निर्योग्य बालकों के अभिलेख रख-रखाव व संभरण की विवेचना कीजिए ।

निर्योग्य बालकों के अभिलेख रख-रखाव व संभरण की विवेचना कीजिए ।

उत्तर— निर्योग्य बालकों के अभिलेख रख-रखाव व संभरण की आवश्यकता—
(1) देखभाल की निरन्तरता – निःशक्त व्यक्तियों के जीवन इतिहास तथा विकलांगता की स्थिति के अनुसार अल्प अवधि तथा दीर्घ अवधि के देखभाल की आवश्यकता होती है । निःशक्त व्यक्तियों को विविध सेवाओं की भी आवश्यकता होती है। सेवा प्रदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति को यह जानकारी की आवश्यकता होती है कि किनके द्वारा किस प्रकार की सेवायें दी जा रही हैं। अभिभावक तथा व्यावसायिक दोनों रिकॉर्ड का रख-रखाव करते हैं। डॉक्यूमेन्टेशन के दौरान व्यावसायिक एवं अभिभावकों के बीच अच्छा सम्प्रेषण होता है।
( 2 ) जवाबदेही – निःशक्त व्यक्तियों को दी जाने वाली सेवाएँ उपभोक्ता अधिनियम के अन्तर्गत शामिल हैं। किसी निश्चित समय पर सूचना की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है। अभिभावक, डोनर तथा न्यायालय के द्वारा व्यक्ति की सूचनाएँ माँगी जा सकती हैं। डॉक्यूमेन्टेशन अर्थात् रिकॉर्ड के रखरखाव करने पर निश्चित समय पर सवालों के जवाब दिए जा सकते हैं ।
 (3) सेवा में सुधार – व्यक्ति को दी जाने वाली सेवायें तथा उसकी आवश्यकतानुसार सेवाओं की बारम्बारता में सुधार किया जा सकता है। सभी व्यवसायियों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को इकट्ठा करते हुए सेवाओं में सुधार लाया जा सकता है ।
निःशक्त व्यक्तियों से सम्बन्धित सूचना का डाक्यूमेंटेशन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें—
(1) सटीक – अभिभावकों से प्राप्त सूचनाएँ तथा व्यवसायिकों द्वारा दी जाने वाली सेवाएँ सटीक होना चाहिए । इनकी पुष्टि औपचारिक आंकलनों के द्वारा प्रमाणित की जा सकती है।
(2 ) गोपनीयता – निःशक्त व्यक्तियों के सभी दस्तावेज सेवा प्रदाता एवं अभिभावक के अतिरिक्त किसी और से सामान्य परिस्थितियों में साझा करने की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि इससे व्यक्ति की निजता बाधित होती है ।
(3) अर्थपूर्ण – निःशक्त व्यक्तियों को दी जाने वाली सेवायें अर्थपूर्ण होनी चाहिए जिस व्यक्ति के द्वारा जिस स्थिति का आकलन किया जाता है उसे सटीक रूप से व्यक्त करने की आवश्यकता है। रिकॉर्डों का सत्यापन तथा अधिकृत व्यक्तियों का स्थानान्तरण आदि शामिल हैं।
(4) संक्षिप्त – निःशक्त व्यक्तियों से सम्बन्धित प्रासंगिक सूचना को संक्षिप्त होना चाहिए। अर्थात् व्यक्ति को दी जाने वाली सेवायें तथा उनके परिणाम का संक्षिप्त रूप में उल्लेख होना चाहिए। अभिभावकों से जो सूचनाएँ आवश्यक हैं उनको तैयार किया जाना चाहिए। ज्यादा लम्बी सूचना होने पर अभिभावकों को कठिनाई होती है तकनीकी शब्दावली को सरल भाषा में उल्लेख करने की आवश्यकता है।
(5) विश्वसनीयता – सभी आंकलन की रिपोर्ट औपचारिक विधि द्वारा एवं प्रशिक्षित विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जानी चाहिए तथा उसकी विश्वसनीयता की भी जाँच कर लेनी चाहिए।
(6) अद्यतन – कोई भी रिकॉर्ड पुराने होने पर उसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है। इसलिए आवश्यक है समय-समय पर व्यक्ति की क्षमता का आकलन किया जाए। दिन-प्रतिदिन घटित घटनाओं को रिकार्ड करना तथा उसके अनुसार सेवाओं में बदलाव किया जा सकता है। उदाहरण के लिए श्रवण बाधित बच्चों के ऑडियोग्राम को छः माह में कसना जिससे यह पता लगाया जा सके कि सुनने की क्षमता में बदलाव हुआ है अथवा नहीं।
(7) उपकरणों का विवरण – चिकित्सीय एवं पराचिकित्सीय एवं शैक्षणिक विशेषज्ञों द्वारा समस्या के निदान हेतु प्रयुक्त किया गया उपकरण तथा नैदानिक रिपोर्ट ।
(8) इलेक्ट्रॉनिक संरक्षण – वर्तमान के समय में रिकॉर्डों का कम्प्यूटरीकरण किया जाना आवश्यक है, ताकि किसी भी स्थान पर और कम समय में उसको ढूँढा जा सके।
(9) सहमति – निःशक्त व्यक्तियों तथा उनके अभिभावक की सहमति के बिना कोई भी परीक्षण उपचार, प्रकाशन नहीं किया जा सकता है।
(10) समयावधि – न्यूनतम 3 वर्ष के रिकॉर्ड को सेवा प्रदाता रखेंगे जिससे आवश्यकता पड़ने पर अभिभावक तथा अन्य व्यक्तियों को विशेष परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है।
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