ज्ञान के स्रोतों के नाम लिखिए। किसी एक की व्याख्या कीजिए।

ज्ञान के स्रोतों के नाम लिखिए। किसी एक की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-ज्ञान के स्रोत ज्ञान के स्रोत निम्नलिखित हैं
(1) प्राथमिक स्रोत
(2) द्वितीयक स्रोत–(i) सत्तात्मक स्रोत, (ii) अप्रमाणिक स्रोत(a) अनुभवजन्य ज्ञान (b) इन्टरनेट से प्राप्त सामग्री।
(3) सामाजिक अन्तःक्रिया
(4) परम्पराओं एवं कक्षाओं से प्राप्त ज्ञान
(5) अन्तर्राष्ट्रीय अन्तःक्रिया
(6) अन्तः प्रज्ञा अथवा अन्तर्दृष्टि
(7) तर्क-चिन्तन एवं बुद्धि ।
अनुभवजन्य/अनुभवसिद्ध ज्ञान– यह ज्ञान प्राथमिक इन्द्रियों जैसे—आँख (देखना), कान (सुनना), जीभ (स्वाद), नाक (सूँघना) एवं अनुभव आदि के माध्यम से प्राप्त होता है। कभी-कभी कुछ उपकरणों का प्रयोग हमारी इन्द्रियों के सहायक के रूप में किया जाता है। जैसेकम्प्यूटर काला है। अर्थात् अनुभवजन्य साक्ष्य, डाटा अथवा ज्ञान को इन्द्रियानुभव के रूप में भी जाना जाता है। यह ज्ञान अथवा ज्ञान के स्रोत का सामूहिक पद है जिसे इन्द्रिय माध्यमों की सहायता से अवलोकित अथवा प्रयोग किया जाता है।
अनुभववाद संवेदी धारणा/अनुभव एवं अवलोकन के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने का एक सिद्धान्त है। अनुभवजन्य ज्ञान प्रायः बाह्य अवलोकन; जैसे दृष्टि, गन्ध स्पर्श एवं श्रवण द्वारा वर्णित होता है। अनुभवजन्य विधि वैज्ञानिक विधि के समरूप है परन्तु समान नहीं।
अनुभवजन्य ज्ञान प्राथमिकताओं का ज्ञान है जो कि जन्मजात विचारों पर केन्द्रित वाद-विवाद एवं अन्य एक जैसे विचारों जैसे कि सत्य, विश्वास एवं न्याय आदि पर आधारित है। जॉन लॉक का विश्वास है हमारे अनुभव हमें सरल एवं जटिल विचारों के साथ परिभाषित करते हैं। लॉक ने एक उदाहरण द्वारा समझाया है कि यदि कोई अपना हाथ आग से जला लेता है परन्तु वह भी बर्फ के एक ठण्डे टुकड़े पर, तब निष्कर्ष का एक प्रकार यह होगा कि यह गर्मी नहीं है जो जलने का कारण है बल्कि तापमान में अन्तर है। इस प्रकार लॉक का विचार है कि सरल संवेदना एवं अनुभव आधारों के लिए अमूर्त विचारों की आवश्यकता होती है।
लॉक का मानना है कि ज्ञान विभिन्न प्रकार के विचारों की तुलना से भी प्राप्त किया जा सकता है। वे मानते हैं कि काले का विचार सफेद रंग के साथ विपरीत हो सकता है और अन्य विचार जिनका एक साधारण स्रोत होता है जैसे कि प्रकाश एवं आग जो एक साथ चलते हैं। ये सभी सूचनाएँ ज्ञान निर्माण के तरीके हो सकते हैं। लॉक का विचार है कि ज्ञान के तीन प्रकार हैं- सहज, प्रदर्शनात्मक एवं संवेदनशील ज्ञान। सहज ज्ञान, “काला सफेद नहीं है” यह ज्ञान का सबसे निश्चित प्रकार है। प्रदर्शनात्मक ज्ञान तब होता है जब हम अपने सरल विचारों एवं विशिष्ट विचारों को एक साथ रखते हैं। संवेदी ज्ञान के सन्दर्भ में लॉक का मानना है कि यह सबसे अधिक अनिश्चित है क्योंकि यह केवल इन्द्रियों के साक्ष्यों पर निर्भर करता है।
लॉक की प्रतिक्रिया प्राथमिक एवं माध्यमिक गुणों के अस्तित्व में निहित है। काले एवं सफेद के उसके सिद्धान्त से तात्पर्य प्राय: नए बच्चे के जन्म के समय उसके मन में विचारों को परिभाषित किया गया है क्योंकि उसने न कोई अन्य चीजें देखी न कोई रंग और न ही कोई फल चखा। धीरे-धीरे वह अपनी इन्द्रियों के माध्यम से इन सभी तथ्यों का अनुभव करने लगता है। यह सभी प्रभाव उसके समझ एवं इन्द्रियों द्वारा निर्मित होते हैं तथा मन में स्थापित हो जाते हैं। इस प्रकार मानव बुद्धि की पहली क्षमता है कि मन उस प्रभाव को प्राप्त करता है। बाह्य तत्त्व इन्द्रियों के माध्यम से अथवा स्वयं के प्रयासों द्वारा उन पर प्रभाव को दशति हैं।
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