फ्लैण्डर्स की अंतःक्रिया विश्लेषण प्रणाली को स्पष्ट करें।
फ्लैण्डर्स की अंतःक्रिया विश्लेषण प्रणाली को स्पष्ट करें।
अथवा
फ्लैण्डर्स की अंतःक्रिया विश्लेषण तंत्र से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
फ्लैण्डर्स की दस वर्ग अंतःक्रिया विश्लेषण प्रणाली की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए ।
अथवा
फ्लैण्डर की अंतःक्रिया विश्लेषण प्रणाली का क्या संप्रत्यय है ? इस प्रणाली की दस श्रेणियाँ लिखिये ।
अथवा
‘शिक्षक व्यवहार’ का क्या अर्थ ? फ्लैण्डर की अंतःक्रिया विश्लेषण प्रणाली का वर्णन कीजिये । इसके महत्त्व की विवेचना कीजिये ।
उत्तर— शिक्षक व्यवहार–शिक्षक व्यवहार में, शिक्षक के व्यक्तित्व की विशेषतायें, उसका प्रभुत्व, उसकी अभिवृत्तियाँ, उसकी संवेदनशीलता, उसके शाब्दिक एवं अशाब्दिक व्यवहार शामिल हैं।
रियान्स के अनुसार, “शिक्षक व्यवहार, उन व्यक्तियों के व्यवहार या क्रियाओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो वे करते हैं तथा जिन क्रियाओं को करने की उनकी ज़रूरत होती है विशेष कर ऐसी क्रियायें जो अधिगम के लिये निर्देशन अथवा मार्गदर्शन से सम्बन्धित हों।”
शिक्षक के व्यवहार की निम्न दो विशेषतायें होती हैं—
(i) शिक्षक के व्यवहार का निरीक्षण संभव है, अतः उसका मापन भी संभव हो जाता है ।
(ii) शिक्षक का व्यवहार, उनकी परिस्थिति, कारकों तथा विशेषताओं के आधार पर होता है ।
फ्लैण्डर्स अन्तःक्रिया विश्लेषण प्रणाली – फ्लैण्डर ने शिक्षक की शाब्दिक और अशाब्दिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि छात्र को पढ़ने के लिए प्रेरणा देने हेतु शाब्दिक व्यवहार अधिक प्रभावशाली होता है । कक्षा शिक्षण में अध्यापक अधिक से अधिक प्रयोगों का सहारा लेकर प्रभावी शिक्षण करा सकता है जबकि छात्र उसके व्यवहार से प्रेरित होकर उचित अनुक्रिया कर सकेगा । कक्षा में होने वाला शिक्षक व्यवहार ही छात्र का आदर्श होता है । वह उसी का अनुकरण करना चाहता है। अतः वह प्रत्येक शाब्दिक तथा अशाब्दिक प्रतिक्रिया पर ध्यान केन्द्रित रखता है।
फ्लैण्डर्स के अनुसार शिक्षककृत् उपक्रम का प्रयोग छात्र अपनी अनुक्रिया में करता है व छात्र के स्वोपक्रम से शिक्षक अपनी प्रभावशाली अनुक्रिया करता है। अत: कक्षा शिक्षण में दोनों का एक समान महत्त्व है।
जब शिक्षक और छात्र के मध्य होने वाली अन्तःक्रिया का सन्तुलन बन जायेगा तब सशक्त शिक्षण प्रक्रिया स्वतः बन जायेगी । अतः दोनों के व्यवहार में संतुलन अपेक्षित होता है।
फ्लैण्डर्स ने अपना अनुसन्धान कार्य 1955-60 तक अपने साथियों और सहयोगियों के साथ किया। उन्होंने छात्र-शिक्षक की प्रत्येक प्रतिक्रिया का तीन सैकण्ड का समय निर्धारित करके निरीक्षण किया। इन्होंने अपनी शिक्षण प्रविधि का नाम फ्लैण्डर्स अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली स्थापित किया। यह एक ‘वर्ग प्रविधि’ भी है। इस वर्ग प्रविधि में छात्र तथा शिक्षक की अनुक्रियाओं का निरीक्षण करके निष्कर्ष निकाला जाता है। शिक्षक प्रायः अपनी अनुक्रिया करने के लिए स्वतन्त्र होता है किन्तु छात्र को उसके अनुरूप ही क्रिया करनी पड़ती है। उसके निर्देशन में क्रिया का सम्पादन करना होता है । अतः शिक्षार्थी को शिक्षक का आश्रित चर भी कहा गया है। इस प्रविधि में 10 वर्ग बनाये जाते हैं जिनमें छात्र-शिक्षक के व्यवहार को समझा जाता है।
