पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता व महत्त्व की विवेचना कीजिए।
पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता व महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर— पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता-मनुष्य के चारों और का पर्यावरण तथा पर्यावरण के भी घटक आपत्तिजनक स्थिति तक प्रदूषित हो चुके हैं। हवा, जल तथा मृदा प्रदूषित हैं। वनों की मात्रा बहुत कम हो गयी है, वन्य जीवों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गयी है। ओजोन परत पर दबाव बढ़ गया है। अम्लीय वर्षा की प्रायः दुर्घटनाएँ होती रहती है, हरित प्रभावों के प्रति सभी चिन्तित हैं। जनसंख्या वृद्धि एवं औद्योगीकरण के कारण आज मनुष्य के सामने प्राणवायु की कमी की जटिल समस्या है। इन समस्याओं का समाधान अकेले न तो कोई सरकार कर सकती है तथा न ही कोई गैर-सरकारी स्वयंसेवी संस्था अथवा संगठन कर सकता है। इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्येक नागरिक को आगे आना होगा। इसलिये वर्तमान समय में पर्यावरण शिक्षा की परम आवश्यकता है जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) आज पर्यावरण से सम्बन्धित जीवन-मूल्यों को सकारात्मक रूप में परिवर्तित करना जरूरी है। यह कार्य सम्पन्न करने के लिये पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता है।
(2) पर्यावरण शिक्षा द्वारा जनसाधारण में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संस्था के प्रति सजगता विकसित होगी।
(3) प्रकृति पर्यावरण तथा उसके विभिन्न घटकों के प्रति वैज्ञानिक एवं सही दृष्टिकोण विकसित करने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा जरूरी है।
(4) पर्यावरण प्रदूषण के कारणों, परिणामों तथा उसकी रोकथाम व नियंत्रण के उपायों का ज्ञान करने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा जरूरी है।
(5) पर्यावरण के प्रदूषित होने से क्या हानियाँ हैं, इनसे कैसे बचा जाए, यह ज्ञान हमें पर्यावरणीय शिक्षा ही दे सकती है।
(6) जीवन को सुखमय, व्यवहारपरक तथा प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए व्यतीत करने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा जरूरी है।
(7) आज हमें वृक्ष-पूजन, जल-पूजन, यज्ञ आदि का वास्तविक अर्थ समझना है। इसकी सही विधियाँ सीखनी है। धरती को हम माता का स्वरूप क्यों कहते हैं, इन सबके अर्थ को समझने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा जरूरी है।
पर्यावरण शिक्षा का महत्व — जनसंख्या में हो रही तीव्र बुद्धि, तीव्रता के साथ ही रहा औद्योगिक विकास, वन कटाव, यातायात वाहनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि तथा जनसाधारण की अज्ञानता तथा अशिक्षा के कारण आज पर्यावरण-शिक्षा का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण शिक्षा के बढ़ते हुए महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है.
(1) जन साधारण में बढ़ती हुई निरक्षरता और अज्ञानता के कारण पर्यावरण सुरक्षा तथा संरक्षण के उपायों का भरपूर प्रयोग नहीं हो पा रहा है। अज्ञान तथा अशिक्षा से ग्रसित मनुष्य पर्यावरण की सुरक्षा नहीं कर सकता है।
(ii) बढ़ते शहरीकरण तथा नगरों के व्यक्तियों को प्रकृति से दूर कर दिया है। प्रकृति के जैविक एवं अनैविक तत्वों को समान प्रकृति के निकट जाने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।
(iii) बढ़ते यातायात के साधनों से प्रदूषण का खतरा पर्याप्त मात्रा में बढ़ गया है। वाहन-प्रदूषण को रोकने के लिए पर्यावरण शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
(iv) पर्यावरण सुरक्षा के लिए जनसंख्या नियंत्रण भी आवश्यक है। जनसंख्या नियंत्रण को कैसे रोका जाए, यह पर्यावरण के क्षेत्र में आता है।
(v) वर्तमान में प्रत्येक देश में तीव्र गति से औद्योगीकरण हो रहा है। इससे पर्यावरण प्रदूषण की संभावनाएँ भी बढ़ी हैं। इनसे उत्पन्न प्रदूषण को रोकने व उसे नियंत्रित करने के लिए पर्यावरण शिक्षा जरूरी है।
(vi) पर्यावरण – शिक्षा हमारी संस्कृति की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अपना सकती है। अहिंसा, जीव-दया, प्रकृतिपूजन आदि हमारी संस्कृति के मूलाधार हैं। पर्यावरण शिक्षा में इन तथ्यों की यथेष्ट मात्रा में शिक्षा दी जाती है।
(vii) बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण के प्रति जनसाधारण के क्या कर्तव्य व दायित्व है इसका हमें पर्यावरण-शिक्षा ही ज्ञान करा सकती है।
(viii) पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने, उसके प्रति सकारात्मक अभिवृत्तियों तथा भावनाओं का विकास करने में पर्यावरण शिक्षा की महती भूमिका है।
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