जागरूकता एवं आत्म-सम्मान से आप क्या समझते हैं ? सकारात्मक आत्म-सम्मान में वृद्धि के लिए किन-किन घटकों को ध्यान रखना चाहिए ?

जागरूकता एवं आत्म-सम्मान से आप क्या समझते हैं ? सकारात्मक आत्म-सम्मान में वृद्धि के लिए किन-किन घटकों को ध्यान रखना चाहिए ?

उत्तर–आत्मसम्मान से तात्पर्य—आत्म विकास के लिए व्यक्ति, शिक्षक या दोनों में आत्मसम्मान की प्रवृत्ति होनी आवश्यक है। आत्मसम्मान के बिना एक शिक्षक अपने आपको उठाने में असमर्थ होता है।
आत्मसम्मान एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शान्ति है। आत्मसम्मान के कारण ही महान कार्यों के सम्पादन में सरलता और सफलता मिलती है। यह प्राणी की आन्तरिक भावना होती है जिसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है।
आत्मसम्मान जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। जो युवावस्था में आगे धकेलता है प्रौढ़ावस्था में सबलता प्रदान करता है और नवीनता प्रदान करता है। इसलिए व्यक्ति को नकारात्मक निराशा, असफलता के शब्दों की जगह सकारात्मक आशावादी शब्दों को रोपण और सृजन करना चाहिए। एक शिक्षक के रूप में अपने शिक्षार्थी को आत्मसम्मान का महत्त्व शिक्षक द्वारा बताए जाने की आवश्यकता है। शिक्षक विद्यार्थियों को सकारात्मक विचारों, आशावादी क्रियाओं, विजयी आदत, प्रोत्साहन, उत्साह तथा प्रेम के शब्दों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें जिससे उनमें आत्मविश्वास की भावना का उदय होगा जो उनके आत्मसम्मान को बढ़ाने में सहायक होगी। आत्मसम्मान बढ़ाने के लिए फ्रांसीसी दार्शनिक एमीश कुएँ की उक्ति सर्वथा उपयुक्त कही जा सकती है “हर दिन हर प्रकार से मैं बेहतर और बेहतर बन रहा हूँ।”
सकारात्मक आत्म-सम्मान में वृद्धि के लिए ध्यान रखने योग्य घटक— सकारात्मक आत्म-सम्मान में वृद्धि के लिए निम्नलिखित घटकों को ध्यान में रखना चाहिए
( 1 ) घर–घर में रहने वाले सदस्यों के मध्य सम्बन्ध आपके आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति बढ़ने के साथ अपने परिवार की मनोवृत्तियाँ एवं प्रतिक्रियाओं की नकल करता है। यह वह अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति प्रभावी रूप से अधिगम करता है।
परिवार के सदस्य आपके विचारों को स्वयं एवं दूसरों के लिए, प्रभावित करते हैं। जिस प्रकार परिवार के सदस्य क्रियाएँ करते हैं, आप उसी प्रकार व्यवहार करते हैं।
(2) विद्यालय–सहपाठियों, शिक्षकों, स्कूल प्रशासको पर्व सलाहकारों के साथ सम्बन्ध को आत्म-सम्मान भी प्रभावित करता है, क्योंकि यह वह स्थान है जहाँ बालक सीखता है। विद्यालय कार्य, खेल, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ अनुशासन इत्यादि का अनुभव व्यक्ति की वृद्धि में आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(3) समाज – व्यक्ति कई प्रभावी दंगों से सीखता है। समाज में आप पर अलग-अलग धर्मों, संस्कृतियों और जातियों का प्रभाव ही सकता है। दूसरों के द्वारा बनाए गए मानक एवं छवियों का अनुभव भी आपकी प्रभावित करता है। समाज एवं समुदाय की प्रकृति भी व्यक्ति को संशोधित करने में सहायता करती है।
(4) प्रहस्तन – आप कैसे चुनौतियों एवं अवसरों से समझौता करते हैं यह आपके आत्म-सम्मान एवं स्व-जागरुकता को प्रभावित करते हैं। चुनौतियाँ आपकी प्रशिक्षित कर वर्तमान के लिए तैयार करती मैं सहायता करते हैं। आप किसी स्थिति से निपटने के लिए कैसे प्रशिक्षित हैं यह आपके आत्म-सम्मान के निर्माण में सहायक होता है।
