निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :—
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :—
(i) परीक्षा सुधार
(ii) खुली पुस्तक परीक्षा
उत्तर – (i) परीक्षा सुधार (Examination Reforms) — शिक्षा अधिगम सतत् एवं आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा की गुणवत्ता आन्तरिक रूप से परीक्षाओं पर निर्भर होती है। वास्तविक रूप से परीक्षाओं से तात्पर्य ज्ञान, रचनात्मक चिन्तन एवं समस्या समाधान के अनुप्रयोग एवं उच्च क्षमता का परीक्षण करने से होता है। इसी सन्दर्भ में परीक्षा की महत्ता को स्पष्ट करते हुए राधाकृष्णन आयोग, 1948 ने कहा, “यदि हमें विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में एक सुझाव देने को कहा जाए तो वह आवश्यक रूप से परीक्षाएँ ही होंगी।”
परीक्षा में सुधार के सम्बन्ध में सबसे पहले विस्तृत रूप से सुझाव मुदालियर आयोग (1952-53) ने दिया था उन्होंने वस्तुनिष्ठ परीक्षण एवं आन्तरिक आंकलन पर जोर दिया। उसके पश्चात् कोठारी आयोग (1964-66) ने भी इस बात पर बल दिया। कोठारी आयोग ने सुझाव दिया कि छात्रों के प्रमाण-पत्र पर उनके प्रदर्शन का पूरा लेखा-जोखा होना चाहिए लेकिन पूरी परीक्षाओं के दौरान कहीं पर भी इस बात पर कि वे उत्तीर्ण हैं अथवा अनुतीर्ण पर कोई टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। वर्तमान परीक्षा प्रणाली में जो परिवर्तन हुए हैं, उस सन्दर्भ में पहला व्यावहारिक कदम मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय ने अक्टूबर, 1995 में माध्यमिक शिक्षा के लिए अखिल भारतीय परिषद की स्थापना करके लिया गया था यह परीक्षा से सम्बन्धित समस्याओं को हल करने को प्राथमिकता देती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में माध्यमिक स्तर के लिए सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन एवं सेमेस्टर प्रणाली को प्रारम्भ करने पर बल दिया गया है। इस नीति में आंकलन प्रक्रिया एवं परीक्षा सुधार के सम्बन्ध में कहा गया है कि प्रदर्शन का आंकलन शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग है शैक्षिक रणनीति के अंग के रूप में ऐसी परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए जो शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने से सम्बन्धित हों।
परीक्षा प्रणाली को पुनः आयोजित/निक्षेपित करने का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि आंकलन में प्रयुक्त की गई विधियाँ विश्वसनीय एवं वैध हैं अथवा नहीं तथा छात्र की प्रगति का मापन कर रही हैं या नहीं। यह परीक्षाएँ ही शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया के विकास के लिए प्रभावशाली उपकरण के रूप में कार्य करती हैं।
व्यावहारिक रूप में इसका तात्पर्य है—
(i) परीक्षा सुधार के लिए अनावश्यक तत्त्वों एवं विषयनिष्ठता का उन्मूलन करना ।
(ii) रटने पर बल नहीं देना।
(iii) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन जिसके अन्तर्गत शिक्षा के शैक्षिक एवं गैर-शैक्षिक दोनों पहलुओं को सम्मिलित किया जाए तथा यह सम्पूर्ण शैक्षिक अवधि के दौरान किया जाए।
