पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में अपने सुधारात्मक सुझाव दीजिए |

पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में अपने सुधारात्मक सुझाव दीजिए |

उत्तर–पाठ्यक्रम निर्माण हेतु सुझाव (Suggestions for Construction of Curriculum)—पाठ्यक्रम के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने तथा नवीन पाठ्यक्रम के समुचित निर्माण/विकास हेतु कुछ उपयोगी सुझाव निम्न प्रकार हैं—
(i) पाठ्यक्रम के लिए पूर्व नियोजन होना चाहिए। इसके अन्तर्गत पाठ्यक्रम संदर्शिकाओं का प्रकाशन, शिक्षकों को नवीन शैक्षिक सामग्री एवं परामर्श सेवायें उपलब्ध कराना, सेवारत प्रशिक्षण की व्यवस्था आदि सम्मिलित किये जाने चाहिए।
 (ii) पाठ्यक्रम को औपचारिक ढंग से प्रस्तुत करने से पूर्व अनौपचारिक चर्चाओं एवं वार्ताओं के द्वारा इसकी स्वीकार्यता के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए।
(iii) पाठ्यक्रम किसी लघु क्षेत्र एवं लघु रूप में क्रियान्वित करके यदि उसकी सफलता को लोगों को दिखला दी जाये तो उसे स्वीकार करने को वे उद्यत हो जाते हैं। पाठ्यक्रम परिवर्तन को भी इसीलिए प्रारम्भ में किसी विशेष लघु क्षेत्र में लागू करके उसकी सफलता का पता लगाया जा सकता है।
(iv) किसी भी अच्छे परिवर्तन को साहस करके प्रारम्भ कर देना चाहिए। प्रारम्भ होने पर तो इसका विरोध होता है किन्तु अच्छे परिणाम आने पर धीरे-धीरे कार्यक्रम के प्रति विरोध एवं उदासीनता समाप्त हो जाती है।
(v) सफलता को जानने के लिए निरन्तर रूप में सर्वेक्षण, मूल्यांकन तथा अनुसंधान कार्य भी चलते रहने चाहिए। डडे
(vi) किसी भी नवाचार को प्रारम्भ करने वालों के व्यक्तित्व का उनकी स्वीकार्यता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अतः पाठ्यक्रम के क्षेत्र में भी यदि कोई या कुछ प्रभावशाली व्यक्ति उसे नेतृत्व प्रदान करते हैं तो उनके क्रियान्वयन एवं सफलता की सम्भावना अधिक हो जाती है।
(vii) शिक्षक संगठनों द्वारा भी पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है। वे अपने सम्मेलनों, प्रकाशनों एवं अन्य क्रियाकलापों के द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए शिक्षक संगठनों को सशक्त बनाकर पाठ्यक्रम विकास के प्रति उनमें रुचि उत्पन्न की जा सकती है।
(viii) एक फ्रांसीसी दार्शनिक के अनुसार शासकों एवं शिक्षकों में मतैक्य होना किसी भी देश के लिए सबसे अधिक सुखद स्थिति होती है। इसका तात्पर्य यह है कि शिक्षाविदों एवं उच्च शिखस्थ प्रशासकों में निकट का सम्पर्क होना चाहिए जिससे शिक्षाविदों द्वारा प्रस्तावित शैक्षिक परिवर्तनों को देश की शिक्षा नीति में समाविष्ट किया जा सके।
(ix) पाठ्यक्रम में क्रमिक चरणों में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
(x) पाठ्यक्रम के उद्देश्य देश एवं समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप होने चाहिए। किन्तु प्राय: यह देखने में आता है कि विकासशील देश सम्पन्न राष्ट्रों में विकसित किये गये पाठ्यक्रमों को बिना किसी अनुशीलन के अपना लेते हैं। चूँकि विभिन्न देशों के छात्रों की पृष्ठभूमि, पर्यावरण, ज्ञान एवं आकांक्षायें भिन्न होती हैं, अतः किसी दूसरे देश में विकसित पाठ्यक्रम अन्य देशों के लिए पूर्णरूपेण उपयुक्त नहीं हो सकता है।
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