‘बेसिक शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त’ पर टिप्पणी लिखिए।
‘बेसिक शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर— बेसिक शिक्षा—डॉ. जाकिर हुसैन द्वारा रिपोर्ट जो रिपोर्ट जो बेसिक शिक्षा हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार की गई वह निम्नलिखित प्रकार हैं—
बेसिक शिक्षा की रूपरेखा—
(1) 7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये ।
(2) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो ।
(3) सम्पूर्ण शिक्षा किसी आधारभूत शिल्प अथवा उद्योग पर आधारित हो ।
(4) शिल्प का चुनाव बच्चों की योग्यता और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के आधार पर किया जाये ।
(5) बच्चों द्वारा निर्मित वस्तुओं का उपयोग हो और उनसे आर्थिक लाभ लिया जाये, स्कूलों का व्यय पूरा किया जाये ।
(6) शिल्पों की शिक्षा इस प्रकार दी जाये कि उससे बच्चे जीविकोपार्जन कर सकें ।
(7) शिल्पों की शिक्षा में आर्थिक महत्त्व के साथ-साथ उसके सामाजिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व को भी स्थान दिया जाये।
बेसिक शिक्षा के सिद्धान्त—बेसिक शिक्षा निम्नलिखित आधारभूत सिद्धान्तों पर विकसित की गयी थी—
(1) शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाने का सिद्धान्त— गाँधीजी शिक्षा को मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे। उन्होंने स्पष्ट घोषणा की कि किसी भी बच्चे को शिक्षा के अधिकार वंचित रखना उसके अधिकार का हनन है। यह कार्य असत्य है और मानवीय कसौटी पर हिंसा है। उन्होंने सर्वप्रथम इस बात पर ही बल दिया कि राज्य को 7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।
(2) शिक्षा को आत्मनिर्भर अर्थात् सैल्फ सपोर्टिंग बनाने का सिद्धान्त—गाँधीजी के सामने सार्वभौमिक अनिवार्य और निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का प्रश्न था और उस समय राज्य के पास इसकी व्यवस्था करने के साधन नहीं थे। अतः उन्होंने स्कूलों में हस्तशिल्पों की शिक्षा अनिवार्य करने पर बल दिया। उनका अनुमान था कि बच्चों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से स्कूलों का व्यय निकल सकेगा।
(3) सत्य, अहिंसा और सर्वोदय का सिद्धान्त—गाँधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। वे समाज में होने वाले किसी भी प्रकार के शोषण को हिंसा मानते थे और उस समय अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों का शोषण कर रहे थे। तभी गाँधीजी ने सबके लिए समान शिक्षा के सिद्धान्त को स्वीकार किया। इसमें छोटे-बड़े का भेद नहीं होगा, कोई किसी का शोषण नहीं करेगा, सबको अपने उत्थान के समान अवसर प्राप्त होंगे।
(4) शिक्षा को जीवन से जोड़ने का सिद्धान्त—उस समय अंग्रेजी शिक्षा का भारतीयों के वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं था । गाँधीजी ने शिक्षा को बच्चों के वास्तविक जीवन, उनके प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण और घरेलू एवं क्षेत्रीय उद्योग-धन्धों पर आधारित कर उससे उनके वास्तविक जीवन से जोड़ने पर बल दिया।
(5) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा बनाने का सिद्धान्त— गाँधीजी ने स्पष्ट किया कि मातृभाषा पर बच्चों का स्वाभाविक अधिकार होता है। उसी के माध्यम से जनशिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है। यही कारण है कि बेसिक शिक्षा में अभिव्यक्ति के आधारभूत माध्यम मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का सिद्धान्त स्वीकार किया गया ।
(6) शिक्षा को हस्तकौशलों पर केन्द्रित करने का सिद्धान्त—शिक्षा को किसी हस्तकौशल अथवा उद्योग पर केन्द्रित करने के पीछे गाँधीजी के कई विचार थे। पहला यह कि वे बच्चों को कायिक श्रम का महत्त्व बताना चाहते थे। दूसरा यह कि वे बच्चों को स्वावलम्बी बनाना चाहते थे, उन्हें जीविकोपार्जन करने योग्य बनाना चाहते थे। तीसरा यह
