पारिस्थितिकी तंत्र को परिभाषित कीजिए। विश्व के प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों का वर्णन कीजिए।
पारिस्थितिकी तंत्र को परिभाषित कीजिए। विश्व के प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
घास स्थल पारिस्थितिकी तंत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर— पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) — लघूत्तरात्मक प्रश्न संख्या 10 का उत्तर देखें।
विश्व के बड़े पारिस्थितिकी तंत्र (Major Ecosystem of the World) — विश्व का सम्पूर्ण भू-भाग कई प्रकार के पारितन्त्रों से निर्मित होता है। ये पारितंत्र, पारिस्थितिकी के विभिन्न कारकों द्वारा निरन्तर प्रभावित होते रहते हैं, साथ ही पारिस्थितिकी का निर्माण करता है। विश्व के प्रमुख पारिस्थितिकी / पारितन्त्र को हम निम्नलिखित प्रकार से वर्णित कर सकते हैं—
(I) घास का मैदान या चारागाह पारिस्थितिकी तंत्र (Grassland Ecosystem) — पृथ्वी पर लगभग 19 प्रतिशत क्षेत्र पर घास के मैदान है। इसमें उष्ण (tropical) कटिबन्धीय और शीतोष्ण कटिबन्धीय (temperate) घास के मैदान सम्मिलित हैं। घास स्थल महाद्वीपों के भीतरी क्षेत्रों; जैसे—ऑस्ट्रेलिया, अर्जेण्टाइना, यू.एस.ए. एवं साइबेरिया इत्यादि में स्थित होते हैं । यहाँ पर 25 से 75 सेमी. तक औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस क्षेत्र में लम्बी-लम्बी घासें होती हैं। लेकिन दूर-दूर तक वृक्षों का अभाव होता है। ‘सवाना’ (Savannah) घास पारितन्त्र महत्त्वपूर्ण तथा प्रसिद्ध घास स्थल है।
घास स्थलों के मृदा में ह्यूमस (Humus) अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसके कारण यह अत्यधिक उपजाऊ होती है। यह क्षेत्र फसलों के लिए उपयोगी होता है।
घास स्थल में निम्न प्रकार के घटक पाए जाते हैं—
(1) अजैविक घटक (Abiotic Components) – इसके अन्तर्गत जल, सूर्य का प्रकाश, वायु व मिट्टी में उपस्थित कार्बन-डाईऑक्साइड, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, नाइट्रेट्स, सल्फेट तथा मैंगनीज, मॉलिब्डेनम, जिंक इत्यादि हैं। इनकी सहायता से हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का सम्पादन कर अपनी वृद्धि व विकास करते हैं। विभिन्न प्रकार के जलवायुवीय कारक जैसे—वर्षा एवं आर्द्रता भी घास के मैदान के अजैविक घटक में सम्मिलित हैं।
(2) जैविक घटक (Biotic निम्नलिखित घटक आते हैंComponents)—इसके अन्तर्गत निम्नलिखित घटक आते हैं—
(i) उत्पादक (Producer) — घास के मैदान में विभिन्न प्रकार की घासें, शाकीय पौधे एवं झाड़ियाँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। अतः ये ही उत्पादक कहलाते हैं।
(ii) उपभोक्ता (Consumer)—इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं की श्रेणियाँ होती हैं जो कि निम्नलिखित हैं—
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers)– प्राथमिक उपभोक्ता के रूप में मुख्यतः घास चरने वाले जन्तु; जैसे—हिरण, खरगोश, भेड़, गाय, भैंस तथा अन्य शाकाहारी जन्तु; जैसे—चूहे आते हैं।
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) – विभिन्न प्रकार के मांसाहारी जीव (carnivore) जो प्राथमिक उपभोक्ता का भक्षण करते हैं, द्वितीयक उपभोक्ता कहलाते हैं; जैसे—मेढ़क, छिपकली, सांप, गिरगिट, लोमड़ी, सियार एवं पक्षी इत्यादि ।
