पाठ्यचर्या के विषय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषताएँ विस्तार से समझाइये ।
पाठ्यचर्या के विषय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषताएँ विस्तार से समझाइये ।
प्रमुख
उत्तर – पाठ्यचर्या के विषय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
( 1 ) माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या– माध्यमिक स्तर पर छात्रों को विज्ञान, मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान की विभिन्नीकृत भूमिकाओं का ज्ञान होने लगता है। यही स्तर बालकों में इतिहास तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण की भावना विकसित करने एवं नागरिक के रूप में संवैधानिक कर्त्तव्यों तथा अधिकारों को समझने के लिए भी उपयुक्त होता है। अतः उपयुक्त पाठ्यचर्या के द्वारा स्वस्थ कार्य-संस्कृति एवं मानवीय तथा सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आन्तरिक चेतना विकसित करने का प्रयास किया जाएगा। अनुसार
( 2 ) समान सामान्य पाठ्यचर्या – राष्ट्रीय शिक्षा नीति के राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा पर आधारित होगी, जिसका एक बड़ा भाग समान सामान्य विषय सामग्री से युक्त होगा एवं शेष छोटे भाग में आवश्यकतानुसार लचीलापन होगा। इसलिए समान सामान्य पाठ्यचर्या के अन्तर्गत भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, भारतीय संविधान की विशेषताएँ, प्रकृति के आवश्यक तत्त्व एवं राष्ट्रीय अस्मिता से सम्बन्धित विषय-सामग्री को शामिल किया जाएगा। ये सभी तत्त्व विभिन्न मूल्यों जैसे—धर्म निरपेक्षता, लिंगभेद की समाप्ति आदि के विकास में सहायक सिद्ध होंगे।
(3) अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के लिए शिक्षा- भारत में सदैव वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धान्त का अनुसरण किया गया है तथा सदैव शान्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास के लिए प्रयास किया जाता हैं। अतः शिक्षा सहयोग तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के दृष्टिकोण का ‘विकास किया जाना चाहिए.
( 4 ) मूल्य शिक्षा – शिक्षा वर्तमान समय में देश एवं समाज में व्याप्त सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों के संकट को खत्म करने में एक महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हो सकती है। इसके साथ ही साथ देश के विभिन्न संस्कृति वाले समाज में एकता तथा एकीकरण की स्थापना के लिए शिक्षा सार्वभौमिक तथा आन्तरिक मूल्यों के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है।
(5) शिक्षा तथा पर्यावरण—इस शिक्षा नीति के अनुसार पर्यावरण के विषय में चेतना विकसित करने की वर्तमान समय में नितान्त आवश्यकता है। समाज के समस्त वर्गों तथा समस्त आयु वर्ग के लोगों में इस चेतना का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए स्कूल तथा कॉलेजों की शिक्षा के द्वारा पर्यावरणीय चेतना को बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
(6) खेल तथा शारीरिक शिक्षा अधिगम प्रक्रिया के आवश्यक अंग-खेल एवं शारीरिक शिक्षा है। अतः इन्हें उपलब्धि मूल्यांकन में भी सम्मिलित किया जाएगा। शैक्षिक व्यवस्था के अन्तर्गत खेल एवं शारीरिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रारूप तैयार किया जाएगा।
(7) पूर्व प्राथमिक स्तर पर पाठ्यचर्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बालकों के सर्वांगीण विकास अर्थात् पोषण, स्वास्थ्य तथा सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, नैतिक एवं संवेगात्मक विकास के सम्प्रत्यय को स्वीकार करते हुए कहा गया है कि प्रारम्भिक बाल सुरक्षा एवं शिक्षा कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता प्रदान की जाएगी एवं इसे समुचित ढंग से समन्वित किया जाएगा। बाल सुरक्षा तथा पूर्व प्राथमिक शिक्षा में दो प्रकार से पूर्ण समन्वय स्थापित किया जाएगा। प्रथम, प्राथमिक शिक्षा के पोषण तथा सुदृढ़ीकरण कारक के रूप में तथा दूसरा मानव संसाधन विकास के रूप में। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को भी इसी स्तर से सुदृढ़ किया जाएगा।
