निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए—

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(अ) कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना
(ब) उज्ज्वला योजना

(स) महिलाओं के लिए अधिनियम
उत्तर – ( अ ) कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना– राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में स्त्री शिक्षा के विकास तथा प्रसार पर विशेष बल दिया गया । फलस्वरूप सरकार ने भी इस ओर अपने प्रयास तेज कर दिए। दसवीं पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों के प्रवेश पर विशेष ध्यान दिया गया। सरकार के सामने ग्रामीण, पिछड़ा, दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अल्पसंख्यकों की बालिकाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा को सर्वसुलभ व्यवस्था कराने का प्रश्न था । इसके लिए जुलाई, 2004 में सरकार ने “कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना” का प्रारम्भ किया । इस योजना का उद्देश्य दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाली बच्चियों के लिए आवासीय विद्यालय स्थापित करना था । वर्तमान में यह योजना देश के 28 प्रान्तों और केन्द्रशासित प्रदेशों में चलाई जा रही है ।
कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना के उद्देश्य — यह योजना निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के सम्बन्ध में चलाई गई है—
(1) कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का मुख्य उद्देश्य विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करने वाली अभिवंचित वर्ग की बालिकाओं के लिए आवासीय विद्यालय के माध्यम से गुणवत्तायुक्त प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराना है।
(2) माता-पिता/अभिभावकों को उत्प्रेरित करना जिससे – बालिकाओं को कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय में भेजा जा सके।
(3) मुख्य रूप से ऐसी बालिकाओं पर ध्यान देना जो विद्यालय से बाहर (अनामांकित) हैं तथा जिनकी उम्र 10 वर्ष से ऊपर है।
(4) विशेषकर एक स्थान से दूसरे स्थान घूमने वाली जाति या समुदायों की बालिकाओं पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना ।
(5)  75 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति / अत्यन्त पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक समुदाय की बालिकाओं तथा 25 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवाी बालिकाओं को कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका वि में प्राथमिकता के आधार (5) पर नामांकन कराना।
कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना का कार्य क्षेत्र – अतः इस योजना के अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्र आते हैं—
(1) जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक तथा पिछड़े वर्गों की बालिकाएँ स्कूलों में प्रवेश नहीं ले रही हैं वहाँ कस्तूरबा गाँधी विद्यालय खोले गए ।
(2) जिन क्षेत्रों में लड़कियों का साक्षरता प्रतिशत कम है उन क्षेत्रों में ये विद्यालय स्थापित किए गए।
(3) उन क्षेत्रों में ये विद्यालय खोले गए जहाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए यातायात का कोई साधन नहीं है ।
(4) जिन क्षेत्रों में लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय नहीं हैं उन क्षेत्रों में ये विद्यालय स्थापित किए गए।
(5) इन विद्यालयों में 75% स्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े और अल्पसंख्यकों की बालिकाओं के लिए आरक्षित हैं और 25% स्थान गरीबी रेखा से नीचे किसी भी वर्ग ही बालिकाओं के लिए आरक्षित है।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2014-15 तक लगभग 3600 ऐसे विद्यालयों को स्वीकृति दी जा चुकी थी तथा लगभग 3590 विद्यालय खोले जा चुके थे। शुरूआत में यह एक स्वतंत्र योजना थी परन्तु 2007 में इसे सर्व शिक्षा अभियान के साथ जोड़ दिया गया। राज्य स्तर पर राज्य सर्व शिक्षा समिति इस योजना को संचालित करती है अपने-अपने क्षेत्रों में इन विद्यालयों को संचालित करने तथा उनकी निगरानी का उत्तरदायित्व इस समिति का ही है ।
कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना के गुण- इसके निम्न गुण है—
(1) यह योजना 2004 में शुरू हुई तथा 10 वर्षों के अन्दर 3600 विद्यालयों को स्थापित करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ।
(2) इन विद्यालयों में बालिकाओं के लिए निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क छात्रावास, निःशुल्क यूनीफार्म तथा निःशुल्क भोजन और पुस्तकों आदि की उचित व्यवस्था है।
(3) इस योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति की 30%, जनजाति की 25%, पिछड़े वर्ग की 30%, अल्पसंख्यक वर्ग की 7%, गरीबी रेखा से नीचे की 8%, बालिकाएँ इसका लाभ ले चुकी हैं।
(4) इस योजना के द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग की बच्चियों को शिक्षा सर्वसुलभ हो रही है जिससे शिक्षा का सार्वभौमीकरण हो रहा है।
कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना के दोष इसमें निम्न दोष  है—
( 1 ) इस योजना में सामान्य जाति के व्यक्तियों की बच्चियों के लिए किसी भी प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई अर्थात् वे इन विद्यालयों में प्रवेश नहीं ले सकती। यह शैक्षिक अवसरों की समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध है।
(2) इसके अलावा इन विद्यालयों में योग्य शिक्षिकाओं की कमी है, छात्रावासों की स्थिति अच्छी नहीं है तथा छात्राओं को पौष्टिक भोजन नहीं दिया जा रहा है।
(3) यह योजना भी धीरे-धीरे लापरवाही का शिकार हो रही है |
(4) यह योजना पिछड़े तथा जातिगत आधार पर बच्चियों के लिए अच्छी है परन्तु सामान्य वर्ग को इस योजना से वंचित कर देना ठीक नहीं कहा जा सकता ।
कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना का मूल्यांकन – किसी भी योजना का मूल्यांकन उसके गुण और दोषों के आधार पर ही किया जा सकता है अतः हम इस योजना के गुण-दोषों का अध्ययन कर उसके आधार पर कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का मूल्यांकन कर सकते हैं।
( ब ) उज्ज्वला योजना – अवैध व्यापार को रोकने के लिए 4 दिसम्बर, 2007 से उज्ज्वला नाम से एक व्यापक योजना शुरू की गई । इस योजना के पाँच विशेष घटक हैं— रोकथाम, रिहाई, पुनर्वास, पुनः एकीकरण और स्वदेश भेजना।
(1) रोकथाम–सामुदायिक निगरानी दल / किशोरदल बनाना, पुलिस, सामुदायिक नेताओं को जागरूक करना, आईईसी सामग्री तैयार करना और कार्यशालाओं का आयोजन करना आदि ।
(2) रिहाई ( मुक्त कराना ) – शोषण किए जाने वाले स्थान से सुरक्षित रिहाई ।
(3) पुनर्वास — चिकित्सकीय सहायता, कानूनी सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और आय उत्सर्जक गतिविधियों की भी व्यवस्था करना ।
(4) पुनः एकीकरण — पीड़ित की इच्छानुसार उसे परिवार/ समुदाय में एकीकृत करना ।
(5) स्वदेश भेजना – सीमा पार चले गए पीड़ितों की सुरक्षित वापसी ।
(स) महिलाओं के लिए अधिनियम- संवैधानिक जनादेश को बनाए रखने के लिए, राज्य, समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक भेदभाव और हिंसा और अत्याचार के विभिन्न रूपों का सामना करने और कामकाजी महिलाओं के लिए विशेष रूप से समर्थन सेवाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से विभिन्न विधायी उपायों को अधिनियमित किया हैं—
( 1 ) बागान श्रम अधिनियम, 1951- महिलाओं के लिए हित की बात सर्वप्रथम इसी अधिनियम के अन्तर्गत की गई थी। बागान में कार्यरत महिलाओं को अपने शिशु को स्तनपान कराने के लिए आवश्यक रूप से अवकाश प्राप्ति, नारी सशक्तीकरण के क्षेत्र में उठाए गए कदमों में से एक था।