फ्लैण्डर्स दस वर्ग प्रणाली– फ्लैण्डर्स ने सम्पूर्ण शिक्षक-छात्र व्यवहार को दस वर्गों में विभाजित किया है। किन्तु प्रमुख रूप से ये तीन वर्ग ही किए हैं—
(i) शिक्षक कथन
(ii) छात्र कथन
(iii) मौन प्रक्रिया ।
फ्लैण्डर्स द्वारा विभाजित उपर्युक्त तीनों वर्ग सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में लगातार चलते रहते हैं। इनमें प्रत्येक कोई न कोई क्रिया करता ही रहता है या तो शिक्षक बोलता है, या छात्र प्रश्न पूछता है, अथवा उत्तर देता है या फिर दोनों मौन रहते हैं। इस प्रकार शिक्षक-छात्र व्यवहार उपर्युक्त तीनों वर्गों में समाहित हो जाता है । अब पुनः शिक्षक कथन भी कई प्रकार का हो सकता है ।
(1) शिक्षक-कथन– इसमें शिक्षक का शाब्दिक व्यवहार शामिल किया जाता है। शिक्षक अपने कथन से बालकों को विषय-वस्तु से अवगत करवाता है। वह कथन के माध्यम से अपनी क्रिया प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। फ्लैण्डर्स के अनुसार शिक्षक कथन को दो भागों में विभाजित किया जाता है—
(i) प्रत्यक्ष कथन, (ii) अप्रत्यक्ष कथन (व्यवहार)
प्रत्यक्ष कथन में शिक्षक पूर्णतया सक्रिय रहता है तथा छात्र कम स्वतन्त्र रहते हैं किन्तु अप्रत्यक्ष कथन में शिक्षक बालकों से अनुक्रिया करवाता है। अतः छात्र अधिक सक्रिय रहते हैं। ये दोनों प्रकार के व्यवहार शिक्षण प्रक्रिया में प्रवाह का संचार करते हैं। यदि प्रत्यक्ष कथन में छात्रों को कम स्वतन्त्रता दी जाती है तो वे विषय-वस्तु को ध्यानपूर्वक सुनकर उसका अर्थ ग्रहण करते हैं और जब अप्रत्यक्ष व्यवहार होता है तब बालकों को अनुक्रिया करने का अवसर प्राप्त होता है वे अपनी जिज्ञासा शान्त करते हैं। शिक्षक के उपर्युक्त दोनों भेद उपभेदों में विभाजित कर दिए जाते हैं। फ्लैण्डर्स ने इनको निम्नलिखित उपवर्गों में विभाजित किया है—
(i) प्रथम वर्ग, (ii) द्वितीय सर्ग, (iii) तृतीय वर्ग तथा (iv) चतुर्थ वर्ग ।
प्रथम वर्ग में छात्रों की अनुभूति को स्वीकार किया जाता है। छात्रों ने क्या अनुभूति की उनकी प्रतिक्रियाओं को स्वीकारना। द्वितीय वर्ग के अन्तर्गत सही प्रतिक्रिया करने वाले छात्रों को प्रोत्साहित करने हेतु प्रशंसा एवं प्रोत्साहन देना आता है। तृतीय वर्ग में छात्र विचार क्रिया आती है तथा अन्तिम वर्ग में शिक्षक विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्न पूछकर उनकी ग्रहण क्षमता ज्ञात करता है। प्रत्यक्ष व्यवहार में शिक्षक प्रकरण समस्त व्याख्यान, निर्देशन तथा विश्लेषण करना आता है। इस प्रकार दोनों भेदों को सात उपभेदों में विभक्त कर दिया जाता है।