(स) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers)—वैसे मांसाहारी जीव जो द्वितीयक उपभोक्ताओं का शिकार कर उसे अपना आहार बनाते हैं, तृतीयक उपभोक्ता कहलाते हैं। उदाहरण — बाज एवं मोर ।
(3) अपघटक (Decomposer) – विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवी कवक, जीवाणु एवं एक्टिनोमाइसिटीज आदि अपघटनकर्त्ता के रूप में मिट्टी में उपस्थित रहते हैं जो उत्पादक, प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक उपभोक्ताओं के मृत शरीर व उत्सर्जित मलमूत्र आदि के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में विघटित कर इन्हें पुनः अजैविक घटकों में बदल देते हैं, जिसका उपयोग पुनः जैविक घटकों द्वारा किया जाता है।
(II) स्वच्छ जल पारिस्थितिकी तंत्र (Fresh Water Ecosystem)—तालाब एवं झील दोनों एक स्थिर एवं स्वच्छ जलीय पारितंत्र हैं, परन्तु दोनों में एक मूलभूत अन्तर यह है कि झील काफी विस्तृत एवं ज्यादा गहरी होती है, जबकि तालाब आकार में छोटा तथा कम गहराई वाला होता है। अतः झीलों में उपलब्ध प्रकाश तथा गहराई के आधार पर इसे भी तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है—
(1) वेलांचल प्रदेश (Littoral Zone) — यह उथले जल वाला भाग है, जिसमें प्रकाश पूरी गहराई तक प्रवेश करता है। इसमें जड़ वाले पौधे; जैसे— कमल, हाइड्रिला तथा पिस्टिया इत्यादि अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
(2) सरोवरी जीव प्रदेश (Limnetic Zone) — यह खुले पानी का वह भाग होता है, जिसमें प्रकाश पहुँचता है। इस भाग में मुख्य रूप से सूक्ष्म तैरने वाले पौधे या फाइटोप्लेंकटॉन जैसे शैवाल, स्पाइरोगाइरा तथा जन्तु प्लवक जैसे यूग्लीना इत्यादि पाए जाते हैं।
(3) अगाध प्रदेश (Profundal Zone) — यह वह भाग है जहाँ पर प्रकाश नहीं पहुँच पाता है। यहाँ पर विषमपोषी जीव (Heterotrophic organism) पाए जाते हैं ।
छोटे या उथले तालाब में या तो केवल वेलांचल प्रदेश या वेलांचल तथा सरोवरी जीव प्रदेश पाया जाता है। परन्तु झीलों में हमेशा तीनों प्रदेश स्पष्ट रूप से पाए जाते हैं।
तालाब तीन प्रकार के हो सकते हैं—
(i) बड़ी झीलों या नदियों के पानी से बनने वाले तालाब ।
(ii) छोटे तालाब जो कि बरसाती जल से बने हो सकते हैं, इनमें सालभर पानी नहीं रहता है।
(iii) स्थायी—ऐसा तालाब जिसमें पूरे वर्ष पानी भरा रहता है। तालाब के पारितन्त्र में निम्न प्रकार के घटक पाए जाते हैं
(1) अजैविक घटक (Abiotic Component)—तालाब में अजैविक घटक, जैसे— जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइ-आक्साइड, नाइट्रोजन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, अमीनो अम्ल, मॉलिब्डेनम ब्रोमीन एवं आयोडीन इत्यादि उपस्थित रहते हैं। इन पोषक तत्वों की अल्प मात्रा घोल के रूपों में होती है जो जीवों को तुरन्त उपलब्ध हो जाती है। तालाब या झील, जैसे जलाशय, जल और ठोस पदार्थों का एक ऐसा तन्त्र है, जिसमें समस्त पोषक पदार्थ ठोस अवस्था में पाए जाते हैं ।
(2) जैविक घटक (Biotic Component) – तालाब में निम्न श्रेणी के जैविक घटक शामिल रहते हैं—
