निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए—
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए—
(i) चिपको आन्दोलन
(ii) जल प्रबन्धन
(iii) अप्पिको
उत्तर— (i) चिपको आन्दोलन (Chipko-Movement) – चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध वन संरक्षण से है। जन सामान्य ने वृक्षों से चिपक कर उन्हें कटने से बचाया है। भारत में वन संरक्षण जागरूकता प्राचीन समय से ही चली आ रही है। हमारी संस्कृति में वृक्षों का सम्बन्ध हमारे धार्मिक देवी-देवताओं से कर के वृक्षों को पूज्यनीय बना दिया गया है। मत्स्य पुराण में एक वृक्ष को दस पुत्रों के बराबर गिना है।
वनों को बचाने के लिए राजस्थान के जोधपुर के एक छोटे से गाँव खेजड़ली में सितम्बर 1730 में आन्दोलन हुआ इस गाँव की महिलाएँ वृक्षों को घेर कर चिपक गयी तथा वृक्ष पर कुल्हाड़ी चलानों वालों को रोका तथा उद्घोष किया ‘सर कटे पर पेड़ न कटे’ । इसी प्रकार का वन संरक्षण आन्दोलन 1930 में उतर काशी के तिलाड़ी गाँव में भी चलाया गया था।
चिपको आन्दोलन के नाम से वनसंरक्षण का सूत्रपात 1972 में अलखनन्दा घाटी के रेणी गाँव से हुआ था। इस घाटी के पेड़ों को काटने के लिए ठेकेदार ने मजदूरों को भेजे। जब यह बात गाँव में पहुँची तो वहाँ । की महिलाएँ बिना किसी डर एवं चिन्ता के वनों की ओर दौड़ीं तथा वहाँ के वृक्षों से चिपक गई, जिससे मजदूर वृक्ष पर कुल्हाड़ी न चला सके महिलाओं ने कहा यह हमारा मायका है हम इसे काटने नहीं देगें तथा मजदूरों को वहाँ से भगा दिया। इस तरह वृक्षों को उन्होंने कटने से देंगे नहीं बचाया अपितु इस पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील इलाके की सुरक्षा भी की। इसी आन्दोलन की बागड़ोर सुन्दरलाल बहुगुणा एवं चण्डी प्रसाद भट्ट ने सम्भाल कर इस क्षेत्र की जनता में वन संरक्षण के प्रति जन जागृति विकसित की ।
1974 में उत्तराखण्ड के सर्वोदय परिवार का कार्य भी वन संरक्षण के लिए उल्लेखनीय रहा। उन्होंने नदियों की उत्पत्ति के आसपास के हरे वृक्षों को काटने से रोकने की माँग की। इसके विरोध में धरने एवं उपवास भी किये गये ।
चिपको आन्दोलन में मुख्य भागीदारी महिलाओं की ही रही है। इसके साथ अन्य की भी सहभागिता को नकारा नहीं जा सकता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी इन कार्यों का समर्थन किया था ।
चिपको आन्दोलन ने जन चेतना के साथ सरकार को इस ओर आकर्षित करने का भी कार्य किया जिससे वन संरक्षण के सामाजिक वानिकी एवं कृषि वानिकी जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं का श्रीगणेश हुआ ।
चिपको आन्दोलन के उद्देश्य ( Aims of Chipko movement)–चिपको आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं—
(i) वनों को अविवेकपूर्ण कटाई पर रोक लगाना ।
(ii) सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाना ।
(iii) पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखना ।
चिपको आन्दोलन का सूत्रपात उत्तर प्रदेश में हुआ परन्तु इसके महत्त्व को समझकर देश के अन्य राज्यों— मध्य प्रदेश, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि में वन कटाई एवं विनाश पर जम कर विरोध हुआ तथा वन संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ एवं कार्यक्रम संचालित किये गये। इस कार्य में सरकार ही नहीं स्वयं सेवा संस्थाएँ भी अग्रणी है।
(ii) जल प्रबन्धन (Water Management) -जल प्रबन्धन के सम्बन्ध में निम्न बिन्दु सामने आते हैं—
(1) जल संरक्षण
(2) दूषित जल को जल स्रोतों में मिलने से रोकना
(3) वर्षा जल नियोजन
(4) जल पुनः चक्रण
(5) पीने के लिए स्वच्छ जल
(6) वनों की सुरक्षा एवं सघन वृक्षारोपण
(7) जल का सीमित उपयोग
(1) जल संरक्षण — जल को व्यर्थ बहने से एवं दूषित होने से रोकना जल संरक्षण कहलाता है। जल सिंचाई, उद्योग, हमारी दैनिक क्रियाओं, जल यातायात, सफाई आदि के लिए आवश्यक होता है। जल उपलब्धता आवश्यकतानुसार बनी रहे, इसके लिए प्रबन्धन की जरूरत है। जलाशयों की समय-समय पर देखभाल, मरम्मत करना चाहिये । जिससे जल भण्डार सुरक्षित रहे ।
(2) दूषित जल को जल स्रोतों में मिलने से रोकना – औद्योगिक कार्यों के लिए जल उपयोग में लिया जाता है। जिसे उपयोग के बाद सीधा जल स्रोत में छोड़ दिया जाता है। जल स्वयं ही भूमि में प्रवेश कर जल स्रोतों तक पहुँच जाता है। कृषि कार्यों में भी अनेक रसायन प्रयुक्त किये जाते हैं। इनमें से अधिकांश विषैले होते हैं। ये सिंचाई के जल के साथ बहकर जल स्रोतों में आते हैं। उर्वरायुक्त जल जलाशयी पादपों के लिए सुपोषी होता है, इससे जलाशयों में शैवाल आदि की वृद्धि तेजी से होती है, जो जलाशय को छिछला बनाकर उसकी भण्डारण क्षमता को कम कर देता है तथा जल को दूषित कर देता है, उसमें बदबू आने लगती है। जल स्वच्छ एवं उपयोगी बना रहे इसके लिए आवश्यक है, दूषित जल जो खेतों एवं उद्योगों से निकल कर आ रहा है, उसे जलाशय में मिलाने से रोका जाना चाहिए। ऐसा करने वाले के लिए सजा का प्रावधान हो।
