जल प्रदूषण के क्या कारण है ? जल प्रदूषण को रोकने की विधियों को स्पष्ट कीजिए।

जल प्रदूषण के क्या कारण है ? जल प्रदूषण को रोकने की विधियों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- जल प्रदूषण के कारण-जल एक सार्वभौमिक विलायक है अर्थात् अधिकतर पदार्थ जल में सरलता से घुल जाते हैं। जल के इसी गुण के कारण यह आसानी से प्रदूषित हो जाता है। जल प्रदूषण का एक विशिष्ट स्रोत नहीं होता। बल्कि इसके विभिन्न स्रोत होते हैं और उनका सामूहिक प्रभाव ही जल में प्रदूषण का कारण बनता है। जल प्रदूषण के दो मुख्य स्रोत हैं—
( 1 ) प्राकृतिक स्रोत- प्राकृतिक रूप से भी जल में कुछ मलिनताएँ मिली हो सकती हैं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
(i) – घुली हुई गैसें— कार्बन डाई ऑक्साइड (Carbon-di(oxide), हाइड्रोजन सल्फाइड (Hydrogen Sulphide ) अमोनिया, नाइट्रोजन आदि । –
(ii) घुलनशील लवण– कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम के लवण पानी में घुलकर इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
(iii) अघुलनशील मलिनताएँ— मिट्टी, रेत, कीचड़ के बारीक कण पानी में तैरते रहते हैं और इसके स्वाद, गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं ।
( 2 ) मानवीय स्रोत – जल प्रदूषण के मानवीय स्रोत निम्न हैं—
(i) वाहित मल – जल प्रदूषण का मुख्य कारण वाहित मल है। जनसंख्या में वृद्धि, शहरीकरण आदि ने इस समस्या को अधिक गंभीर बना दिया है।
(ii) औद्योगिक बहि:स्राव औद्योगिक गतिविधियों में अत्यधिक जल का उपयोग होता है। यह जल उदन प्रक्रिया में चलता हुआ अन्ततः औद्योगिक बहि:स्राव के रूप में बाहर निकलता है। इस बहिःस्राव में अनेक अम्ल, क्षार, रासायनिक पदार्थ जैसे— क्रोमियम, गंधक, कास्टिक सोड़ा आदि हानिकारक तत्त्व मिले होते हैं जिनके कारण जल प्रदूषित हो जाता है। –
(iii) घरेलू बहिःस्राव — जल हमारे जीवन की विभिन्न क्रियाओं के लिए आवश्यक है, जैसे—भोजन बनाना, नहाना, कपड़े धोना आदि। परन्तु इन क्रियाओं में मनुष्य द्वारा उपयोग के पश्चात् जल दूषित हो जाता है।
(iv) कृषि बहिःस्राव– कृषि क्षेत्र में आजकल बहुत से उर्वरकों जैसे— नाइट्रेट, पोटाश, फास्फेट, यूरिया आदि का प्रयोग प्रमुखता से किया जा रहा है। ये उर्वरक कीटनाशक आदि रासायनिक पदार्थ पानी के साथ बहकर जल में मिल जाते हैं और इनसे जल स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं।
(v) नाभिकीय परीक्षण-आज प्रत्येक देश दूसरे से अधिक शक्तिशाली होने के लिए नाभिकीय परीक्षण करते हैं। नाभिकीय परीक्षण से अत्यधिक ऊर्जा निकलती है जिससे जल का तापमान बढ़ जाता है। उसमें रेडियोधर्मिता के उत्पन्न होने से जल प्रदूषित हो जाता है।
(vi) तेल अधिप्लाव–समुद्र में तेल के बिखरने से यह पानी के ऊपर एक पतली-सी परत बना देता है। इससे समुद्री जीवों को साँस लेने में कठिनाई होती है।
जल प्रदूषण का नियंत्रण – जल प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लिये जाते हैं—
(1) कारखानों से निकलने वाले जल एवं अपशिष्ट को उचित रूप से उपचारित करना चाहिए।
(2) शहरों व कस्बों से निकलने वाले वाहित मल का उपचार करने के बाद ही जल को नदी-नालों में छोड़ना चाहिए।
(3)घरेलू व कृषि कार्यों से बहि:स्राव होने वाले जल में से ठोस पदार्थ फास्फोरस, नाइट्रोजन आदि के अणु तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों को साफ करके ही जल को स्रावित करना चाहिए।
(4) प्रदूषित जल के उपचार के लिए सूक्ष्मजीवों का उपयोग करने की प्रविधियाँ विकसित करनी चाहिए।
(5) जल स्रोतों— नदी, झीलों, तालाबों एवं कुओं के किनारे पर साबुन से नहाने, कपड़े धोने आदि पर रोक लगानी चाहिए।
(6) सामान्य लोगों को जल प्रदूषण एवं इसकी रोकथाम से परिचित कराया जाना चाहिए।
(7) ऐसे उद्योग जो जल को शीतलक के रूप में प्रयोग करते हैं, उनके लिए पानी के टैंक बनाना अनिवार्य कर देना चाहिए, जिनमें गर्म जल को ठण्डा करने के पश्चात् ही जल स्रोतों में छोड़ा जाए जिससे जल में उपस्थित प्रजातियों को नुकसान न पहुँचे।
(8) जल प्रदूषण को रोकने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा जल प्रदूषण निवारण के लिए बनाए गए कानूनों का, सख्ती से पालन करना चाहिए।
(9) उत्पादन की कार्यशैली में बदलाव लायें। ऐसी कार्यशैली को अपनाना चाहिए जिससे पानी की आवश्यकता एवं उसका प्रदूषण कम हो।
(10) प्रदूषित जल को प्रदूषक उपचारक इकाइयों द्वारा उपचारित करके जल का पुन: उपयोग करना चाहिए।
(11) नदियों में शव-प्रवाह पर रोक लगानी चाहिए।
(12) बालकों और व्यक्तियों को जल प्रदूषण, इसके हानिकारक प्रभावों और नियंत्रण करने के तरीकों के सम्बन्ध में शिक्षा दी जानी चाहिए।
(13) शिक्षा का उद्देश्य ‘स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण’ निर्धारित किया जाना चाहिए ।
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