(8) संचार माध्यम तथा शैक्षिक तकनीकी – आधुनिक संचार तकनीकी ने विकास प्रक्रिया की गति को अत्यधिक प्रभावित किया है । इसके कारण समय तथा दूरी का अवरोध एक साथ मानव के नियन्त्रण में आ गया है। संचार माध्यमों का बालकों के मस्तिष्क पर अत्यधिक प्रभाव पड़ रहा है। जहाँ एक ओर इन माध्यमों का रचनात्मक प्रभाव पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर इसने उपभोक्तावादी संस्कृति तथा हिंसात्मक प्रवृत्ति जैसी क्रियाओं को भी जन्म दिया है। अतः राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार ऐसे रेडियो तथा दूरदर्शन कार्यक्रमों को प्रतिबन्धित किया जाएगा जो शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति में बाधक सिद्ध हो रहे हैं। बालकों हेतु उत्तम स्तर तथा उपयोगी फिल्मों के निर्माण हेतु सक्रिय आन्दोलन प्रारम्भ किया जाएगा।
(9) विज्ञान शिक्षा-राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत विज्ञान शिक्षा को इस प्रकार सृदढ़ किया जाएगा जिससे बालकों में समुचित योग्यताओं तथा अन्वेषणात्मक, सृजनात्मक, वस्तुनिष्ठ, विश्लेषणात्मक तथा सौन्दर्यबोध सम्बन्धी मूल्यों को विकसित किया जा सके। अतः विज्ञान शिक्षा को इस प्रकार निरूपित किया जाएगा जिससे शिक्षार्थी के भीतर समस्या समाधान तथा निर्णय लेने के कौशलों का विकास हो सके एवं वह विज्ञान का स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग तथा दैनिक जीवन के अन्य पक्षों से सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता प्राप्त कर सके।
( 10 ) सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार वर्तमान समय में औपचारिक शिक्षा तथा भारत की समृद्ध तथा विविध संस्कृति के मध्य बढ़ती जा रही दूरी को जल्दी खत्म करने की नितान्त आवश्यकता है। नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास तथा संस्कृति की जड़ से दूर करने के लिए आधुनिक तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिए बल्कि उनमें समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए। परिवर्तनोन्मुखी तकनीकी तथा देश की सांस्कृतिक विरासत के मध्य सामंजस्य की स्थापना शिक्षा के द्वारा की जा सकती है। अतः शिक्षा प्रक्रिया तथा पाठ्यचर्या सांस्कृतिक विरासत सम्बन्धी अन्तर्वस्तु से समृद्ध की जाएगी।
( 11 ) कार्य अनुभव—अधिगम प्रक्रिया का एक आवश्यक अंग कार्य अनुभव है, जिसका उद्देश्य समुदाय के लिए उपयोगी वस्तुओं एवं सेवाओं को प्रदान करना है। इसीलिए शिक्षा के सभी स्तरों पर सुव्यवस्थित तथा क्रमबद्ध कार्यक्रम के रूप में इसे स्थान दिया जाना चाहिए। इसमें बालकों की रुचियों, योग्यताओं तथा आवश्यकताओं के अनुरूप उपयुक्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए। शिक्षा के स्तर के साथसाथ ज्ञान एवं कौशल के स्तर को बढ़ाया जाना चाहिए। निम्न माध्यमिक स्तर पर प्रदान किए गए पूर्व व्यावसायिक कार्यक्रम छात्रों को माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यचर्या के चुनाव में सहायता प्रदान करेगी।
(12) न्यूनतम अधिगम स्तर— इस नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर न्यूनतम अधिगम स्तर को सुनिश्चित किया जाएगा। छात्रों को देश के विभिन्न भागों के नागरिकों की सामाजिक व्यवस्था तथा सांस्कृतिक विविधता को उचित तरीके से समझाने के लिए उपयुक्त प्रयास किए जाऐंगे।
( 13 ) प्राथमिक स्तर पर पाठ्यचर्या—बाल केन्द्रित उपागमप्राथमिक स्तर पर अधिगम की बाल केन्द्रित तथा कार्य आधारित प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए। प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थियों को अपनी गति से आगे बढ़ने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए एवं इसके लिए पूरक उपचारात्मक शिक्षण की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
(14) गणित शिक्षण—छात्रों को सोचने, तर्क करने विश्लेषित करने एवं तार्किक ढंग से चिन्तन करने के विषय में प्रशिक्षित करने हेतु गणित विषय को एक साधन के रूप में देखना चाहिए। एक विषय के साथ-साथ इसे विश्लेषणात्मक तथा तर्क सम्बन्धी अन्य विषयों का एक सहयोगी या पूरक समझा जाना चाहिए।
( 15 ) भाषा अध्ययन—इस नीति के अनुसार, 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषाओं के विकास के प्रश्न पर विस्तार से विचार किया गया है। उसके प्रस्तावों में कोई संशोधन सम्भव नहीं दिखाई देता है, इसका कारण उन प्रस्तावों की सार्थकता है जो आज भी वैसी ही है जैसी उस समय थी। इसलिए भाषा-अध्ययन के सम्बन्ध में 1968 की शिक्षा नीति को ही उद्देश्यपूर्ण ढंग से क्रियान्वित किया जाएगा।
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