निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए—

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(अ) भावनाओं का विषयात्मक दृष्टिकोण

( ब ) स्व की समझ सम्बन्धी शब्दावली
(स) मानसिक रूप से सजग/सम्पूर्ण होने के लिए अभ्यास क्रिया
उत्तर— (अ) भावनाओं का विषयात्मक दृष्टिकोण-कई अलग-अलग विषयों में भावनाओं पर काम किया गया है। मानव विज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं में भावनाओं की भूमिका, विकारों और तंत्रिका तन्त्र के बारे में बताता है।
मनोविज्ञान में, भावनाओं की विषय से सम्बन्धित अध्ययन और मानवों में मानसिक विकारों के उपचार में जाँच की जाती है। मनोविज्ञान भावनाओं को मानसिक प्रक्रियाएँ मानते हुए उनकी एक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से जाँच करता है और अन्तर्निहित शारीरिक और स्नायुविक प्रक्रियाओं का पता लगाता है।
न्यूरोसाइंस (तंत्रिका विज्ञान) की उप-शाखा जैसे सोशल न्यूरोसाइंस और अफेक्टिव न्यूरोसांइस में वैज्ञानिक, न्यूरोसाइंस को व्यक्तित्व, भावना और मूड के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से जोड़ कर भावना के तंत्रिका तन्त्र का अध्ययन करते हैं।
भाषा विज्ञान में भावना की अभिव्यक्ति ध्वनियों के अर्थ में बदल सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में, सीखने की प्रक्रिया की भावनाओं के साथ सम्बन्ध की जांच की जाती है।
सामाजिक विज्ञान अक्सर बातचीत मानव संस्कृति और सामाजिक सहभागिता में भावना की भूमिका की जाँच करता है।
समाजशास्त्र में मानव समाज, सामाजिक ढाँचे व सहभागिता तथा संस्कृति में भावनाओं की भूमिका की जाँच की जाती है।
मानव विज्ञान ( एन्थ्रोपोलोजी) में, मानवता के अध्ययन में, छात्र प्रासंगिक विश्लेषण तथा मानव गतिविधियों की सीमाओं की विपरीत संस्कृतियों की तुलना के लिए एथ्नोग्राफी का प्रयोग करते हैं। कुछ एन्थ्रोपोलोजी अध्ययन मानवीय क्रियाओं में भावनाओं की भूमिका की जाँच करते हैं। संचार विज्ञान के क्षेत्र में, महत्त्वपूर्ण संगठनों के छात्रों ने संगठन में, मैनेजर, कर्मचारियों और यहाँ तक कि ग्राहकों के परिप्रेक्ष्य से भी, भावनाओं की भूमिका की जाँच की है।
संगठनों में भावनाओं पर ध्यान देने का श्रेय अर्ली रस्सेल होशचाइल्ड की भावनात्मक श्रम की अवधारणा को जाता है। क्वींसलैंड विश्वविद्यालय EmoNet, को होस्ट करती है एक ईमेल वितरण सूची जो उन अकादमियों के नेटवर्क को दर्शाती है जो संगठनात्मक हालातों से जुड़े सभी मामलों के विद्वानों से चर्चा की सुविधा प्रदान करता है। इस सूची को जनवरी, 1997 में स्थापित किया गया था, और दुनिया भर में इसके 700 से अधिक सदस्य हैं।
अर्थशास्त्र में, सामाजिक विज्ञान जो उत्पादन, वितरण और वस्तुओं के उपभोग और सेवाओं का अध्ययन करता है, भावनाओं का माइक्रो अर्थशास्त्र के कुछ उपेक्षेत्रों में खरीदने का निर्णय करने तथा जोखिम को समझने के लिए विश्लेषण किया जा रहा है।
अपराधशास्त्र में अपराध के अध्ययन का एक सामाजिक विज्ञान दृष्टिकोण छात्रों को अक्सर-व्यवहार विज्ञान, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान की ओर आकर्षित करता है। अपराधशास्त्र के मुद्दों में एनोमी थ्योरी और ”बेरहमी’, आक्रामक व्यवहार और गुंडागर्दी जैसी भावनाओं की जाँच की जाती है। कानून में, जो नागरिक आज्ञाकारिता, राजनीति, अर्थशास्त्र और समाज का सहायक है, लोगों की भावनाओं के बारे में सबूत अक्सर शारीरिक मुजावजों के दावों के लिए पेश किए जाते हैं और क्रिमिनल लॉ अभियोजन में कथित रूप से कानून तोड़ने वालों के खिलाफ इनका प्रयोग किया जाता है। (ट्रायल के दौरान अभियुक्त की मानसिक अवस्था, सजा और पैरोल सुनवाइयों के दौरान सबूत के तौर पर) राजनीति शास्त्र में, भावनाओं का कई उप शाखाओं में विश्लेषण किया जाता है जैसेएक मतदाता के निर्णय के विश्लेषण के लिए।
दर्शनशास्त्र में, भावनाओं को उपशाखाओं जैसे नैतिकता, कला का दर्शन, (उदाहरण के लिए संवेदी- भावनात्मक मूल्य और रुचि तथा भावुकता के मामले और संगीत का दर्शन संगीत और भावना भी देखें)। इतिहास में छात्र पिछली क्रियाओं की व्याख्या करने तथा उनका विश्लेषण करने के लिए दस्तावेजों और दूसरे स्रोतों का अध्ययन करते हैं, लेखकों के ऐतिहासिक दस्तावेजों में भावनात्मक स्थितियों के बारे में अटकलें विश्लेषण का एक साधन है।
