निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –

निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –

(i) खुली पुस्तक परीक्षा
(ii) सामयिक कार्य
(iii) पोर्टफोलियो
(iv) प्रश्न बैंक
उत्तर—(i) खुली पुस्तक परीक्षा—केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने सिफारिश की है कि छात्रों की व्यक्तिगत शक्तियों की विभिन्न क्षमताओं को पूरा करने हेतु आकलन के लिए विभिन्न साधनों को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। इसी के आधार पर बोर्ड ने सन् 2014 में कक्षा नौवीं तथा ग्यारहवीं के लिए खुली पुस्तक परीक्षा आधारित आकलन को प्रस्तुत किया था। इस आकलन को सम्मिलित करने का उद्देश्य छात्रों में विश्लेषणात्मक एवं सैद्धान्तिक कौशलों का विकास करना है ।
सामान्यत: अन्य देशों में खुली पुस्तक परीक्षा आधारित आकलन के अन्तर्गत छात्रों को परीक्षा के दौरान अपनी पाठ्य पुस्तक, क्लास नोट्स एवं प्रमाणित सामग्री का उपयोग प्रश्नों का उत्तर देने हेतु करने की अनुमति होती है। इस प्रकार के आकलन का उद्देश्य छात्रों में अवधारणा को समझने एवं उन्हें प्रयोग करने की क्षमता को विकसित करना है।
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के खुली पुस्तक परीक्षा आधारित आकलन में विद्यार्थियों को परीक्षा कक्ष में पाठ्य पुस्तक ले जाने की अनुमति नहीं प्रदान की जाती है। प्रश्न-पत्र में भिन्न-भिन्न भाग होते हैं जो विषय से सम्बन्धित केस स्टडी पर या समस्या के समूहों पर आधारित होते हैं। विद्यार्थियों को चार माह पूर्व ही उन पाठों एवं अनुच्छेदों को बता दिया जाता है जिससे परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते हैं। यह परीक्षा प्राय: कक्षा नवीं से लेकर बारहवीं तक आयोजित की जाती है।
खुली पुस्तक परीक्षा का उदाहरण—खुली पुस्तक परीक्षा का उदाहरण निम्नलिखित है-
जून, 2013 को उत्तराखण्ड हिमालय की भीषण बाढ़ आपदा को कई पर्यावरणविदों ने मानव निर्मित कहा है। उनके अनुसार, मानवीय क्रियाकलापों से पर्यावरण में हुए परिवर्तनों ने समस्या को और अधिक गम्भीर बना दिया और प्राकृतिक व्यवस्था को बर्बाद कर दिया। विगत • तीन दशकों में इस प्रदेश में जनसांख्यिकीय परिवर्तन, वनों को काटना, तीव्र नगरीकरण तथा सड़कों का विस्तार हुआ है। पर्यावरणविदों ने जोर देकर कहा है कि पहाड़ों द्वारा भार वहन करने की एक निश्चित क्षमता होती है जिसका किसी भी कीमत पर उल्लंघन नहीं होना चाहिए। उत्तराखण्ड और हिमालय प्रदेश दो ऐसे हिमालयी राज्य हैं जहाँ जून 2013 में आकस्मिक मानसूनी बाढ़ से सर्वाधिक हानि हुई है। मानव निर्मित कारकों ने आपदा के स्वरूप को और अधिक बढ़ा दिया। पनबिजली योजनाओं का बेरोक-टोक विस्तार, बढ़ता हुआ पर्यटन, विशेष रूप से धार्मिक पर्यटन आदि की सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण इस भयंकर विनाश का कारण है।
विशेषज्ञों के अनुसार, सड़कें और परिवहन के विस्तार के लिए अधिकतर मात्रा में पहाड़ों की मिट्टी ढहने से पहाड़ नीचे की ओर खिसक रहे हैं। पारिस्थितिक दृष्टि से कमजोर इस प्रदेश में पर्यटकों के आवास के लिए रिसार्ट्स, अतिथिगृहों और सड़कों का विवेकहीन अवैध निर्माण हुआ है। नदी के प्रवाह के लिए मौजूद प्राकृतिक मार्ग अतः पुरानी नालियों और सरिताओं पर भी भवन खड़े हो गए हैं, जिसके कारण प्रवाह अवरुद्ध हो गया। अलकनन्दा और उसकी सहायक नदी मन्दाकिनी में आई बाढ़ से यह पुनः अपने पुराने मार्ग पर