प्रकाशित प्रकद ज्ञान से आप क्या समझते हैं ?

प्रकाशित प्रकद ज्ञान से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर — प्रदप्रकाशित ज्ञान का अर्थ — प्रकट ज्ञान विश्वास पर आधारित होता है। हम मूलतः तीन तरीकों से ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। उनमें से एक यह है कि जिन तथ्यों को हम जानते हैं उनका अवलोकन अच्छे से एवं सरल व्याख्या करें। यही कारण है कि हमें विश्वास है कि एक स्वतन्त्र रूप से बाह्य संसार अस्तित्व रखता है। यह विश्व स्थिरता की सबसे सटीक एवं अच्छी व्याख्या है। तथ्य यह है कि संसार हमें आश्चर्यचकित कर सकता है तथा अन्य तथ्य यह भी है कि संसार ही हमारी इच्छाओं का प्रत्यक्ष परिणाम नहीं है।
दूसरे तरीके से हम तथ्यात्मक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। जिससे हमें सत्य की समझ प्राप्त होती है। प्रकट ज्ञान का प्रमुख आधार धारणा/ अभूतपूर्व गुण के साथ-साथ ईश्वर में विश्वास है। ज्ञान के प्रथम दो तरीके अविवादास्पद है परन्तु तीसरे ज्ञान के साथ ऐसा नहीं है।
प्रकट ज्ञान रहस्योद्घाटन ज्ञान का प्रमुख भाग है जो कि मानव धारणा का स्वतन्त्र अस्तित्व है। ऐसा नहीं है कि जो तत्व ज्ञान निर्माण में निहित है उनका सूत्रबद्ध नहीं किया गया है।
प्रकट ज्ञान के अन्तर्गत सत्य का अनुभव करने के लिए हमें असल्य को छोड़ना होगा। हमें अपने मन में असत्य के निर्माण को रोकना होगा। जब मन असत्य से घिरा हुआ होता है तो वह सत्य के अनुभव से अनभिज्ञ रहता है। सत्य बौद्धिक चेतना द्वारा प्रकट होता है जो कि सभी असत्यों का विनाश करके तथा अपनी आँखों से देखने के बजाय अहं से परे क्षमता का विकास करता है।
जिस सत्य को हम चाहते हैं कि वह पहले से ही मौजूद है और हमेशा अस्तित्व में रहेगा। ग्रहणशीलता के अभ्यास के लिए हम बुद्धिमान है, हम अपने ज्ञान से सीखते हैं कि हम अपने भाग्य के स्वयं निर्माता है एवं केवल मानवता की शक्ति द्वारा ही हम अपने अन्तिम गन्तव्य तक पहुँच सकते हैं। जब मन आत्मा सहभागिता से दूर होता है तथा सार्वभौमिक सत्य के पथ को निर्देशित करता है तो यह और अधिक मान हृदय (मन) पर प्रकट होता है। सत्य अब यहाँ है, सत्य आपके साथ है तथा सत्य अपने अस्तित्व के मूल में है। अपने अस्तित्व का मूल आपकी चेतना के सभी मानसिक अहंकारी एवं परम स्थिति की शुद्ध अवस्था है। चेतना की शुद्ध अवस्था आपकी आत्मा है। आपकी आत्मा के अन्दर सत्य के रूप में सर्वोच्च चेतना रहती है।
चेतना की बुद्धि से हमें ज्ञात होता है कि सत्य की प्रकृति में जाँच के लिए अज्ञान मन का उद्देश्य परम लक्ष्य की प्राप्ति है। हम वे पहले प्राणी नहीं हैं जो वास्तविकता की प्रकृति की जाँच कर रहे हैं।
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