(iv) छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों द्वारा मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रभावी उपयोग।
(v) परीक्षा के संचालन में सुधार।
(vi) चरणबद्ध तरीके से माध्यमिक स्तर पर सेमेस्टर प्रणाली के निर्देश लागू करना ।
(vii) अंक प्रदान करने के स्थान पर ग्रेड प्रदान करना।
उपर्युक्त लक्ष्य शैक्षिक संस्थाओं के अन्तर्गत बाह्य परीक्षाओं एवं मूल्यांकन के लिए भी प्रासंगिक है। इन्हीं लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में परीक्षा प्रणाली में अनेक सुधार किए गए हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिए गए सुझावों के अनुसार व्यापक एवं सतत् मूल्यांकन (CCE) प्रक्रिया का क्रियान्वयन किया जा रहा है जिसके अन्तर्गत सेमेस्टर प्रणाली माध्यमिक स्तर पर लागू की गई है।
इस मूल्यांकन के अन्तर्गत छात्रों के सम्पूर्ण प्रदर्शन का आंकलन पूरे शैक्षिक अवधि में किया जाता है तथा उन्हें उनके प्रदर्शन के अनुसार ग्रेडिंग प्रदान की जाती है तथा उनके मूल्यांकन पत्र पर कहीं पर भी उनके उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण पर कोई टिप्पणी नहीं की जाती है। इन्हीं मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर वर्तमान में खुली पुस्तक परीक्षाओं का आयोजन भी किया जा रहा है। वर्तमान में परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु निम्नलिखित नीतियों को अपनाया जा रहा है-
(1) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation_CCE)
(2) चुनाव आधारित क्रेडिट प्रणाली [Choice Based Credit System (CBCS)]
(3) खुली पुस्तक परीक्षा (Open Book Examination)
(ii) खुली पुस्तक परीक्षा (Open Book Examination)– केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने सिफारिश की है कि छात्रों की व्यक्तिगत शक्तियों की विभिन्न क्षमताओं को पूरा करने हेतु आंकलन के लिए विभिन्न साधनों को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। इसी के आधार पर बोर्ड ने सन् 2014 में कक्षा नौवीं तथा ग्यारहवीं के लिए खुली पुस्तक परीक्षा आधारित आंकलन को प्रस्तुत किया था। इस आंकलन को सम्मिलित करने का उद्देश्य छात्रों में विश्लेषणात्मक एवं सैद्धान्तिक कौशलों का विकास करना है।
सामान्यतः अन्य देशों में खुली पुस्तक परीक्षा आधारित आंकलन के अन्तर्गत छात्रों को परीक्षा के दौरान अपनी पाठ्य पुस्तक, क्लास नोट्स एवं प्रमाणित सामग्री का उपयोग प्रश्नों का उत्तर देने हेतु करने की अनुमति होती है। इस प्रकार के आंकलन का उद्देश्य छात्रों में अवधारणा को समझने एवं उन्हें प्रयोग करने की क्षमता को विकसित करना है ।
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के खुली पुस्तक परीक्षा आधारित आंकलन में विद्यार्थियों को परीक्षा कक्ष में पाठ्य पुस्तक ले जाने की अनुमति नहीं प्रदान की जाती है। प्रश्न-पत्र में भिन्न-भिन्न भाग होते हैं जो विषय से सम्बन्धित केस स्टडी पर या समस्या के समूहों पर आधारित होते हैं। विद्यार्थियों को चार माह पूर्व ही उन पाठों एवं अनुच्छेदों को बता दिया जाता है जिससे परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते हैं। यह परीक्षा प्राय: कक्षा नवीं से लेकर बारहवीं तक आयोजित की जाती है।