शिक्षक के उपर्युक्त प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष भेदों के उपभेदों को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट कर रहे हैं—
प्रथम वर्ग—अनुभूति स्वीकार करना— इसके अन्तर्गत शिक्षक को यह देखना होता है कि छात्र किस प्रकार की अनुभूति कर रहा है। इसकी भावना के अनुसार ही उसे अभिव्यक्ति का मौका दिया जाता है। यह व्यवहार कक्षा में शिक्षण प्रवाह की दृष्टि से उत्तम है।
द्वितीय वर्ग–प्रशंसा तथा प्रोत्साहन— छात्र को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता देने पर बालक उचित अनुक्रिया करेगा । अतः शिक्षक उसकी प्रशंसा अथवा प्रोत्साहन देकर उसका मनोबल बढ़ाता है । वह कथनों के माध्यम से पुनर्बलन प्रदान करता है, बहुत अच्छा, very good, अति सुन्दर आदि कथनों का प्रयोग कर सकता है।
तृतीय वर्ग–विचार स्वीकृति– इस वर्ग में अध्यापक छात्रों द्वारा प्रस्तुत विचारों को स्वीकार करता है। उनके विचारों को खुद दोहराता है, स्पष्टीकरण करता हुआ अपने विचारों से छात्रों के विचारों को सम्बन्धित करता है। इससे बालक प्रसन्न होता है तथा और अधिक विचार प्रकट करने की कोशिश करता है। –
चतुर्थ वर्ग– प्रश्न पूछना– शिक्षक उपर्युक्त तीनों वर्गों में कराये गए अध्ययन से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है अथवा तत्सम्बन्धित कोई समस्या प्रस्तुत कर सकता है। प्रश्नों का आकार अपेक्षाकृत छोटा ही रहता है ताकि बालक अर्थ शीघ्र समझ जाए। इस प्रकार बालक ने क्या ग्रहण किया, इसका भी विश्लेषण किया जाता है।
पंचम वर्ग–व्याख्यान देना– उपर्युक्त चारों वर्ग शिक्षक के अप्रत्यक्ष व्यवहार को इंगित करते हैं। व्याख्यान शिक्षक का प्रत्यक्ष व्यवहार होता है। वह छात्रों को प्रकरण सम्मत व्याख्यान से लाभान्वित करता हुआ विषय-वस्तु का विकास करता है । इसमें शिक्षक को कक्षा में नियंत्रण भी बनाये रखना पड़ता है तथा व्याख्यान को कुशलता से प्रस्तुत करना पड़ता है।
षष्टम वर्ग–निर्देश देना– यह भी शिक्षक का प्रत्यक्ष व्यवहार है। इसमें अध्यापक छात्रों को अपेक्षित निर्देश देता है। छात्रों को शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। शिक्षक किसी भी प्रकार का निर्देश दे सकता है। पाठ्यवस्तु पढ़ने का दोहरान करने का, खड़े होने का कार्य करने का आदि । शिक्षक का यह व्यवहार बालकों को तत्पर रखता है। उन्हें सक्रिय बनाये रखने तथा कक्षा नियन्त्रण में यह प्रभावशाली वर्ग है।
सप्तम वर्ग–आलोचना करना– बालक यदि उद्दण्डी है तो उसे नियन्त्रित करने के लिए शिक्षक आलोचना का सहारा लेता है जिससे वह तथ्य को ग्रहण कर सके। आलोचना में वह अपनी मति के अनुसार कथन कर सकेगा (अपशब्द इनमें सम्मिलित नहीं किए जा सकते ) ।
उपर्युक्त सातों उपवर्ग शिक्षक के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं। शिक्षक के इस व्यवहार का बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है और वह खुद भी ऐसा भी व्यवहार करने की सोचता है ।
