पितृसत्ता से आप क्या समझते हैं ?

पितृसत्ता से आप क्या समझते हैं ?

अथवा
पितृसत्ता की अवधारणा को समझाइये ।
अथवा
पितृसत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पितृसत्तात्मक किसे कहते हैं ?
उत्तर— पितृसत्ता का अर्थ-पितृसत्ता एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें परिवार का सबसे बड़ा पुरुष मुखिया के रूप में होता है तथा परिवार की स्त्रियों एवं बालकों पर अपना वर्चस्व (अधिकार) रखता है। पितृसत्ता सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में पुरुष के वर्चस्व को प्रकट करता है। सामान्य शब्दों में पिता के द्वारा सत्ता को चलाना (Rule by the Father) पितृसत्ता है। आमतौर पर पितृसत्ता को किसी भी रूप में अथवा किसी भी भाषा में पुरुष पूर्वाग्रह ( महिलाओं के विरुद्ध) ‘पुरुष वर्चस्व’ या ‘पुरुष शक्ति’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था सामाजिक संरचना के रूप में स्त्रियों के ऊपर पुरुष के शारीरिक, सामाजिक एवं आर्थिक शक्ति (वर्चस्व ) के रूप में समझा जा सकता है।
पितृसत्ता की परिभाषाएँ – विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं—
(1) जिल्लाह एइजेस्टीन के अनुसार, “पितृसत्ता एक राजनीतिक संरचना है, जो पुरुष के पक्ष में है। “
( 2 ) उमा चक्रवर्ती के अनुसार, “पितृसत्तात्मक व्यवस्था से स्त्रियों के जीवन के जिन पहलुओं पर पुरुषों का नियंत्रण रहता है उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष उनकी प्रजनन क्षमता होती है।” “
पितृसत्ता की अवधारणा – पितृसत्ता को एक ढाँचे के रूप में देखा व समझा जाता है। पितृसत्ता के ढाँचे का विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि स्त्री एवं पुरुष की अस्मिता (पहचान) मात्र लिंग भेद से न होकर अन्य कारकों से भी होती है। पितृसत्ता समाजीकरण प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है जो लिंग विभेद को परिभाषित करने के साथसाथ ही सामाजिक स्तरीकरण को भी प्रभावित करती है। पितृसत्ता के ढाँचे का एक हिस्सा स्त्री एवं पुरुष के बीच लिंग भेद है ।
पितृसत्ता ढाँचे के अन्तर्गत एक तरह की विचारधारा प्रवाहित होती है जो इस ढाँचे को चलाने के लिए आवश्यक है एवं इस विचारधारा के अनुसार पुरुषों को स्त्रियों से अधिक श्रेष्ठ माना गया है तथा स्त्रियों पर पुरुषों के नियंत्रण को ढाँचागत किया गया है एवं सामान्यत: इस ढाँचे के अन्तर्गत स्त्रियों को पुरुषों की सम्पत्ति के रूप में देखा जाता है ।
पितृसत्ता के ढाँचे से जुड़ी हुई एक मुख्य विशेषता यह भी है कि एक ही काल में विभिन्न स्थानों एवं क्षेत्रों में भी इनका विकास अलगअलग प्रकार से हुआ है। उदाहरण के लिए–एक सभ्य समाज अधिक शिष्ट समाज में पितृसत्ता ढाँचे का विकास आदिवासी क्षेत्र में पितृसत्ता ढाँचे के विकास से अलग है एवं इसकी विशेषताओं में भी इन विभिन्न कारकों को पहचाना जा सकता है।
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