साहित्य और फिल्म बनाने में, भावना की अभिव्यक्ति ड्रामा, मेलोड्रामा और रोमांस जैसी शैलियों की आधारशिला है। संचार अध्ययन में छात्र विचार और सूचना प्रेषित करने में भावना की भूमिका का अध्ययन करते हैं । भावना को एथोलॉजी में भी पढ़ा जाता है जो प्राणीशास्त्र की एक शाखा है जिसका अध्ययन जानवरों के व्यवहार पर केन्द्रित है। एथोलॉजी प्रयोगशाला और फील्ड साइंस का एक संयोजन है जिसका पारिस्थितिकी और विकास के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध है। इथोलॉजिस्ट्स अक्सर कई असम्बन्धित पशुओं में एक प्रकार के व्यवहार (जैसे आक्रामकता) का अध्ययन करते हैं ।
(ब) स्व की समझ सम्बन्धी शब्दावली – स्व को समझने के लिए इससे सम्बन्धित शब्दावली को समझना आवश्यक है—
(1) स्व-आकलन — स्व- आंकलन स्वयं को देखने अर्थात् आत्म साक्षात्कार करने की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने विभिन्न पहलुओं को सामने लाता है जो व्यक्ति की स्व पहचान के लिए आवश्यक होता है। स्वयं को समझने के लिए व्यक्ति स्वयं का आंकलन करता है। स्व आंकलन से तात्पर्य व्यक्ति के द्वारा अपने स्व क्रिया-कलापों मनोवृत्तियों एवं निष्पादन (Performance) का आकलन करने से है
(2) स्व वृद्धि–व्यक्ति अपने स्व में वृद्धि करने के लिए सर्वप्रथम अपने द्वारा किए गए अच्छे-बुरे कार्यों को प्रतिबिम्बित करता है तदुपरान्त उसमें सुधार करता है और इस प्रकार वह अपने स्व में वृद्धि करता है । स्व-वृद्धि प्रेरणा का एक प्रकार है जो व्यक्ति को स्वयं के विषय में अच्छा अनुभव कराने के लिए एवं आत्म-सम्मान को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। स्व- बुद्धि नकारात्मक आत्म विचारों को सकारात्मक विचारों में परिवर्तित करने की प्राथमिकता में सम्मिलित है।
(3) स्व-सत्यापन — स्वयं को समझने के लिए स्व-सत्यापन
करता है जिससे उसके स्व का विकास होता है। इसके लिए व्यक्ति दूसरों की सहायता लेता है। इस प्रकार स्व सत्यापन एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त है जिसमें व्यक्ति स्वयं के सत्यापन लोगों की मान्यताओं एवं विचारों के आधार पर करता है।
(4) स्व निरीक्षण–स्व विकास तभी सम्भव है जब व्यक्ति स्वयं के द्वारा किए गए कार्यों का निरीक्षण करे। यह निरीक्षण व्यक्ति स्वयं कर सकता है तथा दूसरों के द्वारा भी यह निरीक्षण किया जा सकता है। –
(5) स्व प्रस्तुतीकरण – स्व विकास के लिए स्व प्रस्तुतीकरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। स्व प्रस्तुतीकरण स्वयं के द्वारा किए गए कार्यों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
 (6) स्व सुधार — आत्म सुधार शब्द मोटे तौर पर स्वयं में सुधार लाने सम्बन्धी कार्य करने के लिए संदर्भित होता है । आत्म सुधार के अन्तर्गत नेतृत्त्व कौशल, लक्ष्य की स्थापना, दृश्य कौशल, संगठनात्मक कौशल आदि के सन्दर्भ में व्यक्तिगत विकास से सम्बन्धित है।
(स) मानसिक रूप से सजग / सम्पूर्ण होने के लिए अभ्यास क्रिया–व्यक्ति अगर अपने जीवन को रोबोट की तरह बनाएगा, तो संभवत वह अपने प्रतिदिन के कार्यों से मिलने वाली खुशी को भूल जाएगा। अपने आसपास अपने विकल्प और अपनी दैनिक गतिविधियों के लिए मानसिक रूप से पूर्ण होने से व्यक्ति अपने जीवन और अपनी खुशी को उचित रूप से नियंत्रित कर सकते हैं जिसके लिए निम्न अभ्यास क्रियाओं को किया जाना चाहिए।
( 1 ) ध्यान करना— सर्वप्रथम ध्यान करने का विचार किया जाना चाहिए जिससे व्यक्ति स्वयं को केन्द्रित कर सकें और उत्कृष्ट ध्यान सीखे । प्रतिदिन उचित समय देखकर 10 से 20 मिनट के लिए ध्यान करने से सुखद अनुभूति का अनुभव होता है। जिससे स्वयं के बारे में और वर्तमान के प्रति जागरूकता बढ़ती है तथा घृणाबद्ध सोच, नकारात्मक सोच से बाहर निकलने में सहायता मिलती है ।
(2) योग करना — योग करने से व्यक्ति स्वयं के प्रति तथा संसार के प्रति अधिक जागरूक हो जाता है क्योंकि योग के द्वारा हम अपनी सांसों के साथ सम्पर्क में आते हैं।
(3) सन्तुलित श्वसन क्रिया – व्यक्ति को गहरी एवं लम्बी सांस लेने से मन को शांति एवं खुशी की अनुभूति होती है।
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