(2) छात्र-कथन– जब छात्र अपना कथन- प्रश्न का उत्तर देने, अपनी जिज्ञासा व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त करता है तो वह छात्र कथन कहलाता है। यह भी दो उपभेदों में विभाजित होता है
(i) अनुक्रिया स्वरूप– शिक्षककृत् प्रश्न का उत्तर देने मेंइसमें छात्र शिक्षक के निर्देशानुसार अनुक्रिया करता है । यदि उसे उत्तर देने के लिए कहा जाए तो वह उत्तर कथन करता है अथवा पढ़ने के लिए कहा जाए तो वचन कथन करता । अतः शिक्षक की पहल पर छात्र का कथन करना छात्र अनुक्रिया कहलाती है।
(ii) छात्र पहल (स्वोपक्रम )– इसके अन्तर्गत छात्र शिक्षक के कथन पर आश्रित नहीं रहता है। इसमें छात्र स्वयं पहल करता है। वह अपनी ओर से कोई प्रश्न पूछता है, समस्या प्रस्तुत करता है या फिर शंका समाधान करता है। इसमें शिक्षक की भूमिका छात्र के अनुसार क्रिया करने में होती है, छात्र जो पूछता है उसका उत्तर शिक्षक को देना होता है । अतः यह छात्र पहल अथवा छात्र स्वोपक्रम कहलाता है ।
(3) मौन अथवा विभन्ति— यह स्थिति कक्षा में कई बार स्वतः उत्पन्न हो जाती है तथा कई बार पैदा की जाती है । या तो कक्षा में कभीकभी बिल्कुल शांति छा जाती है, या फिर सभी छात्र किसी तथ्य को लेकर एक साथ बोलने लगते हैं। इससे कक्षा में अशान्ति तो होती ही है साथ ही शिक्षक (निरीक्षक) को यह भी ज्ञात नहीं हो पाता कि कौनसा छात्र शोर कर रहा है। अतः दोनों प्रकार का ही वातावरण उत्पन्न हो जाता
अन्त: इस प्रकार शिक्षक-कक्षीय व्यवहार में उपर्युक्त तीनों वर्गों का विशिष्ट महत्त्व है, फ्लैण्डर्स ने उपर्युक्त दस वर्ग प्रविधि का निर्माण क्रिया विश्लेषण के अन्तर्गत ही किया है। पहले उन्होंने इस विषय पर अनुसन्धान और प्रयोग किए उसके बाद ही अपनी अन्तःक्रिया विश्लेषण प्रणाली का प्रतिपादन किया है। अतः अन्तःक्रिया छात्रों में तथा अध्यापक के मध्य सम्पन्न होती है । यह उपर्युक्त 10 प्रकार से हो सकती है।
अन्तः क्रिया विश्लेषण की आधारभूत धारणायै– फ्लैण्डर्स अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली में शिक्षक तथा छात्र के व्यावहारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया जाता है। इसकी निम्नलिखित अवधारणाएँ हैं—
(i) छात्र अधिगम के अनुकूल वातावरण का सृजन किया जाता है।
(ii) कक्षा-कक्ष में किसी न किसी प्रकार की शाब्दिक अन्तक्रिया होती रहती है।
(iii) छात्रों का मूल्यांकन सरलता से किया जा सकता है।
(iv) मूल्यांकन प्रक्रिया मौखिक तथा लिखित दोनों रूपों में सम्पन्न होती है।
(v) यह शिक्षक को प्रति पुष्टि भी प्रदान करने में सक्षम है।
(vi) अध्यापक व्यवहार दो प्रकार का होता है— प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष ।
(vii) प्रत्यक्ष व्यवहार में छात्र को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है जिससे छात्र अपनी उच्च स्तरीय चिन्तन शक्ति को विकसित कर सके ।