खुली पुस्तक परीक्षा का उदाहरण (Example of Open Book Examination)– खुली पुस्तक परीक्षा का उदाहरण निम्नलिखित है—
जून, 2013 को उत्तराखण्ड हिमालय की भीषण बाढ़ आपदा को कई पर्यावरणविदों ने मानव निर्मित कहा है। उनके अनुसार, मानवीय क्रियाकलापों से पर्यावरण में हुए परिवर्तनों ने समस्या को और अधिक गम्भीर बना दिया और प्राकृतिक व्यवस्था को बर्बाद कर दिया । विगत तीन दशकों में इस प्रदेश में जनसांख्यिकीय परिवर्तन, वनों को काटना, तीव्र नगरीकरण तथा सड़कों का विस्तार हुआ है। पर्यावरणविदों ने जोर देकर कहा है कि पहाड़ों द्वारा भार वहन करने की एक निश्चित क्षमता होती है जिसका किसी भी कीमत पर उल्लंघन नहीं होना चाहिए । उत्तराखण्ड और हिमालय प्रदेश दो ऐसे हिमालयी राज्य हैं जहाँ जून 2013 में आकस्मिक मानसूनी बाढ़ से सर्वाधिक हानि हुई है। मानव निर्मित कारकों ने आपदा के स्वरूप को और अधिक बढ़ा दिया। पनबिजली योजनाओं का बेरोक-टोक विस्तार, बढ़ता हुआ पर्यटन, विशेष रूप से धार्मिक पर्यटन आदि की सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण इस भयंकर विनाश का कारण है।
विशेषज्ञों के अनुसार, सड़कें और परिवहन के विस्तार के लिए अधिकतर मात्रा में पहाड़ों की मिट्टी ढहने से पहाड़ नीचे की ओर खिसक रहे हैं। पारिस्थितिक दृष्टि से कमजोर इस प्रदेश में पर्यटकों के आवास के लिए रिसार्ट्स, अतिथिगृहों और सड़कों का विवेकहीन अवैध निर्माण हुआ है। नदी के प्रवाह के लिए मौजूद प्राकृतिक मार्ग अतः पुरानी नालियों और सरिताओं पर भी भवन खड़े हो गए हैं, जिसके कारण प्रवाह अवरुद्ध हो गया। अलकनन्दा और उसकी सहायक नदी मन्दाकिनी में आई बाढ़ से यह पुनः अपने पुराने मार्ग पर बहने लगी, जहाँ पर समय बीतने के साथ मानव आवास भवन बन गए थे और अपने मार्ग में आने वाली समस्या एवं रुकावटों को धराशायी कर दिया। अवसादों से युक्त मन्दाकिनी दुकानों, अतिथि गृहों तथा यात्री निवासी को अपने साथ बहा ले गई । उस समय उनमें रह रहे लोग मारे गए। केदारनाथ धाम शान्ति और भक्ति का स्थान है। सन् 1882 में मन्दिर के आस-पास केवल कुछ झोपड़ियाँ ही थीं। धीरे-धीरे यहाँ अनियोजित ढंग से कई अवैध भवन, दुकानें, होटल/यात्री निवास आदि बन गए, जिसके फलस्वरूप अलकनन्दा का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हो गया। अत्यधिक वर्षा, झील का बाँध टूटने और हिमानियों के पिघलने से अतिरिक्त जल ग्रहण जब (मन्दाकिनी) नदी नए प्राकृतिक मार्ग की ओर अग्रसर हुई, तब इसके नए मार्ग में मौजूद सभी निर्माण शीघ्र ही नष्ट हो गये।
उपर्युक्त पैराग्राफ को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए —
(1) “उत्तराखण्ड हिमालय की बाढ़ मानव निर्मित तथा प्राकृतिक आपदा है।” समीक्षा कीजिए ।
(2) प्राकृतिक संसाधनों के दोहन तथा प्रदेश की वहन क्षमता पर पर्यावरणविदों के विचार क्या हैं ?