( 2 ) कर्मचारी राज्य विनियमन अधिनियम, 1952 – कर्मचारी राज्य विनियमन के अन्तर्गत महिलाओं को प्रसूति लाभ प्राप्त करने सम्बन्धी दावे को चिकित्सीय प्रमाणपत्रों की तिथि से मान्य किया जाना, स्वीकार किया गया था।
( 3 ) दहेज निषेध अधिनियम, 1961- भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों में से दहेज प्रथा का नाम अग्रणीय है। दहेज प्रथा के कारण ही स्त्री भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा प्रचलित हुई थी एवं उसका क्रयविक्रय किया जाता था। दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में दहेज निषेध अधिनियम’ बनाकर क्रियान्वित किया गया। दहेज लेना ही नहीं देना भी अपराध है। अगर वधू पक्ष के लोग दहेज लेने के आरोप में वर पक्ष को कानून सजा दिलवा सकते हैं तो वर पक्ष भी इस कानून के ही तहत वधू पक्ष को दहेज देने के जुर्म से सजा के करवा सकता हैं। 1961 से लागू इस कानून के तहत वधू को दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना भी संगीन जुर्म है। 1986 में इस अधिनियम में संशोधन करके इसे परिस्थिति के अनुकूल बनाया गया। एक सर्वेक्षण के अनुसार आज भी हर 102 मिनट में एक महिला दहेज उत्पीड़न की भेंट चढ़ा दी जाती है। इस अधिनियम के आने के पश्चात् दहेज उत्पीड़न के मामले में कमी तो आई है परन्तु अब भी इस क्षेत्र में बहुत लम्बा रास्ता तय करना शेष है ।
( 4 ) प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 – पहले महिलाओं को प्रसव गर्भपात हेतु अवकाश नहीं दिया जाता था। इस कारण उन्हें अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता था । इस अधिनियम के कारण अब महिलाओं को आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त होने लगी हैं। इस प्रकार महिलाएँ प्रसूति के कुछ समय पूर्व एवं बाद में स्वास्थ्य लाभ के लिए छुट्टियाँ ले सकती है। इससे वे नवजात शिशु की एवं अपने स्वास्थ्य की भली-भाँति देखभाल कर सकती हैं। विभिन्न संस्थाओं में कार्यरत महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रसूति अवकाश की यह विशेष व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 42 के अनुकूल करने के लिए 1961 में पारित किया गया। इसके तहत पूर्व में 90 दिनों का प्रसूति अवकाश मिलता था। अब 135 दिनों का अवकाश मिलने लगा है।
( 5 ) ठेका श्रम अधिनियम, 1976 – इस अधिनियम के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि महिला कर्मचारियों से प्रातः 6 बजे से सायं 7 बजे तक ही काम करवाने का निर्णय लिया गया है । 9 घण्टे से अधिक कार्य करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। इससे न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार बल्कि परिवार की देखभाल के लिए भी उनके पास समय निकल सकेगा।
( 6 ) समान मजदूरी अधिनियम, 1976–1976 में पारित इस अधिनियम का प्रभाव सर्वांगीण रहा। कार्य से सम्बन्धित सभी क्षेत्रों में इस अधिनियम को लागू किया गया है। इसके अन्तर्गत समान कार्य करने के लिए या समान प्रकृति वाले कार्य के लिए महिलाओं को पुरुषों की तरह समान पारिश्रमिक देने का प्रावधान है। समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धान्त पर यह अधिनियम लागू किया गया है।
( 7 ) बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1976–1976 में पारित इस अधिनियम के अन्तर्गत बाल विवाह पूरी तरह से प्रतिबन्धित कर दिया गया था परन्तु फिर भी यह प्रथा जड़ से समाप्त नहीं हो सकी है। इसका कारण यह है कि भारतीय संस्कृति में बाल विवाह की कुप्रथा अत्यन्त प्राचीन है। इस कुप्रथा का अन्त मात्र एक अधिनियम के पारित हो जाने से सम्भव नहीं हो पाएगा। इसके लिए सरकार ने कई साक्षरता अभियान चलाएँ हैं, जिनका उद्देश्य बाल विवाह की बुराइयों को सामने लाना है।
( 8 ) सती निषेध अधिनियम, 1987 – यह भारत की एक प्राचीन सामाजिक कुरीति थी जिसके अन्तर्गत विवाहित महिला के पति की मृत्यु हो जाने के पश्चात् उसकी लाश के साथ उसे भी जीवित जला दिया जाता था। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार ने इस कानून का निर्माण किया है।