बहने लगी, जहाँ पर समय बीतने के साथ मानव आवास भवन बन गए थे और अपने मार्ग में आने वाली समस्या एवं रुकावटों को धराशायी कर दिया। अवसादों से युक्त मन्दाकिनी दुकानों, अतिथि गृहों तथा यात्री निवासी को अपने साथ बहा ले गई। उस समय उनमें रह रहे लोग मारे गए। केदारनाथ धाम शान्ति और भक्ति का स्थान है। सन् 1882 में मन्दिर के आस-पास केवल कुछ झोपड़ियाँ ही थीं। धीरे-धीरे यहाँ अनियोजित ढंग से कई अवैध भवन, दुकानें, होटल/यात्री निवास आदि बन गए, जिसके फलस्वरूप अलकनन्दा का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हो गया। अत्यधिक वर्षा, झील का बाँध टूटने और हिमानियों के पिघलने से अतिरिक्त जल ग्रहण जब (मन्दाकिनी) नदी नए प्राकृतिक मार्ग की ओर अग्रसर हुई, तब इसके नए मार्ग में * मौजूद सभी निर्माण शीघ्र ही नष्ट हो गये ।
उपर्युक्त पैराग्राफ को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) “उत्तराखण्ड हिमालय की बाढ़ मानव निर्मित तथा प्राकृतिक आपदा है।” समीक्षा कीजिए।
(2) प्राकृतिक संसाधनों के दोहन तथा प्रदेश की वहन क्षमता पर पर्यावरणविदों के विचार क्या हैं ?
खुली पुस्तक परीक्षा का उद्देश्य एवं उपयोगिता—खुली पुस्तक परीक्षा का उद्देश्य विषयों को रटने की बजाय उसका विश्लेषण करके परीक्षा देने एवं उसके आकलन से है। इसमें कक्षा 9वीं एवं 11वीं कक्षा के छात्रों को परीक्षा सामग्री तथ्यपरक, तार्किक, कौशल एवं अभिव्यक्ति के विकास के लिए इस प्रकार के आकलन की व्यवस्था शुरू की गई।
इस परीक्षा के अन्तर्गत विद्यालयों को आकलन के लिए जीवन गाथा (Case study) या जीवन इतिहास को प्रदान किया जाता है तथा छात्र इसका अध्ययन कर परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देंगे। इस परीक्षा में सभी मुख्य विषयों में खुली किताब पर आधारित मूल्यांकन होगा। पाठ्यक्रम, जीवन इतिहास, रेखाचित्र, चित्र, कार्टून समस्या या स्थिति पर आधारित होंगे जो पाठ्यचर्या के अन्दर से ही लिये जाएगें। खुली पुस्तक आधारित आकलन में उच्च स्तरीय चिन्तन से जुड़े प्रश्न भी शामिल होंगे तथा कुछ प्रश्न विषयनिष्ठ पर आधारित भी होंगे। इसके द्वारा उन्हें समूहों के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा तथा इसमें शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी जो विषय तथा पाठ्यचर्या के उपयोग के मध्य अन्तर को कम करने का प्रयास करेगा। खुली पुस्तक
परीक्षा में अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher in Open Book Examination)–खुली पुस्तक परीक्षा में अध्यापक की भूमिका निम्नलिखित है—
(1) शिक्षक छात्रों के सैद्धान्तिक ज्ञान एवं व्यावहारिक ज्ञान के मध्य एक पुल की भाँति कार्य करता है। आकलन हेतु केस स्टडी का निर्माण इसलिए किया जाता है जिससे छात्र सीखे गए ज्ञान को व्यावहारिक रूप में प्रयोग कर सकें ।
(2) केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा जो सामग्री उपलब्ध कराई जाती है वह विद्यार्थियों को समूह में प्रदान की जाती है जिससे छात्र इसे आपस में विचार-विमर्श करके उसके तथ्यों को समझते हैं। अतः शिक्षक को चाहिए कि निर्भर इसके माध्यम से वह छात्रों में परस्पर सहयोग, आलोचनात्मक चिन्तन आदि गुणों का विकास करे।
(3) शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को उनकी गतिविधि और उसे पूर्ण होने तक बीच-बीच में एक नियमित समय अन्तराल पर उन्हें पृष्ठपोषण (Feedback) प्रदान करता रहे।
