ट्रांसजेण्डर के मुख्य मुद्दों को लिखिए।
ट्रांसजेण्डर के मुख्य मुद्दों को लिखिए।
उत्तर-ट्रांसजेण्डर के मुद्दे ट्रांसजेण्डर व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से उनकी कुछ भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक अवस्था से सम्बन्धित मुद्दे निम्नलिखित प्रकार हैं
(1) लिंग डिस्फोरिया— जेण्डर डिस्फोरिया को लैंगिक अवसाद भी कहते हैं। जेण्डर डिस्फोरिया में व्यक्ति को स्वयं की शारीरिक एवं मानसिक बनावट में अन्तर दिखाई पड़ता है। लिंग डिस्फोरिया में जैविक या प्राकृतिक त्रुटि के कारण स्त्री शरीर में पुरुष मन या पुरुष शरीर में स्त्री मन हो जाता है। यह परिवर्तन जैविक एवं प्राकृतिक त्रुटि के अतिरिक्त हॉमोन्स परिवर्तन के कारण भी होता है। इस प्रकार के व्यक्ति एक ही शरीर में दो तरह के जीवन जीने की चाहत रखते हैं। जिससे इस प्रकार के व्यक्तियों में असंतोष, चिन्ता बेचैनी एवं अवसाद जैसे अन्य लक्षण प्रदर्शित होते हैं। लैंगिक डिस्फोरिया व्यक्ति के लैंगिक विकास एवं अभिव्यक्ति समस्याएँ उत्पन्न करता है। इसी सम्बन्ध में डॉ. कालरा का कहना है कि जेण्डर डिस्फोरिया में व्यक्ति पूरी तरह से लड़की या लड़का नहीं बनना चाहता है उसे अपनी शारीरिक संरचना पसंद रहती है पर उसका मानसिक स्तर विपरीत होता है। अधिकांश ट्रांसजेण्डर इसी के शिकार होते हैं जो शारीरिक रूप से लड़के होते हैं पर वे मानसिक रूप से लड़कियों जैसा व्यवहार करते हैं।
(2) बाल्यावस्था–बच्चे के उचित व्यवहार के बारे में मातापिता उनके हाव-भाव एवं संकेतों से भली-भाँति एवं जल्दी पता लगा लेते हैं। इस अवस्था में ट्रांसजेण्डर बालक की पहचान उनके खेल की पसन्द तथा पहनावा आदि से होती है यदि कोई ट्रांसजेण्डर लड़का है तो उसकी लड़कियों के खेल जैसे गुड़िया खेलना आदि में रुचि होती है। इस उम्र के बच्चों का विचार अपना स्वयं का एक हिस्सा है। उनके अन्दर जो भाव छिपा रहता है उसे वे पाने के लिए उससे सम्बन्धित खेलों व कार्यों को प्रारम्भ करते हैं। जिससे माता-पिता के समक्ष उसके लैंगिक पहचान के लिए एक प्रमुख मुद्दा उपस्थित हो जाता है। इन परिस्थितियों में ट्रांसजेण्डर बच्चे के माता-पिता को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन इन परिस्थितियों में उन्हें धैर्य से कार्य करना चाहिए।
( 3 ) तरूणावस्था तरूणावस्था विशेष रूप से एक कठिन अवस्था होती है क्योंकि शारीरिक परिवर्तन एवं लिंग विशिष्टताएँ (बाह्य एवं आंतरिक शारीरिक विकास) प्रारम्भ होती है। इसी समय ट्रांसजेण्डर युवा में शारीरिक विकास न होने पर उनमें निराशा के भाव उत्पन्न होने लगते हैं। ट्रांसजेण्डर व्यक्तियों के निराशाजनक भावों को दूर करने के लिए कुछ मुद्दों के बारे में पता किया गया। जैसे—लिंग परिवर्तन या ट्रांसजेण्डर के रूप में स्वयं को स्वीकार करना आदि। जहाँ पहले ट्रांसजेण्डर युवाओं को समाज से बाहर कर दिया जाता था। आज ट्रांसजेण्डर युवा अपने परिवार के साथ रहकर उनका सहयोग कर सकता है तथा उनका सहयोग प्राप्त कर सकता है। तरूणावस्था में लैंगिक पहचान हो जाने के बाद चिकित्सीय सुविधा के द्वारा लैंगिक परिवर्तन किया जा सकता है। इससे तरूण अर्वाछित लैंगिकता के भौतिक प्रभाव का सामना करने से बच सकता है।
(4) वयस्कता -इस अवस्था में वयस्क भावनात्मक एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण अपने विचारों को व्यक्त करने में स्वतंत्रता महसूस करते हैं। इसी प्रकार ट्रांसजेण्डर भी वयस्क होने पर अपने अन्दर छिपी लैंगिकता तथा इससे सम्बन्धित मुद्दों पर स्वतंत्रता पूर्वक विचार करते हैं तथा अपनी लैंगिकता की पहचान को संक्रमित करते हैं। फिर भी, इनके सम्बन्ध में केन्द्र सरकार द्वारा चलाई गई कुछ सेवाओं की जानकारी न होने के कारण या परिवार एवं अन्य दायित्वों के कारण ये अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते हैं। कुछ ट्रांसजेण्डर व्यक्तियों को जब लम्बे समय तक इन मुद्दों की जानकारी नहीं प्राप्त होती है तथा जब वे इसके विषय में सोचना या महसूस करना बन्द कर देते हैं तब उन्हें इनके संक्रमण के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। अवांछित लैंगिकता में इतने समय तक रहने के कारण उनमें अवसाद की अधिकता हो सकती है ।
(5) सभी अवस्थाओं में ट्रांसजेण्डर व्यक्तियों की पहचान को छिपाना एक रहस्य है जिससे उनमें अलगाव का भाव उत्पन्न होने लगता है तथा उनमें अवसाद एवं चिन्ता उत्पन्न होने लगती है। ट्रांसजेण्डर वयस्कों में 50% आत्महत्या का विचार बना लेते हैं तथा 50% इस दुविधा में पड़े रहते हैं कि वे लड़का हैं या लड़की । इस प्रकार ट्रांसजेण्डर व्यक्ति यह सोचते हैं कि उनकी पहचान गलत है या लिंग विभेद । वे अपनी पहचान को या तो छिपाने की कोशिश करते हैं या तो वे अपनी इच्छानुसार लड़का-लड़की एक स्त्री के रूप में प्रस्तुत करते हैं। अतः उनका प्रथम मार्ग भावनात्मक विकास के लिए समस्याओं से भरा होता है तथा दूसरा मार्ग–समाज के समक्ष ट्रांसजेण्डर के रूप में पेश होने पर समाज की कठोर प्रतिक्रियाओं को प्रकाश में लाना माना जाता है।
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