ज्ञान के निर्माण में शिक्षक का योगदान स्पष कीजिए|

ज्ञान के निर्माण में शिक्षक का योगदान स्पष कीजिए|

उत्तर—ज्ञान के निर्माण में शिक्षक का योगदान शिक्षक को यह समझना चाहिए कि, प्रत्येक विद्यार्थी अपनी व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर अलग-अलग प्रकार से सीखता है, न कि उसके द्वारा आरोपित ज्ञान से। इसलिए ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका को अल्बर्ट आइंसटीन के इस कथन से भी समझा जा सकता है। उनके अनुसार, “मैं अपने शिष्यों को कभी नहीं पढ़ाता, मैं केवल उनको वो परिस्थितियाँ उपलब्ध कराता हूँ, जिनमें वे सीख सकते हैं।” इस प्रकार शिक्षक की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है
(1) शिक्षकों को विद्यार्थियों के साथ संवाद करना चाहिए, क्योंकि यही संवाद विद्यार्थियों को ज्ञान का निर्माण करने में सहायता देता है।
(2) शिक्षक की भूमिका, अन्तःक्रियात्मक होती है तथा वह सुगमकर्त्ता के रूप में विद्यार्थियों के अधिगम को, अर्थ स्थापना को तथा ज्ञान निर्माण को सरल बनाता है।
(3) शिक्षक को, विद्यार्थियों की जिज्ञासा को प्रेरित करना चाहिए। ऐसे अनुभव प्रदान करने चाहिए, जिससे बालकों के मस्तिष्क में क्यों ? कैसे ? सम्बन्धी प्रश्न पनपे और वे स्वयं उनका उत्तर प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हो जाऐं।
(4) शिक्षक को ज्ञान की रचना हेतु निम्नलिखित विद्यार्थीकेन्द्रित उपागमों का उपयोग कक्षा-कक्ष में करना चाहिए
आनुभाविक अधिगम
समस्या समाधान
अन्वेषण
सहभागी अधिगम
सामाजिक अन्वेषण
प्रत्यय चित्रण
समूह कार्य अनुभव
क्रिया आधारित अधिगम
प्रायोजना विधि
स्व-नियन्त्रित अधिगम
(5) शिक्षक को पूर्ण से अंश की ओर सिद्धान्त का पालन कक्षा-कक्ष में करना चाहिए।
(6) शिक्षक ज्ञान निर्माण का सरलीकरण करने वाला है। इसलिए उसे मार्गदर्शक बनकर, शिक्षक मुक्त चिन्तन उपलब्ध कराने में सहयोगी बनना चाहिए।
(7) शिक्षक को विद्यार्थियों के प्रश्नों तथा रुचियों का ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई विद्यार्थी प्रश्न पूछे तो उसे अनावश्यक न कहकर, अपितु उसे उस प्रश्न के समाधान तक स्वयं पहुँचने हेतु प्रेरित करना चाहिए एवं उसके विचारों को धैर्य से सुनना चाहिए।
(8) विद्यार्थियों में उच्च स्तर के चिन्तन कौशलों के विकास हेतु, उनको शारीरिक क्रियाओं के साथ-साथ अधिकाधिक Hands on Experience प्रदान कर, उच्च मानसिक क्रियाओं जैसे-चिन्तन, प्रत्यक्षण, विचार, तर्क, निर्णय आदि के विकास के लिए अधिगम अनुभव प्रदान करने चाहिए। विद्यार्थियों का मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के साथ ही जुड़ा हुआ होना चाहिए। मूल्यांकन की प्रक्रिया में, विद्यार्थियों से प्रश्न करने पर उत्तर प्राप्त करना तथा उनकी परीक्षा लेने जैसी परम्परागत मूल्यांकन विधियों के स्थान पर, विद्यार्थियों द्वारा किए जाने वाले कार्य, अवलोकनों तथा उनके दृष्टिकोण को महत्त्व देना चाहिए। के अधिगम
(9) शिक्षक को अनुदेशन की अपेक्षा विद्यार्थियों पर बल देना चाहिए।
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