दिव्यांगता के मानवाधिकार प्रतिमान की व्याख्या कीजिए।

दिव्यांगता के मानवाधिकार प्रतिमान की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – दिव्यांगता का मानवाधिकार प्रतिमान (The Human Right Model)–निःशक्तता का मानवाधिकार प्रतिमान निःशक्तता को मानव संस्कृति के एक आवश्यक पहलू के रूप में स्वीकार्य करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों को कुछ मूल अधिकार प्राप्त होने चाहिए, जिसका सरोकार उनकी विशिष्ट या विभिन्न स्थितियों से नहीं होना चाहिए। यह प्रतिमान यह सुनिश्चित करता है कि निःशक्त व्यक्तियों को भी उतने ही अधिकार प्राप्त हैं जितने कि एक सामान्य/ स्वस्थ व्यक्ति को प्राप्त हैं। यह प्रतिमान मानवाधिकार के सार्वजनिक उद्घोष, 1948 पर आधारित है जो यह कहता है सभी मनुष्य स्वतन्त्र हैं एवं वे समान अधिकार एवं समान प्रतिष्ठा के हकदार हैं।
मानवाधिकार मॉडल को 1980 के दशक में विकलांगों को देखभालके लिए एक अपरिवर्तनीय प्रतिमान के रूप में चिह्नित किया गया। वर्ष 1981 के नारे “पूर्ण सहभागिता एवं समानता” के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विकलांगों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दशक घोषित किया गया। इस प्रकार 1983 से 1992 का दशक विकलांगों अधिकार संवर्द्धन तथा अन्य मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, “रोजगार प्राप्त करने का अधिकार, मतदान का अधिकार, सम्पत्ति के स्वामित्व के अधिकार का उपयोग करने के लिए विकलांग व्यक्ति भी सामान्य नागरिक के समान हकदार  है।
इस तरह मानवाधिकार मॉडल व्यक्ति एवं उसमें निहित मर्यादाओं पर केन्द्रित है। इस प्रतिमान के द्वारा असमर्थता की समस्याओं तथा उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्य द्वारा जवाबदेही की कमी की एक सभ्य समाज द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार यह राज्य आदेशानुसार सबके लिए समान अधिकार, मर्यादाओं एवं पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक रूप से असमर्थियों के मार्ग में आने वाली समस्याओं के समाधान एवं उनके उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
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