(4) शिक्षक को ऐसे प्रश्नों के लिए भी तैयार रहना चाहिए जिनका सम्बन्ध वास्तविक जीवन के कठिन स्थितियों से होता है क्योंकि कभी-कभी छात्रों को जो केस स्टडी प्रदान की जाती है वह कुछ जटिल समस्याओं पर आधारित होती है अतः शिक्षक को उस समस्या से सम्बन्धित सभी प्रश्नों के उत्तर तैयार रखना चाहिए।
खुली पुस्तक परीक्षा के लाभ–खुली पुस्तक परीक्षा के लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) करने छात्रों को आकलन के माध्यम से प्रोत्साहित प्रदान हेतु एक विकल्प के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।
(2) इसके माध्यम से छात्रों में रचनात्मकता का विकास किया जाता है।
(3)  छात्रों को भविष्य की परीक्षाओं हेतु तैयार किया जाता है।
(4) अवधारणाओं को वास्तविक रूप में समझने में सक्षम बनाया जाता है।
(5) इसके माध्यम से छात्रों में उच्च चिन्तन कौशल का विकास होता है।
खुली पुस्तक परीक्षा की हानियाँ- खुली पुस्तक परीक्षा की हानियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) इसकी उत्तर पुस्तिका की जाँच करने में समय बहुत व्यतीत होता है।
(2) छात्र यदि प्रश्नों का अर्थ नहीं समझ पाते तो इससे परिणाम प्रभावित होते हैं ।
(3) यदि प्रश्न-पत्र का निर्माण जटिल रूप में किया जाता है तो उन्हें प्रश्नों का उत्तर देने में असुविधा महसूस होती है।
(4) इस आकलन के प्रारूप को विकलांग बच्चों के अनुरूप बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है जो कि शिक्षकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
(ii) सामयिक कार्य— इसे गृहकार्य या दत्त कार्य भी कहते हैं। गृहकार्य/दत्तकार्य/सामयिक कार्य शैक्षिक क्रिया का वह भाग हैं, जिसे विद्यार्थियों को पूरा करने के लिए दिया जाता है। प्रत्येक विद्यालय में प्राय: इसका प्रयोग किया जाता है। शिक्षण स्व-अध्ययन पर आधारित है और अधिक विस्तृत होने के कारण अध्यापक को उसी अनुदेशन पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि अध्यापक विद्यार्थी की गलतियों तथा कठिनाइयों के बारे में जानना चाहता है तो उसे इस बात का अधिक ध्यान रखना होगा कि वह छात्रों से किस काम की अपेक्षा रखता है .और उसी से सम्बन्धित गृहकार्य/दत्त कार्य छात्रों को दिया जाना चाहिए। गृहकार्य/दत्त कार्य के द्वारा छात्रों को व्यक्तिगत रूप से सीखने के पाठ्यवस्तु की व्यवस्था तथा संगठन के अधिक अवसर मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सीखी हुई पाठ्यवस्तु पर पुनः छात्र को सोचने तथा नवीन तरीकों से करने के अवसर मिलते हैं।
गृहकार्य/दत्त कार्य के द्वारा ज्ञानात्मक पक्ष के सभी उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है साथ ही ज्ञानात्मक पक्ष के साथ क्रियात्मक पक्ष के निम्न स्तर के उद्देश्यों की भी प्राप्ति की जा सकती है ।
सामयिक/दत्तकार्य / गृहकार्य की आवश्यकता –  इसकी आवश्यकता को हम निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से निरूपित कर सकते हैं—
(1) दत्तकार्य/गृहकार्य के माध्यम से छात्र अध्ययन का उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं।
(2) पाठ्यपुस्तकों के उपयोग को सीखने के लिए गृहकार्य अत्यन्त आवश्यक है।
(3) अध्यापक द्वारा जब छात्र का गृहकार्य जाँचा जाता है, तो अध्यापक छात्रों को उनकी त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाता है। जिससे छात्रों को अपनी त्रुटियों का ज्ञान होता है। अतः त्रुटियों के ज्ञान के लिए गृहकार्य आवश्यक है।
