निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए

निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए

(अ) खाद्य जाल              (ब) ऊर्जा प्रवाह
(स) जल प्रदूषण             (द) जल चक्र
उत्तर– (अ) खाद्य जाल-एक तन्त्र में वस्तुत: जो खाद्य श्रृंखलायें होती हैं वे एक दूसरे से अलग या एकल रूप में प्रचलित नहीं होती है वरन् ये परस्पर संबंधित होकर अन्तग्रंथित प्रतिरूप बनाती है, इसे खाद्य जाल कहते हैं।
विभिन्न समुदायों के बीच भोजन का स्थानान्तरण सदैव एक निश्चित क्रम में नहीं होता है। एक ही जीव एक से अधिक पोषी स्तरों से सम्बन्धित होता है तथा जीव अपनी भोजन की आवश्यकता को विभिन्न स्तरों पर मिलने वाले खाद्य स्रोतों से पूरी करता है। इसी प्रकार एक जीव अनेक जन्तुओं का शिकार बनता है।
कई बार भोजन की अनुपलब्धता भी भोजन के प्रकार में परिवर्तन लाती है। इस तरह प्रकृति में रेखिक (linear) तथा स्वतंत्र (independent) खाद्य शृंखलाएँ दुर्लभ (rare) है। पारिस्थितिक तन्त्र में अनेक खाद्य श्रृंखलाएं एक साथ चलती हैं।
इस प्रकार परस्पर संबंधित खाद्य श्रृंखलाएँ एक ही समुदाय के लिए पोषण की विधिक वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराती हैं। ये ऊर्जा प्रवाह का भी वैकल्पिक मार्ग सुलभ करती हैं। उदाहरण के लिए एक जंगली चूहा, बिल्ली, साँप अथवा उल्लू किसी का भी शिकार बन सकता है। एक जंगली बिल्ली, गिलहरी, चिड़िया अथवा चूहे जैसे अनेक • शाकाहारी जन्तुओं का शिकार कर सकती है। विभिन्न प्राथमिक उपभोक्ता अथवा शाकाहारियों में शाकाहार के लिए परस्पर स्पर्धा रहती है।
इनका शिकार करने वाले प्राकृतिक जन्तु इनकी जनसंख्या पर अंकुश लगाते हैं। किसी भी जन्तु के अत्यधिक शिकार से प्रकृति में इनकी संख्या कम हो जाती है जिससे इनके साथ स्पर्धा रखने वाले जन्तुओं की संख्या में वृद्धि होने लगती है। इस कारण दूसरे प्रकार के जन्तुओं की उपलब्धता शिकार के लिए अधिक हो जाती है। इस प्रकार विभिन्न स्पर्धियों के बीच भोजन की होड़ प्रकृति में जन्तुओं का संतुलन बनाए रखती है—
इस प्रकार खाद्य जाल पारिस्थितिक तन्त्र को स्थाई तथा सन्तुलि बनाए रखता है। जिस तंत्र में अधिक जैव विविधता (biodiversity होती है, जितनी अधिक वैकल्पिक खाद्य शृंखलाएँ होती हैं उतनी ही का स्थायी होती है। ये वैकल्पिक पोषण व्यवस्था तन्त्र में विभिन्न प्रजाति की संख्या पर अंकुश तन्त्र को सन्तुलित बनाते हैं।
पारितंत्र में जितनी अधिक जीव विविधता होगी, खाद्य जाल उतन ही जटिल होगा। खाद्य जाल की जटिलता दो गुणों पर निर्भर करती है—
 1. खाद्य श्रृंखला की लम्बाई ।
2. श्रृंखला के विभिन्न पोष स्तरों पर उपभोक्ता विकल्पों को उपस्थिति ।
उदाहरण के लिए गहरे, विशाल सागरों में जीवों की विविधता अधिक होने से इस पारितंत्र का खाद्य जाल भी अधिक जटिल होता है।
(स) जल प्रदूषण-जल एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। यह जीवों की उत्पत्ति का आधार है पृथ्वी पर पहला जीव जल में ही उत्पन्न हुआ था। जल के बिना जीवन संभव नहीं है स्वयं हमारे शरीर में दो-तिहाई जल ही है। जल स्वयं एक पोषण तत्त्व होने के साथ-साथ शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों के संवहन का कार्य भी करता है। यह शरीर से उत्सर्जित पदार्थों को पीसकर मल-मूत्र के रूप में बाहर निकालता है। यह शरीर के विभिन्न भागों के बीच सम्पर्क बनाए रखता है, हड्डियों के जोड़ों को चिकना बनाये रखता है और ऊतकों एवं पेशियों को आपस में चिपकने से रोकता है। शारीरिक क्रियाओं के अतिरिक्त मनुष्य के अनेक क्रियाकलापों के लिए भी जल आवश्यक है, जल पेड़-पौधों के लिए भी अत्यावश्यक है। प्रकृति में उत्पन्न होने
वाले फल-फूल, सब्जी, वनस्पति आदि सभी जल पर आधारित हैं। वृक्षों में 40% पानी होता है और जैलीफिश जैसे जीवों में 70-80% होता है 1
पृथ्वी का दो-तिहाई भाग जल से घिरा हुआ है परन्तु इसमें से मानव के लिए उपयोगी जल की मात्रा बहुत कम है। यूनेस्को की रिपोर्ट अनुसार पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल का 97.2% भाग समुद्रों में पाया जाने वाला लवणीय जल है जिसका उपयोग पीने के लिए नहीं किया जाता। शेष में 2.2% हिमनदियों और हिमशिखरों पर बर्फ के रूप में तथा 0.6% भाग ही भूमिगत जल तथा सतही जल के रूप में उपलब्ध है। जल की आवश्यकता की पूर्ति करने में मुख्यतः भूमिगत जल का उपयोग किया जाता है। जल प्रदूषण से अभिप्राय है जल के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक गुणों में परिवर्तन जिसके कारण जल प्राकृतिक अवस्था में प्रयोग करने योग्य नहीं रहता।
