निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए —

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए —

(i) विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था

(ii) सेमीनार
उत्तर— (i) विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था — विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था की कार्यप्रणाली को हम निम्नलिखित बातों या बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं—
(i) विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था में प्रयुक्त शब्दों या पदों की जानकारी
(ii) विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था के अवयवों की जानकारी
(1) विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था में प्रयुक्त शब्दों या पदों की जानकारी— विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था को काम में लाने हेतु सबसे पहले यह जरूरी है कि हमें इसको अच्छी तरह काम में लाने के लिए सहायता वाली शब्दावली और परिभाषित पदों की अच्छी तरह जानकारी हो। इस सम्बन्ध में विश्वविद्यालय आयोग ने अपनी मार्गदर्शिका में इनका भली-भाँति प्रदान किया है। यह जानकारी उनकी वेबसाइट पर भी पूर्णरूप से उपलब्ध है और वहाँ से भली-भाँति अर्जित की जा सकती है।
(2) विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था के अवयव या भाग — विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था के पांच अवयव या भाग हैं जिनका इस व्यवस्था की सफल कार्यप्रणाली के लिए ध्यान रखना और संगठित करना जरूरी होता है।
(i) सेमेस्टर प्रणाली अपनाना ।
(ii) विभिन्न प्रकार के कोर्स (पाठ्यक्रमों) और उनके शिक्षण की सुविधा प्रदान करना।
(iii) क्रेडिट प्रणाली का उपयोग ।
(iv) सतत् एवं समग्र मूल्यांकन व्यवस्था ।
(v) ग्रेडिंग प्रणाली का उपयोग ।
(ii) सेमीनार – सेमिनार अनुदेशन की ऐसी प्रविधि है जिसमें विभिन्न चिन्तन- स्तर के अधिगम के लिए अन्तः प्रक्रिया की परिस्थिति उत्पन्न की जाती है तथा विभिन्न स्तरों पर अनुदेशन परिस्थितियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
सेमिनार के उद्देश्य (Objectives of Seminar) — सेमिनार के उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive Objectives) —
(i) विश्लेषण तथा आलोचनात्मक क्षमताओं का विकास,
(ii) संश्लेषण तथा मूल्यांकन की योग्यता का विकास,
(iii) निरीक्षण तथा अनुभवों के प्रस्तुतीकरण की क्षमता का विकास एवं
(iv) किसी प्रकरण सम्बन्धी स्पष्टीकरण करने तथा उससे सम्बन्धित समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता का विकास ।
(2) भावात्मक उद्देश्य (Affective Objectives) — अन्य व्यक्तियों के विरोधी विचार तथा दृष्टिकोण की सहनशीलता का विकास, विचारों की स्वच्छन्दता तथा दूसरों से सहयोग की भावना का विकास, भावात्मक स्थिरता का विकास तथा दूसरों की भावनाओं के प्रति सम्मान की भावना का विकास ।
(3) अन्य उद्देश्य (Other Objectives) — इससे अपना दृष्टिकोण रखना, स्पष्टीकरण करना तथा स्पष्टीकरण माँगने के व्यवहारों का विकास होता है। प्रश्नों के पूछने तथा प्रश्नों के उत्तर देने के कौशल का विकास होता है।
सेमिनार सेमिनार इस के गुण (Merits of Seminar) के गुण प्रकार हैं—
(i) शिक्षा के ज्ञानात्मक तथा भावात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति।
(ii) प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास।
(iii) प्रस्तुतीकरण तथा तर्क करने की क्षमताओं का विकास।
(iv) उत्तम प्रकार की अधिगम आदतों तथा शिक्षाओं के अधिगम के तन्मयता का विकास।
(v) शिक्षार्थी केन्द्रित सेमिनार प्रविधि ।
(vi) स्वतंत्र अध्ययन को प्रोत्साहन|
(vii) सामाजिक तथा भावात्मक गुणों का विकास
(viii) प्रकरण सम्बन्धी निरीक्षण तथा अनुभवों को प्रस्तुत करने का अवसर ।
(ix) वाद-विवाद में भाग लेने तथा बोलने के कौशल का विकास । (x) विद्यार्थी द्वारा स्वाभाविक ढंग से सीखना |
(xi) आलोचनात्मक चिन्तन का विकास ।
सेमिनार के दोष (Demerits of Seminar) – सेमिनार के अपने कुछ दोष हैं, जो निम्नलिखित हैं—
(i) किसी विषय के सभी प्रकरणों के लिए सेमिनार का आयोजन नहीं किया जा सकता, उन्हीं प्रकरणों का चयन किया जाता है जिन पर वाद-विवाद हो सकें।
(ii) इस प्रविधि को शिक्षा के सभी स्तरों पर प्रयोग नहीं कर सकते हैं क्योंकि इसके लिए भाषा सामाजिक, भावात्मक, परिपक्व होनी चाहिए। निम्न स्तर पर इसका प्रयोग सम्भव नहीं है।
(iii) सेमिनार के वाद-विवाद काल में ऐसा देखा गया है कि इसमें कुछ ही व्यक्ति भाग लेते हैं और अपना अधिकार स्थापित कर लेते हैं। अन्य व्यक्ति बिल्कुल नहीं बोलने अथवा उन्हें बोलने का अवसर नहीं मिलता । सम्पूर्ण समूह में अन्तःक्रिया नहीं होती।
(iv) सेमिनार के वाद-विवाद काल में समूह बनने की संभावना बनी रहती है। विरोधी विचारों के व्यक्ति एक समूह में तथा मूल विचारों के दूसरे समूह में बँट जाते हैं। भागीदार उसे विजय अथवा पराजय के रूप में लेते हैं। ऐसी परिस्थिति में सेमिनार का उद्देश्य प्राप्त नहीं होता है।
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