जीवमण्डल से आप क्या समझते हैं ? जीवमण्डल के कितने भाग हैं ?
जीवमण्डल से आप क्या समझते हैं ? जीवमण्डल के कितने भाग हैं ?
उत्तर— मनुष्य दैनिक जीवन में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर आश्रित है। अपने सारे कार्यों के सम्पादन के लिए आवश्यक ऊर्जा जो कि उसे भोजन एवं पेय पदार्थों के रूप में मिलती है, के लिए भी उसे पर्यावरण पर ही निर्भर रहना पड़ता है। पर्यावरण से ही उसे अपने जीवन के संचालन के लिए जल, वायु एवं अन्य वस्तुएँ; जैसे—रहने का आवास, पहनने के लिए कपड़े सभी मिलते हैं।
प्रकृति में घटने वाली सारी घटनाएँ — जलवायु परिवर्तन, वर्षा, सूखा, बाढ़, वायुमण्डलीय तापमान में कमी या बढ़ोत्तरी—सभी पर्यावरणीय घटकों पर ही निर्भर करती है। पर्यावरणीय घटकों में असन्तुलन या मनुष्यों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध शोष या विदोहन ने ही सूखा, अकाल, बाढ़, महामारी, प्राणवायु, ऑक्सीजन की कमी, दिनों दिन वायुमण्डल का बढ़ता तापमान जैसी प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दिया है, जिससे पृथ्वी पर उपस्थित जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
मनुष्य एवं पर्यावरण न तो एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं और न ही ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है। एक के अस्तित्व से दूसरा प्रभावित होता है। अतः मनुष्य को अपनी कार्य प्रणालियों एवं गतिविधियों में परिवर्तन लाना होगा, जिससे पर्यावरण स्वच्छ एवं सन्तुलित रहे और उस पर निर्भर मानव जाति एवं समस्त प्राणधारी की समस्त मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और वह सुखमय जीवन बिता सके । विकृत पर्यावरण में मनुष्य अनेक समस्याओं से ग्रसित होता है और उनका जीवन कष्टमय हो जाता है। अत: पर्यावरण को स्वच्छ एवं सन्तुलित रखना समस्त जीवधारियों के अस्तित्व के लिए जरूरी है ।
वर्तमान औद्योगिक युग में मनुष्य प्रकृति के भण्डारों का अविवेकपूर्ण तरीकों से दोहन कर उस पर अपना आधिपत्य करना चाहता है। इससे हवा, पानी, और भोजन में जहर घुल गया है जो कि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। कहीं वनों को काटा जा रहा है तो कहीं वनस्पतियों को नष्ट किया जा रहा है। प्राकृतिक सम्पदा के भण्डार धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। धरती बंजर हो रही है। मरुस्थल बढ़ रहे हैं और कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है। उत्पादन कम हो रहा है। प्राकृतिक सन्तुलन रहा बिगड़ रहा है।
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