(3) वर्षा जल का नियोजन – जल आपूर्ति के लिए प्रकृति ने वर्षण प्रक्रिया बनाई । वर्षा जल का उचित प्रबन्धन मरुक्षेत्र – बाड़मेर, जैसलमेर आदि स्थानों पर देखने को मिलता हैं। जल की कमी के कारण यहाँ के निवासी अपने घरों में पानी संग्रह के बड़े-बड़े टांके बनवाते हैं । इसी जल का उपयोग वे वर्षभर करते हैं। वर्षा का जल व्यर्थ न जाए इसके लिए वर्तमान अनेक शहरों में भूमिगत जल संग्रहण बनाकर इसका सम्बन्ध वर्षा के समय छतों पर बरसने वाले पानी को निकाले वाले पाइपों में कर दिया जाता है। पानी को स्वच्छ कर उपयोगी बनाया जाता है।
(4) जल पुनः चक्रण – उपयोग के बाद जल दूषित हो जाता है इसे पुनः चक्रण द्वारा उपयोगी बनाना चाहिये। सीवेज अपशिष्ट जल की मात्रा बहुत अधिक होती है। सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट स्थापित कर इस जल का पुनः चक्रण किया जाना चाहिये। देश में इस तरह के उपकरण कुछ ही स्थानों पर स्थापित किये गये है। उनमें से भी अधिकांश खराब पड़े है। अतः इसी और विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
(5) पीने के लिए स्वच्छ जल — सभी को स्वच्छ जल पीने के लिए उपलब्ध कराना सरकार का कर्त्तव्य है। इसके लिए राज्य एवं केन्द्रीय सरकारें अनेक कार्यक्रम चलाकर जल सर्वेक्षण कराती हैं तथा पीने के लिए स्वच्छ एवं गुणवत्ता युक्त जल प्राप्त हो इसके लिए प्रयासरत है। विश्व बैंक ने भी ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों के लिए स्वच्छ जल व्यवस्था के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की है। जल में फ्लोराइड की मात्रा मानव जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालती है।
पानी पीने के जलाशयों के रख रखाव पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पानी को रासायनिक पदार्थों से साफ करना चाहिये। इन जलाशयों पर मानव क्रियाओं पर प्रतिबन्ध हो ।
(6) वनों की सुरक्षा एवं सघन वृक्षारोपण–’जहाँ वन वहाँ. जल’ वन एवं जल दोनों एक दूसरे के पूरक और जीवन के सहायक तंत्र है। वृक्षों द्वारा ही जल भूमि से वाष्पीकृत होकर वायुमण्डल में जाता है। यही जलवाष्प ठण्डी होकर वर्षण बन जाती है। वृक्ष जितने अधिक होंगे उतनी अधिक मात्रा में वर्षा होगी। वन विनाश से ही जल के कमी की समस्या उत्पन्न हुई है। अतः सभी को संकल्प लेकर पृथ्वी पर निश्चित वृक्ष आवरण बनाना होगा।
(7) जल का सीमित उपयोग- पृथ्वी पर जल के विशाल भण्डार हैं लेकिन स्वच्छ जल की मात्रा बहुत न्यून है। अतः जल की एक-एक बूँद को बचाना चाहिये। इसका उपयोग सीमित करना चाहिए। जिन स्थानों पर पानी व्यर्थ बह रहा हो उसे रोकना चाहिए।
केन्द्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा जल प्रबन्धन—
केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों ने विभिन्न संस्थाओं का गठन कर जल प्रबन्धन की व्यवस्था की। प्रमुख इस प्रकार हैं—
(i) केन्द्रीय जल आयोग-सतही जल के लिए
(ii) केन्द्रीय भूमिगत जल बोर्ड- भूमिगत जल के लिए
(iii) भारतीय मौसम विभाग-वर्षण के लिए
(iv) केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-जल गुणवत्ता के लिए
(v) केन्द्रीय जल स्वास्थ्य एवं पर्यावरण-जल वितरण, सफाई एवं मल निस्तारण |
(iii) अप्पिको आन्दोलन (Appiko Movement)—
अप्पिको कन्नड़ शब्द है जो वास्तव में चिपको का ही पर्याय है। वन संरक्षण के लिए दक्षिण भारत में अप्पिको आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। उत्तर कन्नड़ के लोगों ने ये आन्दोलन 1983 बडेथी हाइड्रल प्रोजेक्ट के विरोध के लिए प्रारम्भ किया था जो लगभग सवा महीने तक चला। इस आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य वन को काटने से रोकना तथा जल विद्युत परियोजना को बदलना रहा। वन संरक्षण के इस आन्दोलन में लोग एकजुटे हुए तथा उन्होंने वन वृक्षों के लाभ एवं महत्त्व को समझा। वृक्षों के कटने से दैनिक उपभोग की सामग्री का अभाव हो गया। इनसे जुड़े व्यक्ति बेरोजगार हो गये। इन्हीं परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए इस तरह आन्दोलन अन्य स्थानों पर भी फैल गये हैं।
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