(viii) कक्षा में शाब्दिक और अशाब्दिक दोनों प्रकार की अन्तः क्रिया होती है।
(ix) छात्रों को शिक्षक नियंत्रण में रखता है।
(x) शिक्षक व्यवहार ही छात्रों को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
(xi ) छात्रों की अनुक्रिया अध्यापक पर आश्रित होती है।
(xii) यह विधि कक्षा में प्रजातान्त्रिक व्यवहार पर बल देती है।
फ्लैण्डर्स वर्ग प्रविधि को संक्षिप्त रूप में निम्नांकित तालिका में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है—
फ्लैण्डर्स ने सम्पूर्ण कक्षा व्यवहार को उपर्युक्त विधि से दस वर्गों में विभक्त किया है। इसमें छात्र-अध्यापक के मध्य होने वाली अन्तः क्रिया या तो शिक्षक की पहल से होती है या छात्र की पहल से होती है या फिर दोनों में किसी की नहीं होती। कक्षा में शान्ति अथवा अशान्ति बनी रहती है।
अन्तः क्रिया विश्लेषण की प्रक्रिया फ्लैण्डर्स की अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली को क्रियान्वित करने हेतु दो प्रकार की प्रक्रिया अपनाई जाती है—
(i) अंकन प्रक्रिया
(ii) अंकन अर्थापन प्रक्रिया
ये दोनों प्रक्रियायें अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रक्रिया में अपना विशेष योगदान करती हैं। इन्हीं के माध्यम से सम्पूर्ण अन्तः क्रिया प्रणाली को सम्पन्न किया जाता है। फ्लैण्डर्स ने इन दोनों में अंकन प्रक्रिया पर ही अधिक बल दिया है।
(i) अंकन प्रक्रिया– अंकन प्रक्रिया में एक कुशल निरीक्षक को नियुक्त किया जाता है। उसका ‘दस वर्ग प्रविधि’ मापन में कुशल होना अपेक्षित है। दस वर्गों की अच्छी तरह से पहचान कर लेने के बाद कक्षा के बीच में खड़े होकर वह 15-20 मिनट तक छात्र – अध्यापक की अन्तःक्रियाओं का निरीक्षण करेगा | अंकन प्रक्रिया में नियुक्त निरीक्षक को शाब्दिक कथनों का अभ्यास करना चाहिए। अंकन में आने वाली समस्या को दूर करने हेतु एक कुशल पर्यवेक्षक को साथ रखा जाता है।
निरीक्षक पूर्व अभ्यास में निरीक्षक को एक वर्ग में तीन सैकण्ड तक निरीक्षण करने का अभ्यास करना अपेक्षित है। अत: इस प्रक्रिया को सफल बनाने में कुशल पर्यवेक्षक का होना बहुत जरूरी है। कक्षा के बीच में खड़े रहकर वह सही निरीक्षण कर पाता है, क्योंकि वहाँ से प्रत्येक छात्र पर दृष्टि रखी जाती है तथा उनके कथनों को सावधानी से सुना जा सकता है। अब अन्तः क्रिया व्यवहार में वर्गों का अंकन करते समय उसे प्रति तीन सैकण्ड में एक अंकन चिह्न बड़ी तत्परता से लगाना पड़ता है। इसमें आलसी निरीक्षक सक्षम नहीं हो सकता, क्योंकि तीन सैकण्ड बहुत जल्दी हो जाती हैं। अंकन में निष्पक्षता तथा वैधता पर बल दिया जाता है।
अन्त में निरीक्षक एक आलेख पत्र तैयार करता है, उसमें प्रत्येक घटना से सम्बन्धित वर्ग का अंकन किया जाता है। प्रति तीन सैकण्ड के अन्तराल से अंकन करने में 20 मिनट तक वह अनुमानतः 400 आवृत्तियाँ अंकित कर सकता है। आलेख-पत्र को तैयार करने से पहले उसकी पूर्ति करनी आवश्यक है, जैसे—छात्राध्यापक का नाम, कक्षा, विषय आदि ।
