर्जन्म, स्वर्ग, अपवर्ग आदि को मानना भी व्यर्थ है। जीवन एकमात्र ध्येय सुख है। चार्वाक वर्ण आश्रम आदि से सम्बन्धित क्रियाओं को कर्त्तव्य या धर्म नहीं मानता क्योंकि उन सभी का सम्बन्ध वेदों की प्रामाणिकता एवं स्मृतियों की मान्यता से है। चार्वाक के अनुसार प्रत्यक्षीकरण ही ज्ञान का वैध स्रोत है। उनके अनुसार गैर-प्रत्यक्षीकरण स्रोत जैसे निर्णय करना, आप्त वचन तथा शब्द जो ज्ञान के परोक्ष स्रोत हैं, वे व्यक्ति को भटका सकते हैं, इसलिए हमें प्रत्यक्षीकरण पर ही विश्वास करना चाहिए।
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