(4) दत्तकार्य/गृहकार्य में समस्या उत्पन्न होने पर छात्र अपने सहपाठी का सहयोग होता है। इस प्रकार गृहकार्य छात्रों में सहयोगपूर्ण अधिगम की प्रवृत्ति विकसित करने के लिए आवश्यक है।
(5) दत्तकार्य/गृहकार्य छात्र के कार्यकलाप को नई दिशा व निश्चितता प्रदान करने के लिए आवश्यक है।
(6) दत्तकार्य/गृहकार्य के द्वारा ही छात्र गृहकार्य के समय आई कठिनाइयों को बुद्धिमत्ता से निवारण करने के योग्य बनता है।
(7) दत्तकार्य/गृहकार्य छात्रों को जिम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिए आवश्यक है।
(8) दत्तकार्य/गृहकार्य के माध्यम से छात्र अपने पूर्व ज्ञान का उपयोग करना सीखता है, जो कि अध्ययन के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
(9) दत्तकार्य/गृहकार्य की सहायता से छात्र गृहकार्य में आने वाली समस्याओं का समाधान स्वयं करना सीखता है, जिससे छात्र में चिन्तन कौशलों का विकास होता है जो कि अध्ययन के सर्वोत्तम विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
(10) दत्तकार्य/गृहकार्य से छात्रों में लेखन की प्रवृत्ति का विकास होता है जो उन्हें लेखन में परिपक्व बनाने हेतु आवश्यक है।
अतः उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि छात्रों के लिए दत्तकार्य/गृहकार्य अत्यन्त उपयोगी एवं आवश्यक है।
सामयिक/दत्तकार्य / गृहकार्य की सीमाएँ— हालाँकि दत्तकार्य/ गृहकार्य अत्यन्त उपयोगी एवं लाभप्रद हैं, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार हैं-
(1) अधिकांश छात्र, दत्तकार्य / गृहकार्य को गम्भीरता से नहीं लेते हैं तथा उसमें किसी प्रकार की रुचि प्रदर्शित नहीं करते हैं ।
(2) अध्यापक जब प्रत्येक छात्र का दत्तकार्य/गृहकार्य जाँचता है, तो उसमें काफी समय लगता है, जिससे निर्धारित कालांश में पढ़ाना मुश्किल हो जाता है। जिससे समय पर पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं हो पाता है।
(3) अध्यापक द्वारा दिए गए दत्तकार्य/गृहकार्य को कई छात्र अपने बड़े भाई या बहन से करवा लेते हैं। जिससे अध्यापक भ्रमित हो जाता है कि छात्र सब कुछ जानता है जबकि छात्र केवल अध्यापक को नहीं, बल्कि स्वयं को भी धोखा देते हैं।
(4) अधिकांश छात्र अपने गृहकार्य/सामयिक कार्य को अन्य छात्र की नकल मारकर पूरा कर लेते हैं। जिससे छात्र की योग्यता में कोई वृद्धि नहीं होती है।
(5) अधिकतर अध्यापक पूरी कक्षा के सभी विद्यार्थियों को समान रूप से गृहकार्य/सामयिक देते हैं, वे छात्र की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में नहीं रखते हैं। इस कारण छात्रों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।
 (iii) पोर्टफोलियो का अर्थ  – विद्यालय में विद्यार्थी के सीखने की प्रक्रिया के दौरान जब मूल्यांकन या आकलन साथ-साथ चल रहा होता है, उस अवस्था में शिक्षक के पास विद्यार्थियों के बारे में बहुत सी सूचनाएँ तथा जानकारी एकत्रित हो जाती है, जिसमें विद्यार्थियों द्वारा किए गए कार्यों का संग्रह, दैनिक क्रिया के कार्यों का संग्रह या विद्यार्थी द्वारा किए गए क्रिया-कलापों के नमूने हो सकते हैं। किसी भी विद्यार्थी से सम्बन्धित ये सभी तिथि सहित एकत्रित सामग्री विद्यार्थी का जीवन वृत (बायोडाय) तथा अध्यापक द्वारा विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन हेतु अपनाए गए उपाय व विद्यार्थियों की प्रतिक्रियाएँ छात्र का पोर्टफोलियो कहलाता है। उक्त पोर्टफोलियो में विद्यार्थी का विद्यालय में, घर और समाज में उपलब्धियों का साक्ष्य वर्णित होता है। इसमें विभिन्न क्रियाओं, गतिविधियों तथा कौशलों में उनकी पारंगतता का प्रदर्शन भी होता है।
पोर्टफोलियो के उद्देश्य—पोर्टफोलियो के उद्देश्य निम्नलिखित  है-
(1) छात्र अपनी अधिगम की योजना बना सकेंगे।
(2) छात्र अपनी अधिगम की व्यवस्था के स्वरूप को अपना सकेंगे।
(3) छात्र आकलन हेतु सक्रिय और प्रतिबिम्बित भूमिका अपना सकेंगे।
(4) छात्र प्राप्त ज्ञान /अधिगम को प्रदर्शित करने के अवसर को प्राप्त कर सकेंगे।
(5) छात्र अपना बौद्धिक विकास कर अधिगम में वृद्धि कर सकेंगे।
पोर्टफोलियो आकलन के आधारभूत तत्त्व- पोर्टफोलियो आकलन के लिए शिक्षक को सामान्य रूप से एक आधार-पत्रक बनाना चाहिए जिसमें बच्चों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का प्रावधान सम्मिलित हों। इसके आधार पर शिक्षक बच्चों की उनकी वास्तविक स्थिति के बिन्दुओं की जानकारी प्राप्त करता है, जैसे—
(1) बच्चे क्या-क्या कर सकते हैं, क्या करना चाह रहे हैं और क्या करने में उसे कठिनाई महसूस हो रही है।
 (2) बच्चे को क्या-क्या करना ज्यादा पसन्द है और क्या-क्या करना नापसन्द ।
(3) समस्या आने पर भी बच्चों ने कार्य को पूरा किया
नहीं।
(4) सहयोग , उत्तरदायित्व, संवेदनशीलता, रुचि आदि पहलुओं पर वार्तालाप के अवसर को तलाशा कि नहीं।
(5) अभिभावक से चर्चा करना कि वे अपने बालकों को किस प्रकार परिमार्जन हेतु मदद कर सकते हैं, घर पर बालकों का आकलन किस प्रकार कर सकते हैं।
(6) बच्चों द्वारा किए गए कार्यों का नमूना, किए गए कार्यों के विशिष्ट कार्य, गुणात्मक कथन, मात्रात्मक पृष्ठपोषण आदि को संकलित कर नियत समय पर उसका प्रस्तुतीकरण।
(7) बच्चों ने किस कार्य को किस तरह से सीखा है और सीखने में कहाँ-कहाँ पर कठिनाइयों का सामना किया
(8) बच्चों के अच्छे और बुरे कार्यों की चर्चा अभिभावकों से करना जिससे उनकी सफलता और सुधार के क्षेत्रों को दिखाने में सहायता कर सके।
(9) बच्चे को वास्तविक ज्ञान देने के लिए शिक्षक द्वारा अधिगम के विभिन्न शैलियों/पद्धतियों को अपनाने की संज्ञानात्मक प्रगति पर चर्चा करना ।
(10) छात्र का उन मापदण्डों से परिचित करना जिनका उपयोग उनके काम को परखने के लिए किया जायेगा।
पोर्टफोलियो आकलन का शिक्षक के लिए महत्त्व – पोर्टफोलियो शिक्षक को बच्चों के कार्यों के बारे में आकलन करने हेतु कई प्रकार से उपयोगी सिद्ध होता है तथा यह शिक्षक के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य है, जैसे कि-
(1) सम्पूर्ण सत्र अथवा सम्पूर्ण वर्ष में बच्चों के विकास प्रगति को जानने में सहायता मिलती है।
(2) बच्चों को स्वयं के कार्य के बारे में तथा स्वयं के मूल्यांकन के बारे में जानने तथा भविष्य की कार्ययोजना बनाने में सहायक होता है ।
(3) शिक्षक-विद्यार्थी, शिक्षक-अभिभावक एवं शिक्षक व किसी विशेष सन्दर्भ में व्यक्ति के बीच बच्चों की उपलब्धि प्रगति तथा संवृद्धि के विषय में सम्प्रेषण हेतु समन्वय स्थापित करता है।
(4) शिक्षक, विद्यार्थी तथा अभिभावक के बीच बच्चे की प्रगति हेतु साझा प्रयास के विचारों और तथ्यों को विकसित करता है।