इस प्रकार निरीक्षक कक्षा में अन्तःक्रिया व्यवहार को अंकित कर लेने तथा आलेख पत्र तैयार कर लेने के बाद अन्तःक्रिया को क्रियान्वित करने के लिए पूर्व नियोजन किया जाता है जिसे अन्तः क्रिया विश्लेषण आव्यूह रचना भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में पूर्व में अंकित वर्गों के अंकन के अनुसार शिक्षक तथा छात्र व्यवहार की व्याख्या की जाती है।
इस नियोजन प्रक्रिया में निरीक्षक द्वारा एक पत्र पर 10 पंक्तियाँ और उनमें 10 स्तम्भ बनाये जाते हैं।
ये उपर्युक्त 10 वर्ग ही 10 स्तम्भ होते हैं। ये 10 वर्ग आलेख पत्र के प्रारम्भ तथा अन्त तक (ऊपर से नीचे लम्बवत्) बने होते हैं। इस प्रकार एक पंक्ति तथा एक स्तम्भ में एक वर्ग की आवृत्तियों का अंकन अंकित किया जाता है। अतः छात्र शिक्षक के पारस्परिक अन्तः क्रिया व्यवहार को इन्हीं दस वर्गों में विभक्त कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में निर्धारित समय का बहुत महत्त्व है। निरीक्षक को तीन सैकण्ड में आवृत्ति अंकन करना ही होता है। अन्यथा आवृत्ति अंकन की विश्वसनीयता नहीं रहेगी।
यदि अन्तः क्रिया तीन सैकण्ड से अधिक होती है तो पुनः उसी वर्ग की आवृत्ति अंकित की जाती है। इस प्रकार अन्तः क्रिया विश्लेषण की आव्यूह रचना तैयार की जाती है।
अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली की विशेषताएँ– अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—
(i) इसमें कक्षा का मूल्यांकन सरलता से किया जा सकता है।
(ii) अन्य विधियों में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
(iii) छात्राध्यापक इससे अपेक्षानुसार लाभान्वित हो सकते हैं।
(iv) 10 वर्ग प्रविधि की निरीक्षण प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है तथा उसमें अन्त:क्रिया व्यवहार को वर्गों के अनुसार अंकित किया जाता है।
(v) सीखने तथा शिक्षण कराने में यह सर्वोत्तम विधि है।
(vi) प्रत्यक्ष व्यवहार अधिक प्रभावशाली रहता है ।
(vii) शिक्षक प्रधान चर होता है तथा छात्र आश्रित चर होता है।
(viii) अन्तःक्रिया को तीन भागों में बाँटा जाता है— शिक्षक कथन, छात्र कथन, मौन अथवा विभ्रान्ति ।
(ix) इसमें समय सीमा बहुत कम (तीन सैकण्ड) होती है ।
(x) शिक्षण व्यवहार के सिद्धान्तों का निर्माण किया जा सकता है।
(xi) यह व्ययशील पद्धति नहीं है।
(xii) इसमें छात्र – अध्यापक दोनों ही सक्रिय रहते हैं।
(xiii) यह छात्र-अध्यापक व्यवहार निरीक्षण की वस्तुनिष्ठ प्रविधि है।
(xiv) इसमें निरीक्षका का कुशल होना अत्यन्त आवश्यक
है।
(xv) इसमें दोनों (छात्र – अध्यापक) की आन्तरिक भावनाओं को समझा जा सकता है।
(xvi) इसमें छात्रों को खुलकर विचार प्रकट करने का अवसर मिलता है। अतः वे अपनी समस्या का निवारण शिक्षक के सहयोग से करते हैं ।
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