निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए—
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए—
(अ) स्वनिर्माण में मीडिया की भूमिका,
(ब) अक्षमता,
(स) आकांक्षाओं की प्रकृति ।
उत्तर- (अ) स्वनिर्माण में मीडिया की भूमिका–वर्तमान युग संचार का युग है। संचार वह व्यवस्था या प्रक्रिया है, जिससे आदेश, सूचनाएँ, विचार, प्रश्न, स्पष्टीकरण आदि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि संचार मानवीय संसाधनों के बीच होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया है। जब यह क्रियाप्रतिक्रिया व्यवस्थित रूप से होती है, तब इसका एक निश्चित स्वरूप हो जाता है। यह निश्चित स्वरूप औपचारिक संस्थाओं में देखने को मिलता है। जब यह क्रिया-प्रतिक्रिया स्वाभाविक एवं अप्रत्यक्ष रूप से होती है, तब इसका स्वरूप अनौपचारिक साधनों में देखने को मिलता है।
सामान्य रूप से ‘संचार माध्यम’ का अभिप्राय ऐसे अभिकरण से है, जिनके प्रयोग से विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ, स्पष्टीकरण, प्रश्न आदि को दूर-दराज के क्षेत्रों में लगभग प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने का प्रयास किया जाए। इस प्रकार के साधन हैं— रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि ।
आज भी मीडिया की ताकत के सामने बड़े से बड़ा राजनेता, ‘उद्योगपति आदि सभी सिर झुकाते हैं। मीडिया का जन-जागरण में भी बहुत योगदान है। बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का अभियान हो या एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य, मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाई है। लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करना, बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए प्रयास करना, धूम्रपान के खतरों से अवगत कराना जैसे अनेक कार्यों में मीडिया की भूमिका सराहनीय है। मीडिया समय-समय पर नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता रहता है। देश में भ्रष्टचारियों पर कड़ी नजर रखता है। समय-समय पर स्टिंग ऑपरेशन कर भ्रष्टाचारियों का काला चेहरा दुनिया के सामने लाता है। इस प्रकार मीडिया हमारे लिए एक वरदान की तरह है।
स्व को आकार देने में मीडिया की भूमिका– संचार माध्यम सामान्य रूप से सूचना देने व लेने की एक प्रक्रिया अथवा सामग्री है। संचार माध्यम न केवल शिक्षा का माध्यम है अपितु स्व के निर्माण में भी सहायक है। संचार माध्यम का महत्त्व निम्नलिखित हैं-
(1) संचार माध्यम द्वारा हम बालक को स्व विकास हेतु प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
(2) वह बालक के समाजीकरण के लिए आवश्यक है।
(3) नवीन देश-विदेशों के ज्ञान से अवगत कराता है।
(4) संचार माध्यम बालक को एवं स्वच्छ छवि बनाने में सहायक है।
(ब) अक्षमता—अक्षमता या असमर्थता का अभिप्राय बालक के जीवन के किसी विशेष पहलू के विशिष्ट लक्षणों से है जिसके कारण सामान्य से अपसरण की मात्रा उसे सामान्य बालकों से अलग करती है तथा उसे उस पक्ष सम्बन्धी सामान्य बालकों जैसी क्रियाओं की करने बाधित करती है। इस प्रकार के लक्षणों वाले बालकों को विशिष्ट बालक
विशिष्टता से अभिप्राय असाधारण से होता है। विशिष्ट वह है जो अलग है, असामान्य है। अक्षमता का सम्बन्ध विचलन की अपेक्षा अभाव से अधिक होता है यद्यपि सभी विशिष्ट बालक अक्षम नहीं होते जैसे प्रतिभाशाली एवं सृजनात्मक बालक, जबकि सभी अशक्त बालक विशिष्ट अवश्य होते हैं। आशक्त बालकों की बाधिता उनके दैहिक, मानसिक तथा बौद्धिक पक्ष से सम्बन्धित होती है। उनकी संवेगात्मक या सामाजिक मूल्यों की मानने की अक्षमता का कारण कई बार उनकी बाधिता के मानसिक प्रतिधात ही होते हैं।
असमर्थता विभेदन अधिनियम, 1995 के अनुसार, “किसी व्यक्ति में असमर्थता है यदि उसकी दैहिक या मानसिक बाधिता उसकी दिनचर्या की क्रियाओं की योग्यता को महत्त्वपूर्ण ढंग से दीर्घकालीन नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।”
(स) आकांक्षाओं की प्रकृति आकांक्षा की प्रकृति की निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है—
(1) आकांक्षा को मूल्य की पूर्व अवस्था कहा जा सकता है।
(2) कार्यरूप में आने से पूर्व व्यवहार सिद्धान्त रूप में छिपा रहता है।
(3) समाज की स्वीकृति प्राप्त होने पर आकांक्षाएँ मूल्यों का स्वरूप ले लेती है।
(4) ये सर्वमान्य होने पर ही मूल्यों के रूप में स्वीकार की जाती है।
(5) सोरेन्सन के अनुसार-“आकांक्षा व्यक्ति के लक्ष्यों का निर्धारण करने वाली प्रेरणा शक्ति है।”
(6) उच्च आदर्श के रूप में होती है जहाँ तक हम पहुँचना चाहते हैं।
(7) आकांक्षाएँ शैक्षिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक आर्थिक होती हैं।
(8) इन मूल्यों की पूरा किए बिना प्राप्त करना असम्भव इसके अभाव में ये सिद्धान्त रूप में ही रहती हैं।
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