(5) बच्चे के दृष्टिकोण, रुचि, सोच, सीखने के तरीके, कमजोरी के बिन्दु, क्रिया-कौशल, जाँच-पड़ताल के कौशल व विषय वस्तु के ग्रहण करने की क्षमता के बारे में आकलन करने के बारे में विवरण प्रस्तुत करता है। पोर्टफोलियो में बच्चे के केवल सर्वोत्तम कार्यों को ही नहीं बल्कि आवश्यक रूप से उनके द्वारा किए गए सभी प्रकार के क्रिया-कलापों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि सम्पूर्ण वर्ष में बच्चे द्वारा किए गए कार्यों, गतिविधियों के बारे में तथा उनमें हुई सतत् प्रगति के बारे में जानकारी तथा आकलन हो सकें। इस हेतु पोर्टफोलियो आकलन में निम्नलिखित तथ्यों को सम्मिलित किया जा सकता है-
 (1) अवलोकन टिप्पणी प्रयोग की टिप्पणी।
 (2) फील्ड रिपोर्ट- साक्षात्कार, प्रश्नावली, रिपोर्ट, चित्र, तालिका ग्राफ एवं एकत्र किए गए सामान।
 (3) सर्वे फार्मेट-प्रतिवेदन, प्रगति आकलन पत्रक, आकलन के प्रारूप एवं अन्य सर्वे से सम्बन्धित प्रपत्र ।
 (4) प्रतिक्रिया टिप्पणी या स्व-आकलन टिप्पणी।
 (5) सृजनात्मक कार्यों की विस्तृत सूची।
पोर्टफोलियो का आकलन  – पोर्टफोलियो आकलन एक व्यवस्थित छात्र कार्यों का संग्रह है, जिसे विशेष ज्ञान, अनुदेशन, उद्देश्यों एवं मूल्यांकन के मापदण्ड के विशेष सन्दर्भ में एकत्रित किया जाता है। छात्र के व्यक्तिगत क्रियाओं के मापन द्वारा आकलन विशेष मानदण्डों के आधार पर किया जाता है। पोर्टफोलियो के विकास अध्यापक के निर्देशन एवं सहायता से अधिगमकर्ता द्वारा किया जाता है। अध्यापक एकीकृत पोर्टफोलियों में अनुदेशन व आकलन के साथ-साथ आकलन से सम्बन्धित छात्र, अध्यापक, प्रशासन, माता-पिता एवं सहपाठी द्वारा पूछे गए प्रश्नों को भी सम्मिलित करता है।
पोर्टफोलियो आकलन एक विकल्पात्मक या मानकीकृत आकलन होता है जो छात्र की प्रगति तथा विकास का मापन एक निश्चित समयवधि में करता है। इसमें विशेष प्रकार के कौशलों का चयन किया जाता है जिसमें चारों भाषायी कौशल, यथा-पढ़ना, लिखना, सुनना एवं मौखिक तथा तीनों संचारी प्रारूप तथा अन्तर्वैयक्तिक अन्तर्मुखी एवं व्यक्तिगत का आकलन सम्मिलित किया जाता है।
पोर्टफोलियो आकलन अनुदेशन के अधिक समीप होता है, जिसके दो शैक्षणिक लाभ होते हैं प्रथम लाभ यह है कि आपने (शिक्षक) अब तक छात्रों को जो कुछ भी पढ़ाया है उसका मापन हो रहा है जिसमें आकलन अनुदेशन से जुड़ रहा है। दूसरा लाभ यह है कि उसके द्वारा यह ज्ञात होता है कि अनुदेशन अभ्यास में कौन-कौन सी कमी रह गई है। इसमें आकलन भी एक प्रकार से अधिगम अनुभव होता है। यह विद्यार्थियों को सकारात्मक रूप से सम्मिलित करता है, उसके सकारात्मक पक्ष को मजबूत करता है, उनके आत्मविश्वास में वृद्धि करता है तथा बच्चों के रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहित करता है।
(iv) प्रश्न बैंक प्रश्न बैंक प्रश्नों का वह संग्रह है जिसका उपयोग छात्र अपने अध्ययन के लिए अध्यापक अध्यापन के लिए तथा परीक्षक प्रश्न-पत्र की रचना के लिए उपयोग करते हैं। पाठ्यक्रम के सभी इकाइयों से एक निश्चित अनुपात में प्रश्नों का प्रतिनिधित्व होता है। बाह्य एवं आन्तरिक परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ, वैध व विश्वसनीय प्रश्न पूछे जाएँ और परीक्षाओं की उपयोगिता बनी रहे। इस बात को ध्यान में रखकर प्रश्न बैंक की योजना बनाई गई परन्तु दूसरी ओर प्रश्न बैंकों का निर्माण विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। इसलिए छात्रों में निर्भरता की भावना बढ़ी। विषय विशेषज्ञ न मिल पाने पर प्रश्नों की रचना त्रुटिपूर्ण होने की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त यह अधिक व्ययशील प्रणाली है।
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