जातिवाद से आप क्या समझते हैं ? भारत के सम्बन्ध में जातिवाद के दोष विवेचित कीजिए।
जातिवाद से आप क्या समझते हैं ? भारत के सम्बन्ध में जातिवाद के दोष विवेचित कीजिए।
उत्तर— हमारा समाज पूर्णरूप से जातियों में विभाजित है। जाति व्यक्तियों का वह समूह है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर सदस्यता दी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उसके अधिकार तथा कर्त्तव्य निर्धारित होते हैं। प्रत्येक जाति के अपने सामाजिक समारोह, धार्मिक नीतियाँ, रहन-सहन तथा सामाजिक मेल-जोल के ढंग होते हैं विवाह स्वयं की जातियों तक सीमित होते हैं जिसके सामाजिक, मानसिक, नैतिक लाभ होते हैं ।
जाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ–जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के कास्ट ‘Cast’ का हिन्दी अनुवाद है । अंग्रेजी के (Cast) शब्द की व्युत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के ‘Casta’ शब्द से हुई है जिसका अभिप्राय मत, विभेद एवं जाति से लिया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने जाति को परिभाषित किया है—
मजूमदार एवं मदान के अनुसार, “जाति एक बन्द वर्ग है ।’
मैक्स वेबर के अनुसार, “जाति एक बन्द प्रस्थिति समूह है ।
” कूले के अनुसार, “जब एक वर्ग पूर्णत: आनुवांशिकता पर आधारित हो तो हम उसे जाति कहते हैं।” “
जे. एच. हट्टन के अनुसार, “जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत एक समाज अनेक आत्म-केन्द्रित एवं एक दूसरे से पूर्णतः पृथक् इकाइयों (जातियों) में विभाजित रहता है। इन इकाइयों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध ऊँच-नीच के आधार पर सांस्कृतिक रूप से निर्धारित होते हैं। “
जाति व्यवस्था भारतीय सामाजिक परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण कारक है। जाति प्रथा जो व्यवसाय पर आधारित थी, जन्म के नियम से जुड़ गयी तो समाज गतिहीन बन गया। इससे समाज की प्रगति रुक गयी । समाज में प्रतिशोध की भावनाएँ अधिक दृढ़ हो गईं।
छुआछूत के कारण समाज के एक बड़े भाग को दुःखद परिस्थितियों में रहना पड़ा। सबसे निम्न वर्ग के लोगों को छूना पाप समझा जाने लगा। जाति व्यवस्था राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक एकीकरण के लिए हानिकारक है। यह व्यवस्था सामाजिक परिवर्तन में एक अवरोध के रूप में कार्य कर रही है। जातिवाद प्रजातंत्र के लिए खतरा बन जाता है। यह नैतिक पतन एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। यह औद्योगिक कुशलता, सामाजिक समरसता को कम करता है तथा देश की प्रगति में बाधक है।
इस तरह जातिगत रूढ़िवादिता भारत की एक चुनौती है। यह जातिवाद के रूप में पायी जाती है। जातिवाद के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एक सामाजिक दूरी पाई जाती है एवं लोगों को असमान तरीकों से समाज में स्थान मिलता है।
जातिवाद के दोष- जातिवाद के प्रमुख दोष निम्नलिखित है—
(1) राष्ट्रीय एकता में बाधक – जातिगत रूढ़िबद्धता देश की राष्ट्रीय एकता तथा प्रगति में बहुत बड़ी बाधा है क्योंकि जातिगत रूढ़िबद्धता के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति जातियों में बँटा होता है जो राष्ट्रीय हितों के स्थान पर जातिगत हितों को प्राथमिकता देता है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न जातियों के लोग परस्पर एक नहीं हो पाते तथा उनमें राष्ट्रीय एकता तथा हम की भावना का विकास नहीं हो पाता है। अतः जातिगत भावना राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा बन जाती है।
(2) प्रजातंत्र का विरोधी – जातिगत रूढ़िबद्धता प्रजातंत्र की विरोधी है। हमारा प्रजातंत्र स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे की भावना का पोषण करने वाली है जबकि जातिगत रूढ़िबद्धता ऊँच-नीच एवं असमानता पर बल देती है अतः ये दोनों ही एक-दूसरे के विरोधी है।
(3) व्यावसायिक प्रगतिशील में बाधक – प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवसाय होना एवं व्यक्ति को जाति के बाहर व्यवसायों को चुनने की स्वतंत्रता न होना जातिगत रूढ़िबद्धता का ही परिणाम है जिसके कारण व्यावसायिक प्रगतिशीलता में रुकावट उत्पन्न होती है क्योंकि व्यक्ति दूसरे व्यवसायों में दक्ष होने पर भी अपने ही जातीय व्यवसाय में उलझा रहता है ।
(4) आर्थिक विकास में बाधक – जातिगत रूढ़िबद्धता के कारण कई प्रकार के उद्योगों में श्रम विभाजन उचित प्रकार से नहीं हो पाता। इसका कारण यह है कि उच्च जातियों के लोग कारखानों में निम्न कार्य करना नहीं चाहते। जातिगत रूढ़िबद्धता के कारण योग्य व्यक्तियों को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल पाता एवं अयोग्य व्यक्ति उच्च पदों तक पहुँच जाते हैं। ये सभी स्थितियाँ देश के आर्थिक विकास में रुकावट हैं ।
(5) प्रगति में बाधक – जातिगत रूढ़िबद्धताएँ व्यक्ति तथा समाज की प्रगति में बाधक होती हैं। इसी रूढ़िबद्धता के कारण लोग अपनी ही परम्पराओं से चिपके रहते हैं एवं नवीन आविष्कारों को अपनाने से डरते हैं। अतः वे अपना विकास नहीं कर पाते तथा पूरा देश अन्य देशों की तुलना में पिछड़ जाते हैं।
(6) निम्न जातियों का शोषण – जातिगत रूढ़िबद्धता के कारण ही निम्न जातियों से कठोर श्रम कराया जाता है एवं उन्हें मलिन एवं घृणित कार्य सौंपे जाते हैं तथा बदले में निम्न पारिश्रमिक दिया जाता है।
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