(5) सफलता– फलता जी आप प्राप्त करते हैं, क्रम सफलता या अनुभव आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है। जैसे-जैसे व्यक्ति अधिकता की प्राप्त करता है उसके आत्म-सम्मान में वृद्धि होती है। आप सोचते हैं कि आप कर सकते हैं तथा कार्यों को करने का प्रयास करते हैं। आगे जब आप इस प्रकार की स्थिति का सामना करते हैं तो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आप सक्षम हो जाते हैं।
(6) लोकप्रियता – लोकप्रियता के अनुसार ही लोग आपके साथ व्यवहार करते हैं। लोगों के द्वारा किए गए व्यवहार तथा प्रतिक्रिया आपको प्रभावित करता है। स्लोग आपको कैसे पसन्द करते हैं अथवा न पसन्द करते हैं यह उसके आत्म-सम्मान के लिए आवश्यक होता है। जब आप लोगों से प्रशंसा प्राप्त करते हैं तो आपको गर्व का अनुभव होता है।
( 7 ) लिंग– विभिन्न जीवन स्तरों में आत्म-सम्मान को लिंग भी प्रभावित करता है। लिंग स्त्री एवं पुरुषों के मध्य विभेद करता है। विभेद व्यक्ति के आत्म-सम्मान को प्रभावित कर सकता है। यह दोनों लिंगों में रूढ़िबद्धता की भावना का विकास कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति लिंग के अनुसार ही व्यवहार करता है इसलिए लिंग आत्म अवधारणा को प्रभावित करता
है ।
( 8 ) मीडिया – मीडिया नकारात्मक तरीके से व्यक्ति के आत्मसम्मान एवं जागरूकता को प्रभावित कर सकता है। यह नकारात्मक परिवर्तन अधिकतर लड़कियों में उनके किशोरावस्था में देखा जाता है। लड़कियाँ प्राय: मॉडल एवं आन्दोलित करने वाली छवियाँ पसन्द करती हैं तथा वे उसे देखना पसन्द करती हैं। अपना ही शरीर उन्हें असन्तुष्ट बना देता है। जब व्यक्ति अपने कमजोर अथवा बेडौल शरीर की छवि को देखता है तथा अन्य मॉडल अथवा कलाकार से तुलना करता है तो अवसाद एवं चिन्ता से ग्रसित हो जाता है।
( 9 ) प्रतिपुष्टि– दूसरे आपके बारे में क्या बताते हैं, वे आपकी आलोचना कैसे करते हैं तथा एक व्यक्ति के रूप में वे आपके साथ कैसे व्यवहार करते हैं, यह प्रतिपुष्टि श्रीम से पता चलता है।
आपके दोस्तों, परिवार, शिक्षक एवं रोल मॉडल की प्रतिपुष्टि आपके आत्म-सम्मान के लिए आवश्यक होता है। ये लोग सकारात्मक प्रतिपुष्टि प्रदान कर आपकी सहायता करते हैं। ये लोग आपका ध्यान रखते हैं तथा इनके नकारात्मक प्रतिपुष्टि के पीछे सुधार एवं परिवर्तन का उद्देश्य छिपा होता है।
( 10 ) परिणाम/घटनाएँ—अच्छे एवं बुरे अनुभव तथा जीवन में घटित विभिन्न घटनाएँ आपके जीवन की अद्भुत कहानी का निर्माण करते हैं। आपके समक्ष विभिन्न विकल्प होते हैं जिनके चुनाव का निर्णय आपके हाथ में होता है। ये सब वे चीजें हैं जो आपके दिन का निर्माण करते हैं तथा ये आपके जीवन को प्रभावित करते हैं। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसका सामना कैसे करते हैं तथा इससे कैसे प्रभावित होते हैं।
(11) आय–वह एक मध्यम वर्गीय परिवार में पला-बढ़ा, इसलिए | उसके माता-पिता जैसे सामान्य जीवन जीने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार आय व्यक्ति को बेहतर जीवन-यापन करने तथा आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता करते हैं। ये व्यक्ति के आत्मप्रभावित करते हैं।
( 12 ) शिक्षा– शिक्षा व्यक्ति के आत्म-सम्मान एवं आत्मसम्प्रत्यय को प्रभावित कर सकती है। सहयोगी शिक्षक अच्छे कार्यों हेतु छात्रों को प्रोत्साहित कर सकते हैं। खराब शिक्षा व्यवस्था बेरोजगारी का प्रमुख कारण है। इस प्रकार शिक्षा के द्वारा रोजगार प्राप्तकर्त्ता के आत्मसम्मान में वृद्धि तथा बेरोजगारों के आत्म-सम्मान में कमी होती है।
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