(9) 73वाँ व 74वाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1993 – सरकार ने ग्रामीण महिलाओं के स्तर को ऊपर उठाने के लिए यह कदम उठाया है। महिलाओं की स्थिति को महिलाएँ ही उचित तरीके से समझ सकती है व उनका प्रतिनिधित्व भी कर सकती है। इसी कारण सरकार ने 73वें व 74वें संविधान संशोधनों के माध्यम से पंचायत व्यवस्था की एक तिहाई सदस्यता महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी है। इन संशोधनों के कारण अब ग्रामों में भी महिला सुधार ने जोर पकड़ लिया है।
( 10 ) बीड़ी एवं सिगरेट कर्मचारी अधिनियम, 1996– इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्धारित सीमा से अधिक महिला कर्मचारियों के होने पर उनमें शिशुओं के हित के लिए शिशु सदनों की व्यवस्था की गई। इसका परिणाम यह हुआ कि अब महिलाओं को लम्बे अवकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि शिशु सदनों की उपलब्धियों के कारण वह स्वतन्त्र रूप से मन लगाकर अपने कार्य क्षेत्र में कार्य कर सकती हैं।
( 11 ) प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994– इस अधिनियम के द्वारा गर्भावस्था में बालिका भ्रूण की पहचान को अवैध घोषित कर दिया गया है। इस अधिनियम को जन्म देने का मुख्य कारण स्त्री भ्रूण हत्यारूपी नई सामाजिक कुरीति का जन्म होना था। 20वीं शताब्दी में अल्ट्रासाउण्ड की विकसित तकनीकी के द्वारा गर्भ में ही भ्रूण के लिंग की पहचान सम्भव हो गई थी परिणामस्वरूप लोगों ने गर्भ में ही भ्रूण की पहचान कर, स्त्री की हत्या प्रारम्भ कर दी थी। इसी कुप्रथा को रोकने के लिए सरकार ने इस अधिनियम को पारित किया ।
( 12 ) घरेलू हिंसा का कानून, 2005-का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे देश में लागू किया गया। इसका उद्देश्य घरेलू रिश्तों में हिंसा झेल रही महिलाओं को तत्काल और आपातकालीन राहत पहुँचाना था। यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है। केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं। यह भारत में पहला ऐसा कानून है जो महिलाओं को अपने घर में रहने का अधिकार देता है। घरेलू हिंसा विरोधी कानून के अन्तर्गत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकती है। अतः घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 जिसके अन्तर्गत वे सभी महिलाएँ जिनके साथ किसी भी तरह घरेलू हिंसा की जाती है, उनको प्रताड़ित किया जाता है, वे सभी पुलिस थाने जाकर एफ आई आर दर्ज करा सकती है एवं पुलिसकर्मी बिना समय गवाएँ प्रतिक्रिया करेंगे ।
इस प्रकार ऊपर वर्णित विभिन्न कानूनी व्यवस्थाओं को एकमात्र लक्ष्य ‘महिला कल्याण’ या महिला विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है । अनेक अधिनियमों व संशोधनों के माध्यम से महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। इसकी सफलता इस बात से ज्ञात के * होती है कि अब शहरों में जहाँ एक ओर महिला संगठन दबाव समूह रूप में उभर कर आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामों की पंचायतों में भी महिला सहभागिता में वृद्धि हुई है। सरकार ने न केवल नारी सशक्तीकरण के लिए इन अधिनियमों को पारित किया वरन् कई योजनाओं व महिला विकास कार्यक्रमों का भी आयोजन किया है, अनेक कल्याणकारी योजनाओं में भी सरकार अपना हाथ बँटा रही है, ताकि महिलाओं की स्थिति में भी सुधार लाया जा सके। अतः गर्भावस्था में ही मादा भ्रूण को नष्ट करने के उद्देश्य से लिंग परीक्षण को रोकने हेतु प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 निर्मित कर क्रियान्वित किया गया। इसका उल्लंघन करने वालों को 10-15 हजार रुपए का जुर्माना तथा 3-5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
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