जब जल में घुलनशील या अघुलनशील अशुद्धियाँ मिल जाती हैं तो जल उपयोग करने योग्य नहीं रहता और प्रदूषित हो जाता है। जल प्रदूषण से जल के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में परिवर्तन हो : सकता है। प्रदूषित जल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation, 1960) ने कहा है, “जल प्रदूषण का अर्थ जल में प्राकृतिक या किसी अन्य स्रोत से उन बाह्य तत्त्वों का प्रवेश है जो जल को प्रदूषित करते हैं, जीवन के लिए हानिकारक बनाते हैं, ऑक्सीजन की कमी करते हैं, स्वाद को खराब करते हैं और संक्रामक रोगों को फैलाते हैं । “
जल जल प्रदूषण के स्रोत (Sources of Water Pollution) — एक सार्वभौमिक विलायक है अर्थात् अधिकतर पदार्थ जल में आसानी से घुल जाते हैं। जल के इसी गुण के कारण यह आसानी से प्रदूषित हो जाता है। जल प्रदूषण का एक विशिष्ट स्रोत नहीं होता। बल्कि इसके विभिन्न स्रोत होते हैं और उनका सामूहिक प्रभाव ही जल में प्रदूषण का कारण बनता है। यद्यपि कहीं एक स्रोत या कारण प्रमुख हो जाता है और कहीं एक से अधिक । अधिकांश जल प्रदूषण का कारण मनुष्य द्वारा जल में विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को छोड़ना है। जल प्रदूषण के दो मुख्य स्रोत हैं–
(1) प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)
(2) मानवीय स्रोत (Human Sources)
(1) प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)—प्राकृतिक रूप से भी जल में कुछ मलिनताएँ मिली हो सकती हैं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं–
(1) घुली हुई गैसें (Dissolved Gases)– कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon-di-oxide), हाइड्रोजन सल्फाइड (Hydrogen Sulphide) अमोनिया, नाइट्रोजन आदि ।
(ii) घुलनशील लवण (Dissolved Minerals) कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम के लवण पानी में घुलकर इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
(iii) अघुलनशील मलिनताएँ (Suspended Impurities)मिट्टी, रेत, कीचड़ के बारीक कण पानी में तैरते रहते हैं और इसके स्वाद, गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
(2) मानवीय स्रोत (Human Sources)– जल प्रदूषण के मानवीय स्रोतों में मुख्य रूप से घरेलू बहि:स्राव (Domestic effluents), वाहिक मल (Sewage), औद्योगिक बहि:स्राव (Industrial effluents), कृषि बहि:स्राव (Agricultural effluents), रेडियोधर्मी अपशिष्ट (Radioactive waste), तापीय प्रदूषण (Thermal pollution) एवं तेल अघिप्लाव (Oil spillage) को सम्मिलित किया जाता है।
(द) जल चक्र–जल चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भण्डार से दूसरे भण्डार या एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करने की चक्रीय प्रक्रिया है जिसमें कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं होता बस रूप परिवर्तन और स्थान परिवर्तन होता है। अतः यह प्रकृति में जल संरक्षण के सिद्धान्त की व्याख्या है।
इसके मुख्य चक्र में सर्वाधिक उपयोग में लाए जाने वाला जल रूप पानी (द्रव) है जो वाष्प बनकर वायुमण्डल में जाता है फिर संघनित होकर बादल बनता है और फिर बादल बनकर ठोस (हिमपात) या द्रव रूप में वर्षा के रूप में बरसता है। हिम पिघलकर पुन: द्रव में परिवर्तित हो जाता है। इस तरह जल की कुल मात्रा स्थिर रहती है।
जलीय परिसंचरण द्वारा निर्मित एक चक्र जिसके अन्तर्गत जल महासागर से वायुमंडल में वायुमण्डल से भूमि (भूतल) पर और भूमि से पुन: महासागर में पहुँच जाता है। महासागर से वाष्पीकरण द्वारा जल . वाष्प के रूप में जल वायुमंडल में ऊपर उठता है जहाँ जलवाष्प के संघनन से बादल बनते हैं तथा वर्षण द्वारा जल वर्षा अथवा हिम वर्षा के रूप में जल नीचे भू तल पर आता है और नदियों से होता हुआ पुनः महासागर में पहुँच जाता है। इस प्रकार एक जल चक्र पूरा हो जाता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *