बालिका शिक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए| तथा भारत में बालिका शिक्षा की वर्तमान स्थिति का वर्णन कीजिए।

बालिका शिक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए| तथा भारत में बालिका शिक्षा की वर्तमान स्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर – बालिका शिक्षा की आवश्यकता – भारत में नारी की स्थिति अत्यन्त शोचनीय रही है। उसे केवल भोग की वस्तु समझा जाता रहा है। लेकिन अनेक समाज सुधारकों के प्रयासों से धीरे-धीरे स्थिति में बदलाव हुआ । स्वतन्त्रता के बाद गठित विभिन्न शिक्षा आयोगों ने भी लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अनेक गोष्ठियों में लड़कियों की साक्षरता के लिए विशेष प्रयास किए जाने पर बल दिया गया। बालिका शिक्षा की आवश्यकता निम्न कारणों से हैं—

(1) मानवीय संसाधनों के पूर्ण विकास के लिए – किसी भी राष्ट्र के पास तीन प्रकार के साधन होते हैं—
(i) भौतिक (Physics), (ii) आर्थिक (Economic) तथा (iii) मानवीय (Human ) |
इन सबमें मानवीय संसाधन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भौतिक व आर्थिक साधनों का प्रयोग मानव ही करता है । यदि उसमें अपेक्षित कौशल व योग्यता न हो तो ये सभी संसाधन व्यर्थ सिद्ध होते हैं महिलाएँ भी हमारे राष्ट्र के मानवीय संसाधन हैं अतः उनके व्यक्तित्व का । समुचित विकास होना राष्ट्रीय विकास के लिए बहुत जरूरी है। इसके लिए उन सबका शिक्षित होना जरूरी है। इस सन्दर्भ में भारतीय शिक्षा आयोग का यह कथन उल्लेखनीय है—”मानवीय संसाधनों के पूर्ण विकास के लिए महिलाओं की शिक्षा पुरुषों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। “
(2) सामाजिक परिवर्तन के लिए — कोई भी समाज तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक उसके निवासी प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तनों को नहीं अपनाते। भारतीय समाज एक बन्द समाज रहा है। यहाँ लोग अपने पुराने तौर-तरीकों को छोड़कर नए परिवर्तनों को स्वीकार करने से घबराते हैं। उनमें नवीनता का भय इतना अधिक है कि वे अपनी पुरानी रूढ़ियों व विश्वासों को छोड़ना नहीं चाहते। यह प्रवृत्ति पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक है। शिक्षा के बिना उन्हें उनको पुरानी सोच से मुक्त नहीं किया जा सकता। अतः नवीन प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहन देने के लिए लड़कियों की शिक्षा अति आवश्यक है।
(3) पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए—आजादी के बाद हमने पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य रखा लेकिन इसे अब तक प्राप्त नहीं कर पाये। इसका एक मुख्य कारण लड़कियों की शिक्षा का अभाव है। एक शिक्षित महिला अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति अधिक सचेत होती है। उनको शिक्षित किए बिना पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
(4) बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए—कोठारी आयोग ने उन्हें ‘भारत का भाग्य'” (Destiny of India) कहा है। प्लेटो ने कहा था कि राष्ट्र का निर्माण देवदार के वृक्षों यो ईंट-पत्थरों से नहीं होता। इसका निर्माण तो उन लोगों के चरित्र से होता है जो उसमें रहते हैं। बच्चों में इस अच्छे चरित्र की नींव बाल्यावस्था में ही पड़ जाती है। उसके चरित्र निर्माण में सर्वाधिक योगदान उसकी माँ का होता है। इसीलिए फ्रोबेल कहता है, ‘माताएँ निभा सकती हैं जब वे शिक्षित हों।”
(5) महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए—  भारत में महिलायें वर्षों से शोषण का शिकार रही हैं। उन्हें एक दास एवं भोग की वस्तु मात्रा समझा जाता है। आजादी के बाद उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए विशेष कदम उठाये गये। उन्हें पुरुषों के बराबर समानता के स्तर पर लाने के लिए विशेष सुविधायें प्रदान की गयी । केन्द्र सरकार ने राज्य सभा, लोकसभा व राज्यों की विधानसभाओं के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संसद में एक विधेयक पेश करने और आवश्यकता पड़ने पर संविधान में संशोधन करने की घोषणा की है। लेकिन गाँवों में रहने वाली या शहरों की भी कम पढ़ीलिखी महिलायें इस आरक्षण तथा उन्हें दी गयी अन्य सुविधाओं का लाभ उठा ही नहीं सकती। इसके लिए उनका शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है।
(6) अनेक राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए—  हमारे राष्ट्र में अनेक ऐसी समस्यायें हैं जिनके समाधान में महिलायें अपना रचनात्मक सहयोग प्रदान कर सकती है लेकिन इसके लिए उनका शिक्षित होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या अपने में तो एक समस्या है ही; गरीबी, बेरोजगारी तथा प्रदूषण जैसी अन्य समस्याओं का कारण भी है। एक शिक्षित महिला बड़े परिवार के खतरों को समझ कर अपने परिवार को सीमित रख सकती है। जिससे वह अपने परिवार की दशा को तो सुधारती ही है, अनेक राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने में भी अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है।
भारत में बालिका शिक्षा की वर्तमान स्थिति- स्त्री शिक्षा राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस क्षेत्र में किए गए शोध अध्ययनों से पता चलता है कि स्त्रियों में शिक्षा के प्रसार से उत्पादकता की वृद्धि होती है, कौशल का विकास होता है, जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहन मिलता है। यह समझा जाता है कि स्त्रियों के लिए शिक्षा के अवसर बढ़ने पर वे और अधिक अच्छी प्रकार से अपनी पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करेंगे। इसीलिए स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में महिलाओं के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता एक महत्त्वपूर्ण विषय रहा है। हमारे संविधान की धारा 15 व 16 में स्त्री व पुरुषों के बीच अवसरों की समानता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसी आधार पर स्त्री शिक्षा के लिए यहाँ निरन्तर प्रयास किए जाते हैं। उनके लिए विभिन्न स्तरों पर अलग से शिक्षा संस्थायें खोली जाती रही हैं, विद्यालयों में उनके नामांकन को बढ़ाने व उन्हें विद्यालयों में रोके रखने के लिए विशेष सुविधायें दी जा रही हैं। आज की स्थिति यह है कि देश में हर दस निरक्षरों में से 7 महिलायें हैं। पुरुषों से अधिक निरक्षरता महिलाओं में है। प्रत्येक चार स्त्रियों में तीन निरक्षर हैं। जबकि प्रत्येक दो पुरुषों में केवल एक पुरुष निरक्षर है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 1000 पुरुषों के पीछे 943 स्त्रियाँ हैं लेकिन उनकी साक्षरता में बहुत अन्तर है । पुरुषों में यह 80.9 है तथा स्त्रियों में केवल 64.6 है जो कि अपेक्षा से बहुत कम है। निम्न तालिका से देश में स्त्री शिक्षा की वर्तमान स्थिति का पता चलता है–
इस प्रकार 1951 से 2011 तक स्त्रियों में साक्षरता 7.9 से बढ़कर 64.6 प्रतिशत हो गयी है। देखने में स्थिति बेहतर दिखायी देती है पर स्त्री शिक्षा में प्रगति की दर अत्यन्त धीमी है। सभी प्रयासों के बावजूद शिक्षा प्रणाली स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान नहीं दे पायी । इस सन्दर्भ में जो विभिन्न आँकड़ें उपलब्ध हैं तथा जो अध्ययन किए गए हैं उनसे स्त्री शिक्षा की वर्तमान स्थिति के बारे में निम्नलिखित निष्कर्ष सामने आते है–
(i) प्राथमिक स्तर पर लड़कियों का नामांकन लड़कों की अपेक्षा बहुत कम है।
(ii) 1950-51 में यह केवल 7.9 प्रतिशत रहा।
(iii) जैसे-जैसे लड़कियाँ प्राथमिक से उच्च प्राथमिक व माध्यमिक स्तर तक पहुँचती है वैसे-वैसे कुल छात्रों में उनका प्रतिशत भाग कम होता जाता है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि प्राथमिक स्तर पर लगभग 42 प्रतिशत लड़कियाँ प्रवेश लेती हैं, पर माध्यमिक स्तर तक पहुँचते-पहुँचते उनकी संख्या बहुत कम रह जाती है।
(iv) लड़कियों के नामांकन में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में भी अन्तर पाया जाता है। पूरे भारत में प्राथमिक, उच्च प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर शहरों में लड़कियों के नामांकन का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है। 1986-87 में ग्रामीण क्षेत्रों में 6 या इससे अधिक आयु वर्ग के 69 प्रतिशत लड़कियाँ ऐसी थी जिनका कभी नामांकन नहीं हुआ जबकि शहरी क्षेत्रों में ऐसी लड़कियों का प्रतिशत 36 था ।
(v) स्त्री शिक्षा की स्थिति अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। प्राथमिक, उच्च प्राथमिक व माध्यमिक चरणों में कुल नामांकन में राजस्थान में लड़कियों को सबसे कम प्रतिनिधित्व प्राप्त है। प्राथमिक स्तर पर हरियाणा, पंजाब व चण्डीगढ़ में लड़कियों को लगभग समान प्रतिनिधित्व प्राप्त है ।
(vi) लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में विद्यालय त्याग की प्रवृत्ति अधिक है। आरम्भ में तो विद्यालय जाने की आयु वाले लगभग सभी छात्रों का नामांकन कर लिया जाता है पर अगली कक्षाओं तक पहुँचते-पहुँचते अनेक लड़कियाँ विद्यालय छोड़ देती हैं इसके कुछ मुख्य कारण हैं शिक्षा में रुचि का अभाव, कम आयु में विवाह तथा घरेलू कार्यों की जिम्मेदारी आदि ।
(vii) विद्यालयों में लड़कियों की उपस्थिति भी सामान्यत: लड़कों से कम रहती है। इससे पहले तो वे पढ़ाई में पिछड़ जाती हैं और बाद में विद्यालय ही छोड़ देती हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि देश में स्त्री शिक्षा की वर्तमान स्थिति कुल मिलाकर अधिक सन्तोषजनक नहीं है। इसी प्रकार अपने संवैधानिक आदर्श एवं विभिन्न शिक्षा आयोगों व नवीन शिक्षा नीति के सुझाव के अनुरूप शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए प्रत्यनशील है। इसी संदर्भ में स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिए विशेष योजनायें बनायी जा रही हैं पर स्थिति में अपेक्षित सुधार दिखाई नहीं दे रहा । अब प्रश्न यह उठता है कि इसके क्या कारण हैं? वे कौनसी समस्यायें हैं जिनके कारण स्त्रियों को शिक्षित करने के मार्ग में अवरोध पैदा होता है ? शैक्षिक अवसरों की समानता का सही लाभ महिलाओं तक पहुँचाने के लिए इन समस्याओं को समझना बहुत जरूरी है ।
निम्न तालिका से देश में स्त्री शिक्षा की वर्तमान स्थिति का पता चलता है–
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