पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर— पर्यावरणीय शिक्षा के क्षेत्र (Scope of Environmental Education)– पर्यावरणीय अपने आप में विस्तृत एवं व्यापक विषय है जिसके अन्तर्गत जैविक एवं अजैविक घटकों के साथ-साथ अन्य सभी ऐसे घटकों का अध्ययन किया जाता है जिनसे मानवीय जीवन प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है । यह स्वाभाविक सी बात है कि जब पर्यावरण का क्षेत्र व्यापक है तो पर्यावरण शिक्षा का क्षेत्र भी सीमित न होकर व्यापक और विस्तृत ही होगा। इसलिए पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण से सम्बन्धित सभी घटकों को अपने आप में समाहित कर लेती है। पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्न चर्चित शीर्षकों का अध्ययन ! किया गया है—
(1) भोजन और पोषण (Food and Nutrition) —खाद्यान्नों का उत्पादन अपने मूल रूप से संसाधनों से ही होता है। इसलिए खाद्य वस्तुओं का उत्पादन, आपूर्ति और उपयोग भी पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र के अन्तर्गत आ जाता है। प्रत्येक जैविक घटक की खाद्यान्न आपूर्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण द्वारा ही सम्भव होती है। यही कारण है कि वैकल्पिक खाद्यान्न, खाद्यान्न संरक्षण, भोजन के पोषण मूल्य, सन्तुलित आहार, कुपोषण के कारण आदि जीवन को प्रभावित करने वाले समस्त अंगों को पर्यावरण शिक्षा में उचित स्थान दिया जाता है। मनुष्य जीवन की दीर्घता और निरन्तरता भोजन और उसकी पौष्टिकता पर ही निर्भर करती है।
(2) प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources ) – संसाधन दो प्रकार के होते है। मानवीय संसाधन और भौतिक संसाधन । भौतिक संसाधन किसी वस्तु की वह क्रियात्मक या व्यावहारिक क्षमता है जो मानव की सन्तुष्टि करके लाभान्वित करती है। हम सरल शब्दों में कह सकते हैं कि प्रकृति के द्वारा दिए गए उपहारों को ही संसाधनों की संज्ञा दी जाती है, जिन्हें हम प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। पर्यावरण शिक्षा में पाठ्य-वस्तु के रूप में संसाधनों के उपयुक्त प्रयोग करने और इनके संरक्षण की चर्चा की जाती है।
(3) जनसंख्या शिक्षा (Population Education) — जनसंख्या और पर्यावरण का पारस्परिक रूप से घनिठ सम्बन्ध है और ये दोनों प्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इनका सम्बन्ध हम अपने जीवन में प्रतिदिन देखते हैं। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्यावरण पर निर्भर करता है लेकिन मनुष्य लोभ की प्रवृत्ति के कारण पर्यावरण के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करने लगा है, जिसके कारण पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा है और वह प्रदूषित हो रहा है।
(4) शारीरिक स्वास्थ्य (Health Hygiene) – पर्यावरण शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यक्ति, परिवार, समुदाय, समाज के शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य को खराब करने वाली हानिप्रद कारणों के साथसाथ संक्रामक और असंक्रामक रोगों के घातक परिणामों और उनसे बचने के उपचार से सम्बन्धित उपायों एवं सुझावों को भी समाहित किया जाता है।
(5) प्रदूषण (Pollution) – प्राकृतिक पर्यावरण वायु, जल, मिट्टी, वनस्पति, पशु-पक्षी एवं समस्त प्राणी जगत के मेल से बनता है। ये सभी घटक प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। जब मनुष्य अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों के शोषण में लग जाता है तो प्रकृति के विकास की गति और सन्तुलन में सामंजस्य नहीं रखा जा सकता है तो उस समय प्राकृतिक जीवन शक्ति में एक प्रकार से जहर घुलना शुरू हो जाता है, जिसे हम प्रदूषण के नाम से जानते हैं ।
(6) जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) – आज भारत में तीव्र गति से केवल जनसंख्या बढ़ ही नहीं रही बल्कि जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। आज स्वास्थ्य की सुविधाएँ होने के कारण मृत्यु दर में कमी हुई है लेकिन नागरिकों की अनपढ़ता और अज्ञानता के कारण जन्म दर में कमी न होकर उच्च बनी हुई है। दूसरी तरफ जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है जो कि अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है । इन समस्याओं के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है। इससे पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। इसलिए पर्यावरण शिक्षा की विषयवस्तु में जनसंख्या विस्फोट, उसके कारण, उपचार और सुझावों को सम्मिलित करना आज के युग में बड़ी आवश्यकता है।
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