निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए—

 निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए—

(अ) कुपोषण के कुप्रभाव

(ब) स्वास्थ्य शिक्षा में अध्यापक की भूमिका
                                  अथवा
छात्रों को स्वास्थ्य बनाए रखने में एक शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर—  अ) कुपोषण के कुप्रभाव– कुपोषण के कुप्रभाव निम्नलिखित प्रकार हैं—
(1) रोगों का शिकार होना – कुपोषण से रतौंधी, आँखों का रोग, दाँतों का निर्बल होना तथा बच्चों में सूखा रोग का होना, कुपोषण का सबसे बड़ा लक्षण व प्रभाव है, जिससे बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाता है ।
(2) थकान – कुपोषण से पीड़ित बच्चे या व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत शीघ्र थकान महसूस करने लगते हैं और प्रतिदिन की गतिविधियाँ भी बाधित हो जाती हैं।
(3) शरीर का भार कम होना – कुपोषण का एक प्रत्यक्ष रूप या प्रभाव जो दिखाई देता है वह है शरीर का भार कम होना और बच्चा धीरे-धीरे एक हड्डीं का ढाँचा-सा दिखाई देता है।
(4) एकाग्रता में कमी आना – कुपोषण से एकाग्रता में कमी आ जाती है, जिसके कारण किसी भी कार्य में रुचि नहीं रहती और न ही कोई कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो पाता है जिससे खिन्नता बढ़ती है । –
(5) माँसपेशियों का ढीला होना – कुपोषण से शिकार बच्चों के चेहरे की चमक समाप्त हो जाती है तथा रंग पीला पड़ जाता है। आँखें सुस्त व अन्दर को धँसी दिखाई देती हैं तथा शरीर की सभी माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाती है व आसन या आकृति बिगड़ जाती है ।
(6) मानसिक तनाव – कुपोषण के कारण व्यक्ति चिन्ता, बेचैनी, घबराहट, खून की कमी, अनिद्रा का शिकार और बेजान हो जाता है और किसी काम में मन नहीं लगता।
(7) शारीरिक आकृति या मुदा पर कुप्रभाव – कमजोरी व थकान के कारण व्यक्ति खड़े होने, चलने व बैठने की गलत मुद्राएँ अपनाता है। परिणामस्वरूप शरीर की स्थिति में परिवर्तन हो जाते हैं और व्यक्ति में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं व शरीर का उचित विकास रुक जाता है।
(8) शारीरिक ऊर्जा में कमी – कुपोषण से शरीर की ऊर्जा में कमी आ जाती है, जिससे चुस्ती व फूर्ति कम हो जाती है व व्यक्ति सुस्त व असहाय हो जाता है। सिर दर्द, भारीपन, जुकाम, खाँसी जल्द पकड़ लेते हैं, क्योंकि रोग निरोधक क्षमता कम हो जाती है।
(ब) स्वास्थ्य शिक्षा में अध्यापक की भूमिका – विद्यालयी रूपी इस बाग में शिक्षक एक बागबां के रूप में कार्य करता है । अतः स्वास्थ्य शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षक छात्रों के स्वास्थ्य का विकास निम्न बातों व कार्यों के माध्यम से कर सकता है—
(1) छात्रों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी देकर उनका सर्वांगीण विकास करना ।
(2) छात्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी अच्छी आदतों का विकास करना ।
(3) विद्यार्थियों को व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व की जानकारी देना व नाखूनों, दाँत, वस्त्र व बालों आदि का दैनिक निरीक्षण करना ।
(4) छात्रों को शौचालय व मूत्रालय के उचित प्रयोग व सफाई की जानकारी देना ।
(5) रोगग्रस्त छात्रों को अलग-अलग रखना तथा उनके मातापिता व स्वास्थ्य अधिकारी को सूचित करना ।
(6) छात्रों को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान कराना।
(7) छात्रों के आसन सम्बन्धी दोषों का पता लगाना व इन्हें दूर करने का प्रशिक्षण देना।
(8) छात्रों को संक्रामक रोगों के फैलने के कारण प्रभाव व लक्षण आदि की जानकारी देना व इनके बचाव के लिए टीकाकरण करवाना।
(9) बच्चों को पौष्टिक भोजन के महत्त्व व संतुलित आहार की जानकारी देना व इनके बचाव के लिए टीकाकरण करवाना।
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