(i) उत्पादक (Producer) — उत्पादक दो प्रकार के होते हैं— (अ) मैक्रोफाइट्स (Macrophytes) — इसमें जड़ द्वारा भूमि में जुड़े, पानी में डूबे, पानी की सतह पर तैरने वाले, आधा भाग पानी में एवं आधा भाग पानी के ऊपर रहने वाले सभी प्रकार के जड़युक्त पौधे आते हैं। इस श्रेणी में मुख्यत: निम्न पौधे होते हैं— हाइड्रिला, सेजिटेरिया, यूट्रिकलेरिया, एजोला, ट्रापा एवं निम्फिया आदि ।
(ब) पादप प्लवक (Phytoplakton)—इसके अन्तर्गत तैरने (floating) वाले अथवा जलमग्न (submerged) सूक्ष्म पादप (minute plant) आते हैं; जैसे— सूत्रवत् शैवाल, स्पाइरोगायरा, जिग्निया, क्लेमाडोमोनास, क्लोरेला, वॉलवॉक्स इत्यादि ।
(ii) उपभोक्ता (Consumer) — इसमें विषमपोषी जीव आते हैं जो अपने-अपने पोषण के लिए उत्पादकों द्वारा निर्मित कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं। तालाब के पारितंत्र में निम्नलिखित तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जाते हैं—
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumer)– इसके अन्तर्गत समस्त शाकाहारी जीव आते हैं जो कि अपने पोषण के लिए उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं—
(a) नितलस्थ या बेन्थोज (Benthos) — जल की सतह के नीचे उपस्थित जीवधारी नितलस्थ कहलाते हैं। जैसे— छोटे-छोटे कीट, क्रस्टेशियन (Crusaceans) एवं छोटी-छोटी मछलियाँ अथवा तालाब की तली (bottom) में उपस्थित मृत पादप अवशेषों पर जीवन का निर्वाह करते हैं तथा डेट्रीवोर्स कहलाते हैं ।
(b) जन्तु प्लवक (Zoo Plankton) — ये तैरने वाले अथवा जल में बहने वाले (difting) जन्तुओं के समूह हैं। इसके अन्तर्गत यूग्लीना, ब्रेकिओनम एवं डायलेप्टस आदि आते हैं।
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumer) — इसके अन्तर्गत तालाब में उपस्थित मांसाहारी जीव आते हैं जो कि अपने पोषण के लिए प्राथमिक उपभोक्ताओं (शाकाहारी) जीवों पर निर्भर रहते हैं; जैसे— जलीय कीट एवं मछलियाँ अधिकांशतः जलीय कीट बीट होते हैं जो कि जन्तु प्लवक पर अपने भोजन के लिए आश्रित होते हैं।
(स) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers) – इसके अन्तर्गत बड़ी मछलियाँ, जैसे—गेम मछली (Game fish) आती हैं जो छोटी मछलियों का भक्षण करती हैं। इस प्रकार तालाब के पारितंत्र में बड़ी मछलियाँ ही तृतीय उपभोक्ता होती हैं।
(3) अपघटक (Decomposer) — इन्हें सूक्ष्म उपभोक्ता भी कहते हैं, क्योंकि इनके अन्तर्गत ऐसे सूक्ष्म जीव आते हैं जो कि मृत जीवों के कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करके उसमें अपना पोषण प्राप्त करते हैं। इसके अन्तर्गत जीवाणु, कवक, जैसे- राइजोपस, पाइथियम इत्यादि आते हैं।
(III) वन पारिस्थितिकी तंत्र (Forest Ecosystem)– पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्रों में वनों का विस्तार है। एक ओर सदाबहार उष्ण कटिबन्धीय वन हैं तो दूसरी ओर शीतोष्ण के पतझड़ वाले तथा शीतोष्ण के सीमावर्ती प्रदेशों के कोणधारी वन हैं। वन/प्राकृतिक वनस्पति पर्यावरण के विभिन्न तत्त्वों; जैसे—तापमान, वर्षा, आर्द्रता, मृदा इत्यादि को नियंत्रित करते हैं।
वन पारितंत्र में पाए जाने वाले घटक निम्नलिखित हैं—
(1) अजैविक घटक (Abiotic Components) – इसके अन्तर्गत कार्बनिक पदार्थ मृदा, अजैव, खनिज लवण एवं वायुमण्डल के विभिन्न तत्त्व; जैसे–तापमान, आर्द्रता इत्यादि आते हैं। वनों में कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं ।
(2) जैविक घटक (Biotic Comoponents)–वन