खुली पुस्तक परीक्षा का उद्देश्य एवं उपयोगिता (Objectives and Utility of Open Book Examination)– खुली पुस्तक परीक्षा का उद्देश्य विषयों को रटने की बजाय उसका विश्लेषण करके परीक्षा देने एवं उसके आंकलन से है। इसमें कक्षा 9वीं एवं 11वीं कक्षा के छात्रों को परीक्षा सामग्री तथ्यपरक, तार्किक, कौशल एवं अभिव्यक्ति के विकास के लिए इस प्रकार के आंकलन की व्यवस्था शुरू की गई ।
इस परीक्षा के अन्तर्गत विद्यालयों को आंकलन के लिए जीवन गाथा (Case study) या जीवन इतिहास को प्रदान किया जाता है तथा छात्र इसका अध्ययन कर परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देंगे। इस परीक्षा में सभी मुख्य विषयों में खुली किताब पर आधारित मूल्यांकन होगा। पाठ्यक्रम, जीवन इतिहास, रेखाचित्र, चित्र, कार्टून समस्या या स्थिति पर आधारित होंगे जो पाठ्यचर्या के अन्दर से ही लिये जाएगें। खुली पुस्तक आधारित आंकलन में उच्च स्तरीय चिन्तन से जुड़े प्रश्न भी शामिल होंगे तथा कुछ प्रश्न विषयनिष्ठ पर आधारित भी होंगे। इसके द्वारा उन्हें समूहों के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा तथा इसमें शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी जो विषय तथा पाठ्यचर्या के उपयोग के मध्य अन्तर को कम करने का प्रयास करेगा ।
खुली पुस्तक परीक्षा में अध्यापक की भूमिका (Role Teacher in Open Book Examination)– खुली पुस्तक परीक्षा में अध्यापक की भूमिका निम्नलिखित है—
(1) शिक्षक छात्रों के सैद्धान्तिक ज्ञान एवं व्यावहारिक ज्ञान के मध्य एक पुल की भाँति कार्य करता है। आंकलन हेतु * केस स्टडी का निर्माण इसलिए किया जाता है जिससे छात्र सीखे गए ज्ञान को व्यावहारिक रूप में प्रयोग कर सकें ।
(2) केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा जो सामग्री उपलब्ध कराई जाती है वह विद्यार्थियों को समूह में प्रदान की जाती है जिससे छात्र इसे आपस में विचार-विमर्श करके उसके तथ्यों को समझते हैं। अतः शिक्षक को चाहिए कि इसके माध्यम से वह छात्रों में परस्पर सहयोग, आलोचनात्मक चिन्तन आदि गुणों का विकास करे।
(3) शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को उनकी गतिविधि पूर्ण होने तक बीच-बीच में एक नियमित समय अन्तराल पर उन्हें पृष्ठपोषण (Feedback) प्रदान करता रहे।
(4) शिक्षक को ऐसे प्रश्नों के लिए भी तैयार रहना चाहिए जिनका सम्बन्ध वास्तविक जीवन के कठिन स्थितियों से होता है क्योंकि कभी-कभी छात्रों को जो केस स्टडी प्रदान की जाती है वह कुछ जटिल समस्याओं पर आधारित होती है अतः शिक्षक को उस समस्या से सम्बन्धित सभी प्रश्नों के उत्तर तैयार रखना चाहिए।
खुली पुस्तक परीक्षा के लाभ (Advantages of Open Book Examination)– खुली पुस्तक परीक्षा के लाभ निम्नलिखित हैं—
( 1 ) छात्रों को आंकलन के माध्यम से प्रोत्साहित प्रदान करने हेतु एक विकल्प के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।
(2) इसके माध्यम से छात्रों में रचनात्मकता का विकास किया जाता है।
(3) छात्रों को भविष्य की परीक्षाओं हेतु तैयार किया जाता है ।
(4) अवधारणाओं को वास्तविक रूप में समझने में सक्षम बनाया जाता है।
(5) इसके माध्यम से छात्रों में उच्च चिन्तन कौशल का विकास होता है ।
खुली पुस्तक परीक्षा की हानियाँ (Disadvantages of Open Book Examination) – खुली पुस्तक परीक्षा की हानियाँ निम्नलिखित है—
(1) इसकी उत्तर पुस्तिका की जाँच करने में समय बहुत व्यतीत होता है।
(2) छात्र यदि प्रश्नों का अर्थ नहीं समझ पाते तो इससे परिणाम प्रभावित होते हैं।
(3) यदि प्रश्न-पत्र का निर्माण जटिल रूप में किया जाता हे उन्हें प्रश्नों का उत्तर देने में असुविधा महसूस होती है।
(4) इस आंकलन के प्रारूप को विकलांग बच्चों के अनुरूप बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है जो कि शिक्षकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
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