कि वे सबका उदय करना चाहते थे। चौथा यह कि वे शिक्षा को गाँवों के जीवन से जोड़ना चाहते थे और पाँचवाँ एवं अन्तिम यह कि वे शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे, स्कूलों में होने वाले उत्पादन से स्कूलों का व्यय निकालना चाहते थे।
(7) ज्ञान को एक इकाई के रूप में विकसित करने का सिद्धान्त—यदि भौतिक दृष्टि से देखें तो शिक्षा का एक ही लक्ष्य होता है- मनुष्य को वास्तविक जीवन के लिए तैयार करना। तब पाठ्यचर्या के समस्त विषयों एवं क्रियाओं का सम्बन्ध मनुष्य के वास्तविक जीवन से होना चाहिए। इसी दृष्टि से गाँधीजी ने ज्ञान को पूर्ण इकाई के रूप में विकसित करने पर बल दिया था। उनके इसी विचार ने शिक्षण की सहसम्बन्ध विधि को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी ज्ञान पूर्ण इकाई का होता है, उसे पूर्ण इकाई के रूप में ही विकसित करना चाहिए।
बेसिक शिक्षा के उद्देश्य—बेसिक शिक्षा का अर्थ है–बच्चों को आधारभूत ज्ञान एवं कौशल प्रदान करना, उन्हें सामान्य जीवन के लिए तैयार करना । इस हेतु बेसिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निश्चित किये गये—
(1) शारीरिक एवं मानसिक विकास—गाँधीजी इस तथ्य से अवगत थे कि मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है, इसलिए उन्होंने सर्वप्रथम उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास पर बल दिया और तद्नुकूल शिक्षा की पाठ्यचर्या का निर्माण करने पर बल दिया ।
(2) सर्वोदय समाज की स्थापना—मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः शिक्षा द्वारा मनुष्य का सामाजिक विकास होना चाहिए, परन्तु गाँधीजी का सामाजिक विकास से एक विशिष्ट अर्थ था । वे एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे, जिसमें कोई किसी का शोषण नहीं करेगा, सब एक-दूसरे से प्रेम करेंगे, सब एक-दूसरे का सहयोग करेंगे, सब एक-दूसरे की उन्नति में सहायक बनेंगे, सबका उदय होगा।
(3) सांस्कृतिक विकास—उस काल में उच्च वर्ग के भारतीय पाश्चात्य संस्कृति के प्रशंसक होते जा रहे थे। तब गाँधीजी ने बड़े बलपूर्वक लिखा था कि यदि किसी स्थिति में पहुँचकर कोई पीढ़ी अपने पूर्वजों के प्रयासों से पूर्णतया अनभिज्ञ हो जाती है या उसके अपनी संस्कृति पर लज्जा आने लगती है तो वह नष्ट हो जाती है। इसलिए उन्होंने अपनी भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए बेसिक शिक्षा का विधान किया था।
(4) चारित्रिक एवं नैतिक विकास—गाँधीजी चरित्र बल के महत्त्व को जानते थे। उनके साथियों ने भी शिक्षा द्वारा बच्चों के चरित्र निर्माण पर बल दिया। यह बेसिक शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य है ।
(5) व्यावसायिक विकास—गाँधीजी ने इस सम्बन्ध में दो बातें कहीं—
(i) बच्चों को जो भी हस्तकौशल सिखाये जाये उनसे स्कूलों इतना उत्पादन हो कि इसके विक्रय लाभ से स्कूलों का व्यय निकाला जा सके।
(ii) इन हस्तकौशलों अथवा उद्योगों को सीखने के बाद बच्चे अपनी जीविका कमा सकें।
गाँधीजी ने आर्थिक अभावों से मुक्ति पाने के लिए इसे सबसे अधिक महत्त्व दिया। उनके सभी साथी उनके तर्क से सहमत थे।
(6) नागरिकता का विकास—राष्ट्र की दृष्टि से व्यक्ति नागरिक कहा जाता है। किसी भी राष्ट्र के नागरिकों के लिए यह आवश्यक होता है कि वे राष्ट्र के नियमों का पालन करें। किसी भी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का यह प्रमुख उद्देश्य होता है। बेसिक शिक्षा एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना है। इसका यह उद्देश्य होना स्वाभाविक है।
(7) आध्यात्मिक विकास—गाँधीजी के अपने शब्दों में— “शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के सर्वांगीण और सर्वोत्कृष्ट विकास से है । ” तब स्पष्ट है कि गाँधीजी शिक्षा द्वारा मनुष्य का आध्यात्मिक विकास भी करना चाहते थे, परन्तु इसके लिए वे किसी धर्म की शिक्षा दिये जाने के पक्ष में नहीं थे । वे सर्वधर्म समभाव द्वारा इसकी प्राप्ति पर बल देते थे।
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