पारितंत्र में पाए जाने वाले प्रमुख जैविक घटक निम्नलिखित हैं—
(i) उत्पादक (Producer) — वनों में वृक्ष मुख्य रूप से उत्पादक का कार्य करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वनों (tropical deciduous forest) में सामान्यतः सागौन, साल, पलाश इत्यादि के वृक्ष पाए जाते हैं जबकि शीतोष्ण कॉनिफेरस वनों में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख वृक्ष हैं-एबीज, पाइनस, सिडरस एवं जूनीपेरस इत्यादि । शीतोष्ण पर्णपाती वनों में क्वेरकस, ऐसर इत्यादि प्रमुख हैं।
(ii) उपभोक्ता (Consumer) — इसकी विभिन्न श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं—
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumer) — इसके अन्तर्गत वनों में उपस्थित समस्त शाकाहारी जन्तु आते हैं जो कि हरे पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। चीटियाँ, मकड़ियाँ, बीटल्स, लीफहॉपर, बग्स आदि पत्तियों का उपयोग करने वाले छोटे जन्तु होते हैं, जबकि बड़े जानवर इन हरे पौधों को चरने के साथ-साथ उनके फलों का भक्षण करते हैं; जैसे—हाथी, हिरण, गिलहरियाँ, बन्दर एवं अन्य शाकाहारी पक्षी इत्यादि ।
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumer)– इसके अन्तर्गत ऐसे मांसाहारी जन्तुओं को सम्मिलित किया जाता है जो अपने भोजन के लिए प्राथमिक उपभोक्ताओं पर आश्रित रहते हैं तथा उनका शिकार करके अपना भोजन प्राप्त करते हैं; जैसे—साँप, छिपकली तथा लोमड़ी आदि ।
(स) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumer) — ये सर्वोच्च मांसाहारी ( Top carnivore ) होते हैं जो कि द्वितीयकं उपभोक्ता का भक्षण करते हैं; जैसे— सिंह, बाघ एवं चीता आदि ।
(3) अपघटक (Decomposer) — इसके अन्तर्गत ऐसे सूक्ष्मजीवों को सम्मिलित किया गया है जो कि जीवों एवं पौधों के मृत एवं सड़ेगले कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करके उन्हें पुन: अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तन करते हैं; जैसे— जीवाणु, कवक; जैसे— ऐस्परजिलस, पॉलिपोरस, फ्यूजेरियम, आल्टरनेरिया एवं एक्टिनोमाइसिटीज इत्यादि ।
(IV) टुण्ड्रा पारितन्त्र ( Tundra Ecosystem) — टुण्ड्रा शब्द का अर्थ है – वृक्ष रेखा (Tree line) के उत्तर का क्षेत्र । इस क्षेत्र के अन्तर्गत साइबेरिया या यूरोप और उत्तरी अमरीका के उत्तरी भू-भाग सामान्तयः 60 डिग्री अक्षांश के ऊपरी भाग आते हैं जो उत्तर में ध्रुवीय महासागर एवं धुव्रीय प्रदेश तक तथा दक्षिण में वन प्रदेश तक फैला है । इस पारितन्त्र में ग्रीष्मकाल केवल 50 दिनों का होता है और इसी काल में लाइकेन, घासें, सेज (Sadge) तथा छोटी झाड़ियों के रूप में वनस्पतियाँ उगती हैं। ग्रीष्मकाल में ऊपर की कुछ बर्फ पिघल जाती है। इसी में वनस्पतियाँ उगती हैं। ये वनस्पतियाँ बहुत कम क्षेत्र में उगती हैं। बाकी बचा हुआ भाग बंजर, या वनस्पतिहीन होता है। रेण्डियर, आर्कटिक खरहे, भालू, भेड़िए, लेमिंग्स तथा कुछ प्रवासी पक्षी टुण्ड्रा क्षेत्र में प्रमुख जन्तु हैं। ऊँचे पहाड़ों पर 3970 से 6000 मीटर की पश्चिमी पर्वतों की ऊँचाई तथा 3050 मीटर उत्तर-पश्चिम हिमालय श्रेणियों पर भी टुण्ड्रा . प्रदेश जैसी जलवायु पाई जाती है जिसे अल्पाइन क्षेत्र (Alpine zone) कहते हैं।
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